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गोरखधंधा: डॉक्टरों के कमीशन से महंगी हो रही जांच, मरीजों पर बढ़ रहा बोझ, डॉक्टर लेते हैं 60% तक कमीशन

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By Prabhat Khabar Digital Desk | November 26, 2017 7:29 AM
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!!राजीव पांडेय!!

रांची : बीमारी से परेशान मरीज पैथोलॉजी जांच में भी लूटे जा रहे हैं. सस्ती जांच के लिए भी मरीजों से बड़ी राशि वसूली जा रही है. सारा खेल कमीशन का है. कमीशन के कारण ही सस्ती जांच भी महंगी हो जाती है. राजधानी के एक पैथोलॉजिस्ट ने बताया, हमें क्लिनिकल डॉक्टरों (सभी डॉक्टर नहीं) को 50 से 60% तक कमीशन देना होता है. डॉक्टरों को हर जांच में कमीशन चाहिए, इसके बदले वे मरीजों को हमारे लैब में भेजते हैं. पैथोलॉजिस्ट के अनुसार, ब्लड सुगर की जांच की वास्तविक दर सामान्य रूप से 30 से 35 रुपये (मुनाफा के साथ) होती है. पर डॉक्टरों के कमीशन के कारण मरीजों से 85 से 110 रुपये तक लिये जाते हैं. एक मरीज से लिवर की जांच (एसजीपीटी) के लिए 150 से 185 रुपये लिये जाते हैं. जबकि इसकी वास्तविक दर 60 रुपये होती है.

एक अन्य लैब संचालक ने बताया, डॉक्टर हमारे पास जैसे-जैसे मरीज भेजने की संख्या बढ़ाते हैं, उनका कमीशन बढ़ता जाता है. शुरुआत में लैब संचालक 40% कमीशन देते हैं, लेकिन बाद में यह 50 से 60% तक चला जाता है. लैब संचालक अगर कमीशन देने में आनाकानी करते हैं, तो वे मरीजों को हमारे लैब में नहीं भेजने की बात कहते हैं. इन डॉक्टरों को कमीशन की राशि का भुगतान नकद किया जाता है. सप्ताह या मासिक हिसाब कर लैब संचालक उन तक पैसे पहुंचा देते हैं. डॉक्टर भी पूरा हिसाब-किताब रखते हैं कि उन्होंने कितने मरीजों को किस जांच के लिए लैब में भेजा है.

जिसकी जहां सेटिंग, वही लैब बेहतर :
पैथोलॉजी लैब संचालक भी डॉक्टरों से सेटिंग करते हैं. डॉक्टरों को अधिक से अधिक कमीशन देने का प्रलोभन देते हैं. अगर सब कुछ सही रहा और लैब संचालक सेटिंग करने में सफल रहे, तो डॉक्टर मरीजों को उनके पास भेजना शुरू कर देते हैं. डॉक्टर भी मरीजों के सामने उसी लैब का गुणगान करते हैं और जांच को विश्वसनीय बताते हैं. मरीज अगर किसी दूसरी जगह की जांच रिपोर्ट लाता है, तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं. यही नहीं, कई बार तो मरीजों पर भड़क जाते हैं.

रिम्स में जांच की दर लैब के खर्च से भी सस्ता

राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में सुगर जांच के लिए 23 रुपये लिये जाते हैं. अगर सरकारी अस्पताल की बात की जाये, तो सुगर की जांच के एनएबीएल जांच घर (सरकारी स्तर पर) में सभी प्रकार के खर्च 25 रुपये निर्धारित िकया गया है. रिम्स में इससे भी सस्ती जांच होती है.

आइएमए सचिव:डॉ प्रदीप सिंह से बातचीत

जांच में डॉक्टरों का कमीशन तय होता है? यह कहां तक सही है.

इसकी जानकारी तो नहीं है. राजधानी में ऐसा कल्चर नहीं है. अगर कुछ ऐसा करते हैं, तो यह गलत है. आइएमए मेंं शुरू से यह सीख दी जाती है कि कमीशन शब्द में डॉक्टर का नाम नहीं आये, इसका ख्याल रखें.

अपने लाभ के लिए डॉक्टर मरीजों का आर्थिक शोषण करते हैं?

डॉक्टरी सेवा व समर्पण का पेशा है. इसमें अपने लाभ के बजाय मरीज हित की चिंता की जाती है. समाज में इससे ही डॉक्टर की पहचान होती है. ऐसे में कमीशन से डॉक्टरों को हमेशा बचना चाहिए. आइएमए की जब भी बैठक होती है, इसके लिए डॉक्टरों को जागरूक किया जाता है.

एक एमएल री-एजेंट में 5 से 6 जांच
री-एजेंट (जांच में प्रयोग होनेवाला केमिकल) के एक व्यापारी ने बताया, री-एजेंट 100, 200 व 500 एमएल में आता है. सामान्य रूप से एक एमएल में पांच से छह मरीजों की जांच हो जाती है. हर मशीन की क्षमता अलग-अलग होती है. मशीन की क्षमता अधिक होने से मुनाफा भी अधिक होता है. सामान्य जांच के लिए एक एमएल री-एजेंट का खर्च मुश्किल से 60 से 70 रुपये है. यानी एक जांच का खर्च 10 से 12 रुपये आता है.

पैथोलॉजी जांच का खेल

60 रुपये की एसजीपीटी की जांच के लिए मरीजों को देने होते हैं 185 रुपये

कुछ डॉक्टर बिना कमीशन के भी जांच लिखते हैं

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