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औद्योगिक विकास के साथ ही पर्यावरण की भी चिंता करती थीं इंदिरा गांधी : जयराम रमेश

रांची : पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी न केवल एक प्रखर और प्रख्यात राजनीतिज्ञ और कुशल प्रशासक थीं, बल्कि उन्हें देश के पर्यावरण और प्रकृति की भी चिंता थी. वह अपने शासनकाल में औद्योगिक विकास के साथ ही देश के पर्यावरण की भी चिंता करती थीं. यही वजह है कि उनके शासनकाल या यूं कहें […]

रांची : पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी न केवल एक प्रखर और प्रख्यात राजनीतिज्ञ और कुशल प्रशासक थीं, बल्कि उन्हें देश के पर्यावरण और प्रकृति की भी चिंता थी. वह अपने शासनकाल में औद्योगिक विकास के साथ ही देश के पर्यावरण की भी चिंता करती थीं. यही वजह है कि उनके शासनकाल या यूं कहें कि वर्ष 1970 के दशक में ही औद्योगिक विकास के लिए कार्यक्रम चलाये जाने के साथ ही प्रदूषण को दूर करने, वन और वन्य पशु संरक्षण जैसे अनेक तरह के कानून को भी बनाया गया. ये बातें शनिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कही.

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शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची स्थित होटल चाणक्य बीएनआर में ‘प्रभात खबर’ और टाटा स्टील के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भाषा वही, परिभाषा नयी’ नामक शीर्षक से आयोजित झारखंड लिटरेरी मीट के ‘अनोखी इंदिरा : एक विरासत’ सेशन में उपस्थित श्रोताओं को संबोधित कर रहे थे. सवाल-जवाब वाले इस सेशन में पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश के साथ देव प्रिया रॉय भी मौजूद थीं, जबकि इन दोनों साहित्यकारों से याज्ञसेनी चक्रवर्ती सवाल कर रही थीं. इस मौके पर एक सवाल के जवाब में कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कहा कि जब हम इंदिरा गांधी के बारे में सोचते हैं, तो मानस पटल पर उनकी दो तरह की छवियां उभरती हैं. एक आपातकाल वाला वह चेहरा, जिसका आम तौर पर उनके विरोधी आलोचना करते हैं. वहीं, इंदिरा गांधी का दूसरी छवि ‘दुर्गा’ वाली है. उन्हें यह उपाधि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश विभाजन के बाद दिया था.

देश में किंवदंतियों पर आधारित इतिहास अब भी प्रचलित

उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि लोग इंदिरा गांधी के बारे में क्या सोचते हैं, अतिमहत्वपूर्ण यह है कि मैंने अपनी पुस्तक ‘इंदिरा गांधी : ए लाइफ इन नेचर’ में उनके जीवन के उन पहलुओं को जनता के सामने पेश करने का प्रयास किया है, जिससे देश की आम जनता अनभिज्ञ है. उन्होंने कहा कि हमारे देश में किंवदंतियों पर आधारित इतिहास का परंपरावादी चलन है, लेकिन लिखित इतिहास की हमेशा कमी रही है. हमने इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं से लोगों को रूबरू कराने के लिए दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पुस्तकालय में शोध किया है. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पर्यावरण प्रेम को लेकर मैंने जिस पुस्तक की रचना की है, वह राष्ट्रीय पुस्तकालय में उपलब्ध उनके खत, सहयोगियों से संवाद संबंधित दस्तावेज, बैठकों में लिये गये फैसलों और वहां उपलब्ध फाइलों से मिली सामग्रियों पर आधारित है.

इंदिरा गांधी के जीवन में पर्यावरण का था अधिक महत्व

पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन पर तो कई तरह की बातें की जा सकती हैं या की जा रही हैं, लेकिन श्रीमती गांधी खुद अपनी जिंदगी के बारे में क्या सोचती थीं, इसे बहुत कम लोग ही जानते हैं. उनके जीवन की अहम बात यह है कि श्रीमती गांधी अपने रोजमर्रा की जिंदगी में पर्यावरण को सबसे अधिक महत्व देती थीं. उन्होंने कहा कि आज अगर देश में प्रदूषण को लेकर या फिर वन एवं वन्य जीव संरक्षण कानून बनाये गये हैं, तो इसमें श्रीमती गांधी का अहम योगदान है. उन्होंने कहा कि देश में वर्ष 1970 के दशक के दौरान या यूं कहें श्रीमती गांधी के शासनकाल के दौरान ही ऐसे कानून बनाये गये.

हत्या से ठीक दो दिन पहले ‘चिनार को रंग बदलते देखा था’ इंदिरा गांधी ने

उन्होंने कहा कि जब मैंने एक साल तक इंदिरा गांधी के जीवन से संबंधित विषय पर शोध किया, तब पता चला कि उन्हें जितना अधिक राजनीति से लगाव था, उससे कहीं अधिक उन्हें पर्यावरण और प्रकृति से प्रेम था. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने देश में करीब 16 सालों तक शासन किया. जयराम रमेश ने कहा कि यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि जब 31 अक्टूबर, 1984 को उनकी हत्या की गयी थी, उसके ठीक तीन दिन पहले उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा था-‘मैं पिछले 50 सालों से कश्मीर जा रही हूं, लेकिन मैंने कभी चिनार के पेड़ों को रंग बदलते हुए नहीं देखा है.’ उन्होंने कहा कि 28 अक्टूबर, 1984 को वह अपने सहयोगियों के साथ कश्मीर गयीं और चिनार के पेड़ों को रंग बदलते हुए देखा.

1972 में स्टॉकहोम के शिखर सम्मेलन में पहली बार इंदिरा गांधी ने जाहिर की थी पर्यावरण की चिंता

उन्होंने कहा कि पर्यावरण को लेकर श्रीमती गांधी चिंता इस बात से भी झलकती है कि जब 1972 में स्टॉकहोम में करीब 130 देशों का सम्मेलन आयोजित किया गया था, तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विश्व के नेताओं में पहली ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपने भाषण में पर्यावरण को लेकर चिंता जाहिर की थीं. यह उस समय की बात है, जब वर्ष 1970 के दशक में भारत के मीडिया और बुद्धजीवियों में पर्यावरण को लेकर बहुत कम ही बात की जाती थी. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही, यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इंदिरा गांधी वन संरक्षण के लिए छेड़े गये ‘चिपको आंदोलन’ से भी प्रभावित थीं.

प्रकृति रक्षति रक्षित:

पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि इंदिरा गांधी हमारे देश की विरासत, परंपरा, धार्मिक ग्रंथों आदि से प्रेरणा लेकर पर्यावरण की चिंता करती थीं. उन्होंने कहा कि देश के विद्वानों ने ‘धर्मों रक्षति रक्षित:’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया. पूर्व प्रधानमंत्री ने इसी सिद्धांत पर ‘प्रकृति रक्षति रक्षित:’ आधृत कार्यक्रम बनाने का प्रयास किया. वे अपने सहयोगियों भारतीयों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए भारतीय वेद और उपनिषद समेत तमाम ग्रंथों से प्ररेणा लेती थीं और फिर उस पर अमल करती थीं.

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