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बंधु तिर्की ने शेयर की महिलाओं की दो तस्वीर, तो सोशल मीडिया पर छिड़ी झारखंड के विकास पर बहस, किसी ने लिखी लंबी कहानी

रांची : झारखंड के पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की ने सोशल मीडिया पर झारखंड की बदलाही की तस्वीर बयां करती दो फोटो डाले. इसके साथ उन्होंने अपने विचार भी व्यक्त किये. बंधु तिर्की के इस पोस्ट पर लाईक, डिस्लाईक के साथ काफी सारे कमेंट भी आये. किसी ने लिखा कि झारखंड के लोगों की दशा […]

रांची : झारखंड के पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की ने सोशल मीडिया पर झारखंड की बदलाही की तस्वीर बयां करती दो फोटो डाले. इसके साथ उन्होंने अपने विचार भी व्यक्त किये. बंधु तिर्की के इस पोस्ट पर लाईक, डिस्लाईक के साथ काफी सारे कमेंट भी आये. किसी ने लिखा कि झारखंड के लोगों की दशा कभी इससे अच्छी थी ही नहीं, तो किसी ने लिखा कि जब आप मंत्री थे, तो क्यों नहीं सुधार दी व्यवस्था. कुछ लोगों ने उन्हें बेहतरीन नेता बताया और कहा कि बंधु दा जब मंत्री थे, उन्होंने विकास के काफी काम किये थे. उनके कार्यों को लोग आज भी याद करते हैं.

बंधु ने ट्रेकर के पीछे लटककर यात्रा कर रही महिलाओं की दो तस्वीरें साझा की हैं. इसके साथ लिखा है कि झारखंड के लोगों की जमीन पर बड़ी-बड़ी कंपनियां बनीं. बाहर से लोग उसमें काम करने आये और वही लोग यहां बस गये. झारखंड के लोगों को विस्थापित होना पड़ा. उनकी जमीन भी चली गयी और आज उनकी माली हालत भी खराब है. बंधु ने लोगों से अपील की है वे एक बार जरूर विचार करें कि झारखंडियों की इस स्थिति के लिए जिम्मेवार कौन है?

कुछ लोगों ने इस पोस्ट के जवाब में बंधु तिर्की को आईना दिखाया है, तो कुछ लोगों ने इस मुद्दे पर बहस की जरूरत बतायी है. हरि गोस्वामी कहते हैं कि आदिवासियों के साल और महुआ के वनों को उजाड़करउनके लिए बंजर जमीन छोड़दी.झारखंडकी जमीन को बंजर बनाने का इतिहास बहुत पुराना है. तब तो अंग्रेज भी नहीं आये थे.

सफदर इमाम लिखते हैं कि इस तस्वीर पर चर्चा होनी चाहिए कि इस हालत के लिए जिम्मेवार कौन है. पक्ष और विपक्ष को मिलकर झारखंड की बेहतरी के लिए काम करना होगा. तभी हालात बदलेंगे. टिप्पणी करना आसान है, काम करना बहुत मुश्किल. इसलिए सभी मिलकर झारखंड को विकसित राज्य बनाने के लिए काम करें. आपस में लड़ने का साफ-साफ मतलब यह है कि कोई प्रदेश के भले के लिए काम नहीं करना चाहता.

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जगदीश लोहरा ने पूर्व शिक्षा मंत्री को सामान्य ज्ञान दुरुस्त करने की सलाह दी है. वह लिखते हैं, ‘HEC, BCCL आज नहीं बना है साहू जी. सामान्य ज्ञान दुरुस्त कीजिये. दूसरी बात, मूलवासियों के कुछ समुदाय के बिहार, उत्तर प्रदेश के लोगों से रिश्तेदारी, वैवाहिक संबंध की वजह से भी लोग यहां बसने के लिए प्रेरित हुए हैं. अब बन जाईये अल्पसंख्यक और बाहरी होंगे बहुसंख्यक.’

जगदीश लोहरा की ही बात को आगे बढ़ाते हुए और झारखंड की वर्तमान स्थिति और कटु सच्चाई बयां करतेहुए राजा कर्माकर एक कहानी कहते हैं,जिसमें झारखंड के नेताओं और यहां की सरकार की व्यवस्था का बेहतरीन चित्रण किया गया है. आप भी पढ़ें :

मैं एक गैर झारखंडीहूं. बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, लगभग समूचे भारत में से किसी भी अन्य राज्य का निवासी हूं. मेरे क्षेत्र में रोजी-रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं है. काफी दिनों से परेशान था. इसी बीच मेरे एक रिश्तेदार, जो झारखंड में रहते हैं, मेरे घर आये. मैंने अपनी परेशानी उनसे साझा की. उन्होंने बड़े इत्मीनान से मेरी बात सुनी. फिर कहना शुरू किया : ऐसा करो, तुम दो-चार हजार रुपये लेकर झारखंड आ जाओ. तुम्हारा पूरा जीवन सुखमयबीतेगा. मैंने कहा : झारखंड के निवासी खुद हर वक्त अपने हक अधिकार के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं. कुछ दिनों पहले एक बच्ची भात-भात करते हुए मर गयी, वैसे झारखंड में मेरा क्या भला होगा?

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मेरे रिश्तेदार ने कहा : घबराओ मत. झारखंड में जितना भी दुःख, तकलीफ, परेशानी, संघर्ष, हक-हुकूकव अधिकार की लड़ाई है, सब झारखंडियों के लिए है. गैर-झारखंडी के लिए नहीं. गैर-झारखंडी के लिए झारखंड स्वर्ग है. #सर्वोत्तम_चारागाह है. झारखंड चलो और किसी रिहायशी इलाके में सरकारी, बीसीसीएल, इसीएल, सीसीएल, सेल, भेल किसी भी गैर-खतियानी जमीन पर तंबू गाड़ लो. मुख्य सड़क के किनारे सत्तू, लिट्टी-चोखा, चाय, खैनी का ठेला लगाओ.

मैंने कहा : झारखंडी लोग क्या मुझे झारखंड में तंबू गाड़ने देंगे? उन्होंने जवाब दिया : ये झारखंडी बड़े वाले बेवकूफ होते हैं. अगर कोई झारखंडी वहां तंबू गाड़ेगा, तो विरोध करते हैं. पर कोई गैर-झारखंडी तंबू गाड़ता है, तो सहयोग करता है.

मैंने फिर पूछा : भैया, रोड किनारे दुकान लगाने देगा उ लोग?

उन्होंने कहा : झारखंड में रोड किनारे व्यवसाय करने का एकाधिकार केवल गैर-झारखंडियों का है. जहां-जहां हम मजबूत हैं, वहां धमाकाकर किसी झारखंडी को दुकान नहीं लगाने देते हैं. जहां कमजोर हैं, वहां दोस्ती का जाल फेंककर अपना काम निकालते हैं. एक बार स्थापित हो जाने के बाद अपने तंबू को फैलाना शुरू करो. कुछ समय के बाद आमदनी के पैसे से तंबू को मकान में तब्दील कर दो. वहां के जनप्रतिनिधि भी बेवकूफ हैं. उस क्षेत्र में तुम्हारा वोटर आईडी, आधार कार्ड, राशन कार्ड आसानी से बगैर किसी छानबीन के बन जायेगा. एक बार ये दस्तावेज बन जाने के बाद तुम झारखंडियों से भी ज्यादा पक्का झारखंडी हो जाओगे.

उसके बाद खुद सरकार भी चाहे, तो तुम्हें झारखंड से नहीं हटा पायेगी. अपनी जड़ें जमा चुके हमारे कुछ गैर-झारखंडी नेता/मंत्री भी इसमें हमारी खूब मदद करते हैं. इससे उनका वोट बैंक बढ़ता है और हमें भी किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती. वैसे भी झारखंड में विस्थापन की परेशानी झारखंडियों के लिए है, इससे गैर-झारखंडी को कोई नुकसान नहीं होता. अगर कभी विस्थापन की नौबत भी आयी, तो वहां की सरकार हमें बना बनाया घर, बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार की समुचित व्यवस्था के साथ मुआवजा भी देती है.यहसुविधाझारखंडियों के लिए उपलब्ध नहीं है.

परिचित ने आगे कहा कि आने वाले कुछ सालों में हम ही वहां के बहुसंख्यक हो जायेंगे और वहां के मूल निवासी अल्पसंख्यकबनकररह जायेंगे. फिर पूरी तरह से पूरा झारखंड हम गैर-झारखंडियों के कब्जे मेंं होगा और पूरे झारखंड में हमारा ही राज होगा. उनकी इन बातों को सुनकर मेरे मन की सारी व्यथा समाप्त हो गयी. तुरंत पैसे की व्यवस्थाकीऔर ट्रेन पकड़ ली. कोडरमा स्टेशन पार कर रहाहूं. कुछ देर में धनबाद पहुंच जाऊंगाा. उसके बाद तो जीवन भर झारखंडियों की छाती पर चढ़कर मूंग दलना है. जय हो झारखंड सरकार.

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