ईश्वर से सौदेबाजी नहीं उनकी सच्ची भक्ति करें

फादर अशोक कुजूर एक संन्यासी नदी के किनारे ध्यानमग्न अवस्था में बैठा था. पास ही एक धोबी कपड़े धो रहा था़ कपड़े धोते-धोते दोपहर होने को आयी़ यह वक्त भोजन का था, इसलिए धोबी उस संन्यासी से अपने गधों को देखने के लिए कह भोजन के लिए घर चला गया़ जब वह लौटा तो उसने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2017 8:37 AM
फादर अशोक कुजूर
एक संन्यासी नदी के किनारे ध्यानमग्न अवस्था में बैठा था. पास ही एक धोबी कपड़े धो रहा था़ कपड़े धोते-धोते दोपहर होने को आयी़ यह वक्त भोजन का था, इसलिए धोबी उस संन्यासी से अपने गधों को देखने के लिए कह भोजन के लिए घर चला गया़ जब वह लौटा तो उसने एक गधा कम पाया़ शायद वह चरते-चरते कहीं दूर निकल गया था और कहीं नजर नहीं आ रहा था़
धोबी गुस्से से लाल हो गया और संन्यासी को भला-बुरा कहने लगा. यह सिलसिला जब लंबा चला, तो संन्यासी भी तैश में आ गया़ फिर क्या था, दोनों गुत्थम-गुत्था हो गये़ धोबी शक्तिशाली था़
उसने संन्यासी को पटक दिया और उसके सीने पर चढ़ बैठा़ संन्यासी की जान पर बन आयी और उसने ईश्वर से गुहार लगायी- हे ईश्वर, मैं इतने दिनों से आपके नाम पर तपस्या कर रहा हूं, पर विपत्ति के समय आप मेरी मदद के लिए नहीं आ रहे़ तभी एक आवाज आयी़ हे तपस्वी, मैं तेरा भगवान, तेरी रक्षा के लिए आया हूं, पर मुझे पता नहीं चल रहा कि तपस्वी कौन और धोबी कौन है!
आज हर इंसान ईश्वर की भक्ति कर मानो उस पर एहसान करता है़ भक्ति का अर्थ प्रेम है, लेकिन हर भक्त आज ईश्वर से सौदेबाजी कर रहा है़ लोग चर्च जाते हैं, लेकिन हमेशा कटोरा लेकर कुछ न कुछ मांगने के लिए़ अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करते हैं.
मैंने तपस्या की, इसलिए आप मुझे फलां-फलां दे़ं ईश्वर तो हमारे उद्धार के लिए उपहार स्वरूप अपना बेटा ही दे रहे हैं. इस आगमन काल में ईश्वर की स्तुति-प्रशंसा करे़ं जीवन में मिले कृपादानों के लिए उन्हें धन्यवाद दे़ं अपने पापों के लिए प्रायश्चित करे़ं अपना जीवन, अपने प्रियजन और सबकुछ उन्हें समर्पित कर दे़ं फिर देखें कि ईश्वर कैसे हमारी प्रार्थना और कल्पना के परे हमें आशीर्वाद देते हैं.
लेखक डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक हैं

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