लघु खनिज नीति मामले में सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में सोमवार को पहाड़ों के गायब होने व पत्थरों के उत्खनन को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए लघु खनिज नीति को लेकर दायर शपथ पत्र को असंतोषजनक बताते हुए नाराजगी […]
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में सोमवार को पहाड़ों के गायब होने व पत्थरों के उत्खनन को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए लघु खनिज नीति को लेकर दायर शपथ पत्र को असंतोषजनक बताते हुए नाराजगी जतायी. दोबारा शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया.
खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि सरकार के शपथ पत्र में कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया है. मात्र निकट भविष्य में सरकार क्या कार्य करेगी, उसकी जानकारी दी गयी है, जो नाकाफी है. खंडपीठ ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट इंवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अॉथोरिटी व दूसरी समिति में सदस्यों की नियुक्ति में अधिकारियों ने सावधानी नहीं बरती है. एक ही व्यक्ति को कई जिलों में समिति का सदस्य बना दिया गया है. राज्य के कई अधिकारियों को विभिन्न जिलों की समिति में शामिल किया गया है. कार्य में विलंब हो सकता है.
वैसी स्थिति में सरकार को इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है. खंडपीठ ने सरकार को निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ जनवरी की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व राज्य सरकार की अोर से खंडपीठ को बताया गया कि माइनर मिनरल के लिए नीति बनायी जा रही है. लघु खनिजों का जिलावार सर्वे किया जा रहा है. बालू का सर्वे सभी जिलों में करा लिया गया है, लेकिन अन्य खनिजों की रिपोर्ट अभी नहीं प्राप्त हुई है. चिप्स के मामले में नौ जिलों में सर्वे करा लिया गया है. अन्य जिलों से रिपोर्ट आनी है. उल्लेखनीय है कि प्रभात खबर में पहाड़ों के गायब होने संबंधी खबर को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.