रांची : वित्तीय कुप्रबंधन से भ्रष्टाचार पैदा होता है. भ्रष्टाचार पर विशेष अध्ययन की जरूरत है, क्योंकि यह अब व्यापक होता जा रहा है. 1970 के दशक में इक्के-दुक्के प्रोफेशन में ही भ्रष्टाचार था. अब यह लगभग हर क्षेत्र में पहुंच गया है. इस पर रोक लगाने के लिए वित्तीय प्रबंधन के साथ लोगों को निजी व सार्वजनिक संपत्ति के अंतर को समझना होगा.
उक्त विचार शनिवार को खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय की पुस्तक ‘समय का लेख’ पर चर्चा के दौरान उभरकर सामने आये. अशोक नगर स्थित अमलतास बैंक्वेट हॉल के सभागार में सरयू राय केसाथ-साथ वरिष्ठ पत्रकार व राज्यसभा सदस्य हरिवंश, विनोवा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश शरण, अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल व वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा समेत अन्य बुद्धिजीवियों ने कहा कि आज भी सरयू राय के लेख प्रासंगिक हैं. सभी वक्ताओं ने कहा कि 25 वर्ष पहले श्री राय ने अपने आलेख के माध्यम से जिन बिंदुओं की ओर इंगित किया था, उसकी अनदेखी का परिणाम आज सामने है. चारा घोटाला समेत अन्य घोटाले इसके स्पष्ट उदाहरण हैं.
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सरयू राय ने बताया कि पुस्तक वर्ष 1990 से 1992 के बीच एकीकृत बिहार की वित्तीय स्थिति पर नवभारत टाइम्स में उनके द्वारा लिखे गये लेखों का संकलन है. तब बिहार की वित्तीय स्थित खराब थी. उन्होंने कहा कि बजट व योजनाओं के क्रियान्वयन में नियमों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए. जब भी इसका दुरुपयोग होता है, व्यवस्था चरमरा जाती है. जब भी व्यक्ति व्यवस्था को अपने अनुकूल चलाने की कोशिश करता है, तो इसमें विसंगति आ जाती है. लोक वित्त प्रबंधन को ध्यान में रखकर ही हम समुचित विकास कर सकते हैं.
तबस्कूटर पर सांड ढोते थे, अब कोयला ढोते हैं : हरिवंश
वरिष्ठ पत्रकार सह राज्यसभा सदस्य हरिवंश ने कहा कि भ्रष्टाचार से छुटकारा पाने के लिए देश में सिस्टम को बदलने की जरूरत है. सिस्टम बदलने के लिए समय-समय पर आंदोलन हुए हैं. इसमें एक आंदोलन वर्ष 1974 का भी था. इस आंदोलन में शामिल कुछ नेता जैसे नीतीश कुमार, सरयू राय को छोड़ दिया जाये, तो आंदोलन के अधिकतर नेता भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गये. आंदोलन की सफलता से मिली सत्ता को इन्होंने निजी स्वार्थ के लिए उपयोग किया, जिसकी वजह से इसके उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो सकी. उन्होंने कहा कि सरयू राय की पुस्तक से सीख लेकर ही हम बेहतर देश, राज्य व समाज का निर्माण हो सकता है. उन्होंने कहा कि देश में लगातार घाटे का बजट पेश हो रहा है. आम आदमी पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने तीन वर्ष पूर्व पेश किये गये बजट का उदाहरण देते हुए बताया कि उस वक्त देश में टैक्स से 14-15 लाख करोड़ की आमदनी थी, जबकि खर्च 17-18 लाख करोड़ था. इसके अलावा 10 लाख करोड़ रुपये का कर्ज पहले का था. पिछले 30-40 वर्षों की फिजूलखर्ची के कारण ही तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को सोना गिरवी रखना पड़ा था. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए हमें निजी और सार्वजनिक संपत्ति के फर्क को समझना होगा. श्री हरिवंश ने कहा कि भ्रष्टाचार तब भी था, अब भी है. तब स्कूटर पर सांड ढोये जाते थे, अब कोयला ढोया जाता है. उन्होंने कहा कि वित्तीय कुप्रबंधन के कारण ही एनरॉन और अमेरिकन कॉम जैसी दुनिया की बड़ी कंपनियां कंगाल हो गयीं. अपने समय के शीर्ष टैलेंट द्वारा संचालित दो कंपनियों के बंद होने की वजह जानने के लिए ‘टाईम’ की एक पत्रकार ने अध्ययन किया, तो पाया कि इन कंपनियों के प्रबंधकों में मूल्यों का घोर अभाव था. इसलिए वित्तीय प्रबंधन में नैतिकता का अभाव था और अनाप-शनाप तरीके से पैसे खर्च किये गये. फलस्वरूप कंपनी डूब गयी. श्री हरिवंश ने भारत के कई राजनेताओं के उदाहरण दिये, जिन्होंने करोड़ों-अरबों रुपये के पार्टी फंड का संचालन किया, लेकिन कभी उसका निजी इस्तेमाल नहीं किया.
लगान भोगी अर्थव्यवस्था से प्रभावित होता है विकास : रमेश शरण
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश शरण ने कहा कि विकास की सोच में बदलाव आया है. लगान भोगी अर्थव्यवस्था से विकास प्रभावित होता है. उन्होंने कहा कि बजट बनाने की प्रक्रिया को गंभीरता से लेने की जरूरत है. हमारे पास आमदनी के क्या स्रोत हैं? टैक्स वसूली को कैसे कारगर बनाया जाये, ताकि चोरी नहीं हो सके. इस पर अध्ययन करने की जरूरत है. कर्ज को आय के रूप में देखने की अवधारणा को बदलना होगा. बजट में आवंटित राशि का उपयोग हम कैसे कर रहे हैं, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है. श्री राय की पुस्तक में अर्थशास्त्र की जटिलताओं को काफी सरल व सहज तरीके से समझाया गया. इसका इस्तेमाल टेक्स्ट बुक के रूप में किया जा सकता है.
भ्रष्टाचार ने विकास को अवरुद्ध किया : हरिश्वर दयाल
अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल ने कहा कि पुस्तक में विस्तार से उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार की अनदेखी की वजह से कैसे बिहार की अनदेखी हुई. राॅयल्टी निर्धारण में गड़बड़ी पर भी प्रकाश डाला गया है. वित्तीय कुप्रबंधन भ्रष्टाचार को जन्म देता है. भ्रष्टाचार विकास को अवरुद्ध करता है. यही वजह है कि विकास गरीबी के अंश को कम नहीं कर पाया. बीएयू के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने कहा कि श्री राय का लेख वित्तीय प्रबंधन की कमियों पर ध्यान आकृष्ट कराता है. यह पुस्तक सरकार व ब्यूरोक्रेट्स के लिए मार्गदर्शक का काम करेगा.
सरयू राय की पुस्तक वित्तीय गड़बड़ियों को दूर करने का रास्ता दिखाती है : अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने कहा कि यह पुस्तक वित्तीय गड़बड़ियों को दूर करने का रास्ता दिखाता है. राजनीतिज्ञ व ब्यूरोक्रेट्स को इस पुस्तक से सीख लेनी चाहिए. यह आई ओपनर है. झारखंड व बिहार की कई बड़ी योजनाएं आज प्रासंगिक नहीं हैं. इसका मूल्यांकन होना चाहिए. उन्होंने कहा कि श्री राय अपने लेख के माध्यम से सरकार को जागरूक रखें, ताकि गड़बड़ी नहीं हो सके. सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने कहा कि स्वर्णरेखा परियोजना समेत कई सिंचाई परियोजनाओं पर सबसे ज्यादा खर्च हुए, फिर भी हम सिंचित व गैर-सिंचित भूमि के अंतर को कम नहीं कर पाये. खनिज की रॉयल्टी का लाभ जनता को नहीं मिल पाता है, जिसके कारण गरीबी नहीं दूर पा रही है.
पुस्तक में दिखता है सरयू राय का दूरदर्शी सोच : अवध किशोर सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता अवध किशोर सिंह ने कहा कि पुस्तक में लेखक ने अपनी दूरदर्शी सोच का दर्शाया है. इसमें 25 साल पहले ही वित्तीय वर्ष जनवरी से दिसंबर तक करने की बात कही गयी है. उन्होंने कहा कि आज देश में महिलाओं की संख्या आधी है. इसी के अनुरूप ही जेंडर बजट बनाने की जरूरत है. इस बाद का ख्याल रखना चाहिए कि ट्राईबल सब प्लान की राशि डायवर्ट नहीं हो.
कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता सह पत्रकार विष्णु राजगढ़िया ने किया. मौके पर आरपी शाही, विकास सिंह, अमित झा, प्रेम मित्तल, आशीष शीतल, सुरजीत, संग्राम सिंह समेत कई बुद्धिजीवी मौजूद थे.