पतरातू : यादों की टटोलती नजरें.. नया शरीर.. नयी आत्मा
खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर लेक के सामने िकया जा रहा कंक्रीट का िनर्माण रंजीव घाटियों को पार कर पतरातू डैम के पास हमारी गाड़ी पहुंची, तो पता चला कि पतरातू लेक प्रोजेक्ट का काम चल रहा है. डैम के ठीक सामने कंक्रीट का निर्माण कार्य. पूछने पर बताया गया कि सुंदरीकरण हो रहा है. […]
खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर लेक के सामने िकया जा रहा कंक्रीट का िनर्माण
रंजीव
घाटियों को पार कर पतरातू डैम के पास हमारी गाड़ी पहुंची, तो पता चला कि पतरातू लेक प्रोजेक्ट का काम चल रहा है. डैम के ठीक सामने कंक्रीट का निर्माण कार्य. पूछने पर बताया गया कि सुंदरीकरण हो रहा है. हाल ही में मुख्यमंत्री शिलान्यास कर गये हैं. डैम के इतने करीब सीमेंट-कंक्रीट का निर्माण करने का तुक फिलहाल तो नहीं समझ अा रहा. वैसे भी जो जगह पहले से इतनी सुंदर है- जहां कुदरत ने अपनी नेमत भरपूर बख्शी हो, उस जगह का सुंदरीकरण कैसा? सुंदर का सुंदरीकरण कुछ गले नहीं उतरा. जब यह निर्माण हो जाएगा, तो डैम अौर उसके अास-पास की खूबसूरती को अपलक निहारने में अांखों को खटकेगा तो जरूर. पर्यटकों की भीड़ जरूर बढ़ेगी लेकिन कुदरती खूबसूरती के चेहरे पर दाग अभी से दिखने लगे हैं. एक जमाने में डैम के तट छठ के पर्व पर ही गुलजार होते थे.
अब लगभग हर दिन. साल के खास मौकों पर तो भीड़ इतनी हो जाती है कि तिल रखने की भी जगह नहीं होती. भीड़ के साथ गंदगी भी अायी है. डैम के किनारों पर फैले चिप्स, बिस्कुट के खाली रैपर, फलों के छिलके. सुंदरीकरण के अभियान में इस कचरे का क्या बंदोबस्त होगा पता नहीं. अलबत्ता डैम में बोटिंग करवाने वाले घूमन महतो जरूर फिक्रमंद दिखे. बताया कि बोट चलाने वालों ने ही कचरा फेंकने के लिए डब्बे भी लगवाये पर लोग मानते ही नहीं. सुंदरीकरण शब्द घूमन तक भी पहुंचा है.बोले- ‘‘सुंदरीकरण तो होइए रहा है शैद कचरो सफाई कर इंतजाम हो जाए।’’ पता नही घूमन की उम्मीद पूरी होगी या नहीं.
नया शरीर..नयी अात्मा.. अलविदा!
कभी गुलजार रहने वाली पतरातू की कॉलोनी इन दिनों वीरान है. थर्मल प्लांट बंद है लिहाजा चिमनियों से धुंअा निकलना भी बंद. क्वार्टरों में रहने वालों से लेकर बाजार तक हर दूसरी जुबां पर- ‘अब तो एनटीपीसी अा रहा है!’ साथ में अाशंकाअों की फेहरिस्त- पता नहीं ताला लग जाएगा, जो अभी मेन रोड है वह अाम रोड नहीं रहेगा.
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जिस बड़े से मैदान, जिसे हम बड़का फिल्ड कहा करते थे उसे भी कंटीले तारों से घेर दिया गया है.ऐसे तारों से कॉलोनी के कई अौर इलाके भी घेरे जा चुके हैं. चमक खोती इस कॉलोनी में कुछ चमकता हुअा मिला तो रसियन हॉस्टल अौर अाफिसर्स हास्टल. कभी जब पतरातू बस रहा था अौर पूरी कॉलोनी नहीं बनी थी तो इन्हीं दो हॉस्टलों में तब बिजली बोर्ड के इंजीनियर रहा करते थे. अब कायाकल्प हो रहा है तो संभवत: ये दोनों हॉस्टल एनटीपीसी के इंजीनियरों का भी अस्थायी डेरा बने हैं. बाकी कॉलोनी अनजाने भविष्य के इंतजार में है.
कुछ पहचाने चेहरे मिले- कुछ ने पिता के नाम से पहचाना. जिन क्वार्टरों में हम दोस्तों का बचपन बीता था उन्हें अंदर जाकर देखने की चाहत पर उनमें अब रहने वालों की बेहद अात्मीयता के साथ स्वीकृति अौर यह भी कि- जहां बचपन गुजारा तुमने वह तुम्हारा ही है.
जी भर कर देख लो. यादों को टटोलतीं नजरें देख रहीं थीं. खामोशी से खड़ा वह जामुन का पेड़. जिसकी डालों पर गर्मियों की छुट्टियां बीती. अस्पताल के गेट पर ताला. जहां घुटने छिलने या सर फटने पर लाल-बैंगनी मिक्सचर असंख्य बार लगा. हाई स्कूल के गेट पर ताला.जो बाहर की दुनिया की उड़ान लेने के लिए कइयों का लांचिंग पैड बना. वह मिडिल स्कूल. जिसके लिए एक दोस्त ने कहा-अाज भी मेरी अांखों पर पट्टी बांध दो तो भी गलियारों में बगैर डगमगाए चल सकती हूं- हर क्लासरुम की दिवारों को छूकर बता सकती हूं. पतरातू में अब सब बदलेगा. उसका नया शरीर बन रहा है. वक्त के साथ उसमें नये दौर की अात्मा का प्रवेश होगा.
पर, साठ के दशक में बना अौर सत्तर-अस्सी-नब्बे के दशक में गुलजार रहने का जो दौर था उस पतरातू की अात्मा असंख्य दिलों में धड़केगी- उनके, जिन्होंने पतरातू का वह दौर देखा- वही दौर जो अाज भी ऐसे लोगों को कई दशक बाद भी पतरातू ले जा रहा है.
कोई अपने रोड नंबर में यादों की पोटली से कुछ लम्हे निकाल कर उनमें खो जाता है तो कोई उस क्वार्टर के सामने खड़े होकर एकटक निहारता है जहां बचपन बीता -जेहन में सवाल- क्या यह भी ढह जायेगा? सेल्फी – फिर सेल्फी- उसके बाद भी सेल्फी.
यादों को तस्वीरों की शक्ल में सहेज कर रखने की जद्दोजहद. एनटीपीसी अा रहा है. पतरातू जा रहा है.
अलविदा पतरातू! (समाप्त)