बकोरिया कांड: सीआइडी ने हलफनामे में तथ्य छिपाये, जानें कुछ खास बातें

!!प्रणव!! रांची : आठ जून, 2015 को पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में हुई घटना के मामले में सीआइडी ने हाईकोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया है, उसमें उसने कई तथ्य छिपाये हैं. हलफनामे में कहा है कि घटना के वक्त इंस्पेक्टर हरीश पाठक पलामू सदर थाना के प्रभारी थे. घटना बकोरिया थाना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 21, 2018 7:37 AM

!!प्रणव!!

रांची : आठ जून, 2015 को पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में हुई घटना के मामले में सीआइडी ने हाईकोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया है, उसमें उसने कई तथ्य छिपाये हैं. हलफनामे में कहा है कि घटना के वक्त इंस्पेक्टर हरीश पाठक पलामू सदर थाना के प्रभारी थे. घटना बकोरिया थाना क्षेत्र में हुई थी. इस कारण इससे हरीश पाठक का कोई लेना देना नहीं है. उन्हें इस अभियान से अलग रखा गया था. उनका बयान विश्वसनीय नहीं है, जबकि प्रभात खबर के पास जो तसवीरें उपलब्ध है, उसके मुताबिक इंस्पेक्टर हरीश पाठक घटना के बाद घटनास्थल पर दिख रहें हैं. इतना ही नहीं, इस बात की भी पक्की सूचना है कि पलामू के तत्कालीन एसपी कन्हैया मयूर पटेल के निर्देश पर इंस्पेक्टर हरीश ही दंडाधिकारी को लेकर घटनास्थल पर पहुंचे थे. शवों के पोस्टमार्टम के वक्त भी हरीश मौजूद थे.

एनएचआरसी के बयान हैं सीआइडी के पास : हलफनामे में इंस्पेक्टर हरीश द्वारा मानवाधिकार आयोग को बयान दिये जाने की जानकारी होने से भी इनकार किया है, पर जो दस्तावेज उपलब्ध हैं, उससे यह पता चलता है कि चार दिसंबर, 2017 के दिन से सीआइडी को इस बात की जानकारी है कि हरीश पाठक ने एनएचआरसी में बयान दिया था. सीआइडी के पास एनएचआरसी को दिये बयान की प्रति भी उपलब्ध है. हालांकि काेर्ट काे दिये हलफनामे में इससे इनकार किया गया है.

एसपी ने रिसीव किया था बयान
दरअसल, हाईकोर्ट के निर्देश पर सीआइडी ने इंस्पेक्टर हरीश पाठक का बयान दर्ज किया था. हरीश पाठक ने चार दिसंबर 2017 को अपना लिखित बयान सीआइडी के एसपी सुनील भास्कर को दिया था. लिखित बयान के अंतिम पन्ने पर हरीश पाठक ने यह लिखा था कि उनसे एनएचआरसी के अधिकारियों ने भी पूछताछ की थी. उन्होंने (हरीश पाठक) एनएचआरसी की टीम के समक्ष जो लिखित बयान दिया था, उसकी प्रति संलग्न कर रहा हूं. हरीश पाठक के बयान को एसपी के द्वारा रिसीव किया गया था.

छह माह तक क्यों सोयी थी सीआइडी

बकोरिया की घटना जून 2015 को हुई थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश के मुताबिक किसी भी नक्सली घटना के 72 घंटों के भीतर उस मामले को सीआइडी को टेकओवर कर जांच करनी है, लेकिन इस मामले में सीआइडी सोयी रही. छह माह बाद इसने मामले को टेकओवर कर जांच शुरू की, लेकिन शपथ पत्र में इस महत्वपूर्ण चूक की वजह क्या रही, इस बात को जांच एजेंसी ने छिपा लिया.

आयोग ने भी उठाये थे सवाल

बकोरिया कांड की धीमी जांच पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीआइडी जांच पर सवाल उठाये थे. कहा भी था कि मामले के अनुसंधानकर्ता और सुपरवाइजरी ऑफिसर पर कार्रवाई की जाये, लेकिन ऐसा नहीं किया. फिर आयोग के निर्देश पर मामले का अनुसंधानकर्ता सीआइडी के एक एसपी को बनाया गया.

आरके धान को क्यों दी गयी सुपरविजन की जवाबदेही ?
बकोरिया कांड के सुपरविजन की जवाबदेही एसटीएफ के आइजी रहे रविकांत धान को दी गयी. नियमत: यह सही नहीं है. उस वक्त सीआइडी में आइजी के रूप में टी कंदासामी मौजूद थे. उन्हें जवाबदेही नहीं दी गयी. पूर्व में भी धनबाद के चर्चित ट्रक चालक गोलीकांड में भी केस की जांच सीआइडी कर रही थी और सुपरविजन की जवाबदेही रांची डीआइजी रहे रविकांत धान को दी गयी थी. यानी हर अहम मामले की सुपरविजन धान को ही क्यों दी गयी, यह भी जांच का विषय है.

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