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झारखंड : किसानों की आय होगी दोगुनी विशेषज्ञों ने तैयार की योजना….जानें कैसे

योजना. बीएयू के कुलपति के नेतृत्व में तैयार हुआ विजन डॉक्यूमेंट मनोज सिंह रांची : झारखंड के किसानों की आय दोगुनी हो सके इसके लिए राज्य के जाने-माने कृषि विशेषज्ञों ने योजना बनायी है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पी कौशल के नेतृत्व में विजन डॉक्यूमेंट तैयार किया गया है. कमेटी के सदस्यों ने […]

योजना. बीएयू के कुलपति के नेतृत्व में तैयार हुआ विजन डॉक्यूमेंट
मनोज सिंह
रांची : झारखंड के किसानों की आय दोगुनी हो सके इसके लिए राज्य के जाने-माने कृषि विशेषज्ञों ने योजना बनायी है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पी कौशल के नेतृत्व में विजन डॉक्यूमेंट तैयार किया गया है. कमेटी के सदस्यों ने झारखंड की कृषि व्यवस्था के अनुकूल अध्ययन करने के बाद कई अनुशंसा की है. अधिकारियों ने झारखंड की खेती को तीन जोन में बांटा है.
उत्तर-पूर्वी इलाके में सबसे अधिक 14 जिलों के लिए योजना तैयार की गयी है. इस इलाके में सबसे अधिक खेती होती है. खरीफ के मौसम में करीब 70 फीसदी भूमि पर धान की खेती की जाती है.
शेष 30 फीसदी पर मक्का, मटर, चना, सब्जी आदि की खेती होती है. इसमें बदलाव की अनुशंसा वैज्ञानिकों की टीम ने की है. झारखंड में किसानों की आय वृद्धि में बीजों की गुणवत्ता, अम्लीय मिट्टी और हाइब्रिड बीज से होने वाली खेती में असंतुलित मात्रा में खाद का प्रयोग भी शामिल है.
कौन-कौन थे कमेटी में
डॉ पी कौशल के नेतृत्ववाली कमेटी में इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरल रेजिंस एंड ग्मस, नामकुम के निदेशक केके शर्मा संयोजक हैं.
कमेटी में बीएयू के अतिरिक्त लाख अनुसंधान संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट अॉफ एग्रीकल्चर बायोटेक्नोलॉजी, आइसीएआर प्लांडू, एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट पटना, कृषि निदेशालय, उद्यान निदेशालय, पशुपालन निदेशालय, मत्स्य निदेशालय, केवीके, चेंबर, तसर अनुसंधान संस्थान, नाबार्ड, मुखिया, प्रगतिशील किसानों के प्रतिनिधियों को भी रखा गया है.
क्या-क्या है अनुशंसा
मध्य-पूर्वी पठारी भूमि (करीब 14.5 लाख हेक्टेयर, 14 जिला, बोकारो, देवघर, धनबाद, दुमका, गिरिडीह, गोड्डा, जामताड़ा, खूंटी, कोडरमा, हजारीबाग, पाकुड़, रामगढ़, रांची व साहेबगंज)
झारखंड में हाइब्रिड सीड की उपलब्धता बढ़ायी जानी चाहिए. हाइब्रिड सीड की उपलब्धता लोकेशन के आधार पर होनी चाहिए
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग संतुलित मात्रा में होना चाहिए. इससे उत्पादन की लागत कम हो सकती है
झारखंड की मिट्टी अम्लीय है. इसमें चूने का प्रयोग जरूरी है. खाद के साथ-साथ इसके उपयोग को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए
एसआरआइ के तहत वर्तमान में 0.75 लाख हेक्टेयर में खेती हो रही है, इसे 1.5 लाख हेक्टेयर किया जाना चाहिए
पूर्वी पठारी जोन (9.30 लाख हेक्टेयर, सात जिला, चतरा, गढ़वा, गुमला, लातेहार, लोहरदगा, पलामू व सिमडेगा)
इन जिलों में चावल के स्थान पर मक्का, मटर, ज्वार, बाजरा की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा. अभी 10 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है. इसे दो लाख हेक्टेयर किया जाये
इन जिलों में पारंपरिक खेती की परंपरा बदली जानी चाहिए
यहां जल्द तैयार होने वाली फसलों की वेराइटी विकसित की जाये
25 फीसदी आर्गेनिक और 75 फीसदी रसायनिक खेती करायी जाये
दक्षिण-पूर्वी पठारी इलाका (3.20 लाख हेक्टेयर, तीन जिला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम व सरायकेला)
अपलैंड जमीन पर धान के स्थान पर रागी, काला चना, सोयाबीन की खेती करायी जा सकती है.बीज ग्राम में बीज की उपलब्धता होनी चाहिएजरूरत और लोकेशन के आधार पर रागी, काला चना और सोयाबीन की वेराइटी का उपयोग होना चाहिएअन्य अनुशंसा
20 फीसदी अतिरिक्त क्षेत्रफल में हाइब्रिड तरीके से सब्जी की खेती होनी चाहिए पीपीपी मोड में गुणवत्ता वाले बीज तैयार कराये जाने चाहिए किसानों को समृद्ध करने के लिए खेतों में ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था होनी चाहिए36431 हेक्टेयर में पारंपरिक तरीके से टमाटर की खेती होती है. इसको स्वर्ण लालिमा, स्वर्ण संपदा जैसी टमाटर की वेराइटी से बदला जाना चाहिए बरसाती बैगन को भी अच्छी वेराइटी के साथ बदला जाना चाहिए

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