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एशिया की पहचान पर संकट के बादल, पहले भी 2 बार बीआइएफआर के अधीन जा चूका है HEC

II राजेश झा II रांची : हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचइसी) एशिया की पहचान है. इसे मदर इंडस्ट्री भी कहा जाता है यानी कारखाना को बनाने वाला उद्योग. करीब 900 एकड़ में फैले एचइसी ने न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में अपने काम से पहचान बनायी है. देश की सामरिक क्षमता बढ़ाने […]

II राजेश झा II
रांची : हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचइसी) एशिया की पहचान है. इसे मदर इंडस्ट्री भी कहा जाता है यानी कारखाना को बनाने वाला उद्योग. करीब 900 एकड़ में फैले एचइसी ने न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में अपने काम से पहचान बनायी है.
देश की सामरिक क्षमता बढ़ाने की बात हो या फिर बोकारो स्टील प्लांट, दुर्गापुर स्टील प्लांट, विशाखापत्तनम स्टील प्लांट के निर्माण की, एचइसी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. अपनी स्थापना के मूल उद्देश्य को कायम रखते हुए एचइसी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने, कोर सेक्टर तथा इस्पात, कोयला, रक्षा, उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक मशीनों का निर्माण व बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत में अपनी अहम पहचान बनायी है. एचइसी के काम आज भी बोलते हैं. एचइसी में बनने वाले उपकरणों की गणुवत्ता ऐसी है कि वर्तमान में एचइसी के पास 1400 करोड़ रुपये से अधिक का कार्यादेश है.
बात यहीं खत्म नहीं होती है. अंतरिक्ष में भारत की अलग पहचान दिलाने में भी एचइसी की महती भूमिका रही है. एचइसी ने इसरो के लिए लांचिंग पैड व इओटी क्रेन का निर्माण किया है. इस लांचिंग पैड से अब तक सौ से अधिक रॉकेट उड़ान भर चुके हैं. इन तमाम खूबियों व कामयाबी के बाद भी एचइसी को निजी हाथों में देने को लेकर कर्मी हताश हैं. उन्हें अपनी भविष्य की चिंता सता रही है.
एचइसी में गुरुवार को विभिन्न विभागों में यही चर्चा का विषय बना रहा. कर्मियों ने नेहरू पार्क में बैठक की. वहीं विभिन्न श्रमिक संगठनों ने एचइसी को निजी हाथों में नहीं देने की मांग को लेकर रणनीति बनाने की बात कही.अपनी जमीन देकर एचइसी को खड़ा करने वाले विस्थापितों के अरमान भी टूट रहे हैं
केंद्रीय कैबिनेट में जायेगा एचइसी के विनिवेश का प्रस्ताव
केंद्रीय उद्योग मंत्री अनंत गीते द्वारा दिये गये संकेत कि एचइसी निजी हाथों में जा सकता है, अब यह प्रस्ताव केंद्रीय कैबिनेट में जायेगा. कैबिनेट से पास होने के बाद इसे डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (डीआइपीएएम) के पास भेजा जायेगा, जो वित्त मंत्रालय के अंदर आता है. डीआइपीएएम लीगल एडवाइजर वैल्यूवर अप्वाइंट करेगा. इसके बाद टेंडर निकाला जायेगा. टेंडर प्रक्रिया में चयनित कंपनी बतायेगी कि एचइसी के पास कुल कितना एसेट्स है. इसके बाद एचइसी को निजी कंपनी को देने के लिए प्रक्रिया शुरू होगी.
…तो कुछ समय के लिए बंद हो जायेगा काम
एचइसी के एक अधिकारी ने बताया कि एचइसी को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया लंबी है. इस प्रक्रिया में कम से कम एक से डेढ़ वर्ष का समय लग सकता है. इस दौरान एचइसी की स्थिति और भी खराब हो सकती है. इसका सबसे बड़ा असर वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा. एचइसी के कर्मचारियों का मनोबल पहले ही टूटा हुआ है. वेंडर एचइसी को माल देने में आनाकानी करेंगे. इसका असर सीधे उत्पादन पर पड़ेगा. कर्मियों को समय पर वेतन नहीं मिलेगा और एचइसी बंदी के कगार पर पहुंच जायेगा. मालूम हो कि एचइसी चालू वित्तीय में दिसंबर माह तक करीब 140 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहा है. एचइसी प्रतिमाह 10 करोड़ से अधिक राशि कर्मियों के वेतन मद में खर्च करता है.
निवेशकों को लुभा सकती है एचइसी की जमीन
एचइसी का आवासीय परिसर करीब 7200 एकड़ भूमि पर है. इसमें करीब 900 एकड़ भूमि पर कारखाना है.एचइसी ने राज्य सरकार व अन्य निजी स्थानों को मसलन राज्य सरकार को 2000 एकड़, सीआइएसएफ को 158 एकड़, जेएससीए स्टेडियम को 32 एकड़, सेल सेटेलाइट कॉलोनी को 62 एकड़, एमडीपी को 70 एकड़, निफ्ट को 62 एकड़, स्मार्ट सिटी के लिए सरकार को 675 एकड़ भूमि के अलावा कुछ निजी स्कूलों को जमीन दी है. एचइसी के पास वर्तमान में करीब 4200 एकड़ जमीन है. निवेशक चाहेंगे कि एचइसी की जमीन भी उन्हें मिले.
वर्तमान में एचइसी का नेटवर्थ निगेटिव
वर्तमान में एचइसी पिछले तीन वर्षों से लगातार घाटे में चल रहा है. एचइसी का नेटवर्थ माइनस 350 करोड़ है. अगर राज्य सरकार से स्मार्ट सिटी के एवज में पूरी राशि मिल जाती है तो एचइसी का नेटवर्थ पॉजीटिव हो जायेगा.
झारखंड सरकार को हो सकती है आपत्ति
झारखंड सरकार ने एचइसी में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 675 एकड़ भूमि एचइसी से ली है. जिसका काम एचइसी मुख्यालय के पास शुरू भी हो गया है. ऐसे में एचइसी में विनिवेश होने से कौन कंपनी एचइसी में पैसा निवेश करेगी और वह किस तरह का उपकरण बनायेगी अभी यह तय होना बाकी है. एचइसी के अधिकारी ने बताया कि अगर निवेश करने वाली कंपनी कारखाना में ऐसा उपकरण या सामान बनाये जिससे प्रदूषण हो तो स्मार्ट सिटी में रहने वाले लोगों को परेशानी होगी.
हल-बैल लेकर अपनी भूमि पर कब्जा करेंगे
विस्थापित विश्वजीत शाहदेव ने कहा कि एचइसी मातृ उद्योग है. यह झारखंड की शान है. देश-विदेश में इसकी ख्याति है. सामरिक दृष्टिकोण से भी यह देश का गौरव है. विस्थापितों ने राष्ट्रहित में अपनी जमीन दी थी. राज्य सरकार के सभी प्रतिष्ठान एचइसी परिसर में हैं. यह गहरी साजिश है.
इसे बंद करने की पूरी तैयारी है. राज्य सरकार संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करे. अजित जोगी का अनुकरण कर बालको विनिवेश पर जैसे पट्टा रद्द किया गया था, वैसे ही झारखंड सरकार भी करे. विनिवेश का हम तीव्र विरोध करते हैं. अगर सरकार नहीं मानती है, तो हल-बैल लेकर अपनी भूमि पर कब्जा कर लेंगे. इस धरोहर की रक्षा हम हर कीमत कर करेंगे.
अपनी विरासत खोकर हमने कंपनी को जमीन दी
अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के उत्तराधिकारी लाल विनोद नाथ शाहदेव ने कहा कि हमने अपनी विरासत खोकर एचइसी निर्माण के लिए जमीन दी थी. इस मातृ उद्योग की अंतरराष्ट्रीय पहचान है. इसे बंद करने या विनिवेश की बहुत बड़ी साजिश है. हमारे परिवार ने नि:शुल्क 1500 एकड़ जमीन दी थी. एचइसी एक-एक कर सभी संसाधन बेच रही है.
जब से स्मार्ट सिटी बनना शुरू हुआ है तभी से एचइसी को बंद करने का योजना बनायी गयी है. इसका हम विरोध करते हैं. राज्य सरकार दायित्व का निर्वहन कर इसे बचाये. हम विस्थापित बहुत कुर्बानी दे चुके हैं, अब नहीं देंगे. सरकार एचइसी को बचाये तथा हमारी भूमि वापस करे.
बीएसएनएल की तरह लटक सकता है मामला
बीएसएनएल को भी निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी, लेकिन फिलहाल इसे स्थगित कर दिया गया है. जानकारी के अनुसार कैग ने जमीन को लेकर आपत्ति जतायी थी. एचइसी के अधिकारी ने कहा कि एचइसी के संदर्भ में केंद्र सरकार केवल फैक्ट्री चलाने के लिए विनिवेश करे.
एचइसी कर्मियों में हताश और आक्रोश
एचइसी को निजी हाथों में देने की खबर गुरुवार को कर्मियों के बीच चर्चा का विषय रही. इसको लेकर कर्मियों में आक्रोश व हताशा साफ दिख रही थी. कर्मी अपने भविष्य को लेकर चिंतित दिखे. कई कर्मियों ने कहा कि एचइसी हमारी मां है और हम अपनी मां को किसी भी हाल में बिकने नहीं देंगे. यही हालत नेहरू पार्क में एकत्रित कर्मी व अधिकारियों की भी थी.
महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्माण कर बनाया अलग मुकाम
एचइसी ने कई महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्माण करके देश में ही नहीं पूरे विश्व में अपना स्थान बनाया है. एचइसी ने परमाणु ऊर्जा आयोग के लिए साइक्लोट्रोन मैगनेट का निर्माण कर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की. इस उपकरण को जर्मनी ने देने से इंकार कर दिया था.
वहीं इसरो के लिए लांचिंग पैड का निर्माण कर एचइसी ने इतिहास रचने का काम किया. इसके अलावा रॉकेट एसेंबली प्लेटफाॅर्म, नौसेना के लिए स्पेशल ग्रेड स्टील, कोल इंडिया के लिए इलेक्ट्रॉनिक टॉप शॉवेल, ड्रैगलाइन का निर्माण करने की क्षमता देश में सिर्फ एचइसी के पास है.
विद्युत चलित फर्नेस का निर्माण, आर्मी के लिए बैरल गेन, पानी जहाज के लिए उपकरण, स्टील उद्योग के लिए कोक ओवेन बैटरी, बांग्लादेश में सीमेंट फैक्ट्री के लिए उपकरण, देश में रेलवे के लिए व्हील एक्सल मशीन, अंडर फ्लोर लेथ मशीन, युद्धपोत आइएनएस राणा के लिए स्टर्न गियर सिस्टम, अजय एमके दो टैंक के लिए कास्टिंग, एटीवी मशीन के लिए उपकरण के अलावा कई महत्वपूर्ण उपकरण बनाया व विदेशी मुद्रा की बचत की.
12 वर्षों में एचइसी में लाभ-हानि
विनय महली ने कहा कि अखबार में पढ़ कर यह समाचार मिला. एचइसी राष्ट्र की धरोहर है. जब कोई बूढ़ा हो जाता है तो उसे घर से निकाल नहीं दिया जाता है. केंद्र सरकार ने 60 वर्ष पुराने एचइसी को बेचने का प्रयास शुरू किया है, जो गलत है. एचइसी को आर्थिक मदद कर फिर से खड़ा करने का प्रयास करना चाहिए.
संत राज प्रजापति ने कहा कि एचइसीमें विनिवेश होने से कर्मियों की नौकरी चली जायेगी. नयी कंपनी अपने लोगों को रखेगी. एक तो सरकार नौकरी नहीं दे रही है और दूसरी तरफ जो लागे जहां कार्य कर रहे हैं उस संस्था को बंद करना चाहती है. एचइसी को किसी भी हाल में बंद नहीं होने देंगे.एकजुट होकर सभी कर्मी आंदोलन करेंगे.
सन्नी कुमार सिंह ने कहा कि एचइसी देश की धरोहर है. इस धरोहर को बचाने के लिए सरकार को मदद करनी चाहिए. इस संस्था से हजारों लोगों की जीविका चलती है. एक ओर सरकार मेक इन इंडिया का नारा देती है और दूसरी ओर एचइसी को बंद करने की साजिश कर रही है. अब कौन कंपनी नौकरी देगी इसको लेकर चिंतित हैं.
गौतम राय ने कहा कि एचइसी कर्मियों के लिए यह समाचार बहुत दु:खद है. एचइसी की हालत में बहुत सुधार हुआ है. सरकार अगर थोड़ी आर्थिक मदद करे एचइसी फिर से खड़ा हो सकता है. इस समाचार से लोगों में काम करने की इच्छा समाप्त हो गयी है. भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
राजेंद्रकांत महतो ने कहा कि भारत माता की जय बोलने वाली मोदी सरकार कारखानों की जननी एचइसी को बेचना चाहती है. एचइसी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जायेंगे. एचइसी में विनिवेश होने से कर्मियों की छंटनी होगी. इससे बेरोजगारी बढ़ेगी. सरकार एचइसी को आर्थिक मदद करे.
दो बार बीआइएफआर के अधीन गया एचइसी
रांची : एचइसी पहली बार वर्ष 1992 में बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल फाइनेंस एंड रीकंस्ट्रक्शन (बीआइएफआर) के अधीन गया था और इसे रुग्ण उद्योग का दर्जा मिला. इसके बाद केंद्र सरकार और तत्कालीन बिहार सरकार के प्रयास के बाद एचइसी वर्ष 1997 में बीआइएफआर से बाहर हुआ था.
तब भी एचइसी को पैकेज मिला था. उस समय एचइसी को कैपेेक्स लोन में 83 करोड़, वैधानिक बकाया के रूप में 105 करोड़ और 100 करोड़ के लोन को इक्विटी में बदला गया था. इसके अलावा 168 करोड़ रुपये सात वर्षों के लिए ब्याज रहित मिले थे. साथ ही केंद्र सरकार ने 50 फीसदी की राशि को डेफर किया था. इतनी राशि मिलने के बाद भी एचइसी दूसरी बार करीब 1998-99 के बीच फिर बीआइएफआर के अधीन चला गया. इसके बाद वर्ष 2003 में बीआइएफआर ने एचइसी प्रबंधन और निगम की ऑपरेटिंग एजेंसी आइडीबीआइ को पुनर्वास पैकेज बनाने के लिए नोटिस भेजा.
प्रबंधन ने पुनर्वास पैकेज बनाया लेकिन बीआइएफआर ने उसे खारिजकरते हुए छह जून 2004 को निगम को अंतिम रूप से बंद करने की सिफारिश कर दी. बीआइएफआर ने लिखा कि निगम का पुनर्वास अब नहीं हो सकता है. इसलिए इसे बंद कर दिया जाये. बीआइएफआर ने यह सिफारिश झारखंड उच्च न्यायालय को भी भेज दी. इस दौरान केंद्र सरकार ने पैकेज तो स्वीकार किया लेकिन राज्य सरकार के साथ फैसला नहीं हो सका.
इसके बाद उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को आपस में विचार-विमर्श कर न्यायालय को सूचित करने का सुझाव दिया. इसके बाद केंद्र एवं राज्य के बीच सचिव स्तरीय वार्ता हुई, लेकिन मामला नहीं सुलझा. मामला तब और उलझ गया जब काेड़ा सरकार उच्च न्यायालय के उस आदेश को डबल बेंच में लेकर चल गयी, जिसके तहत न्यायालय ने सीआइएसएफ की बकाया राशि के बदले एचइसी को जमीन देने की सहमति प्रदान कर दी.
अब एचइसी राज्य सरकार और सीआइएसएफ को जमीन दे सकती है. शर्त यह रखा गया कि सरकार को अपनी याचिका डबल बेंच से वापस लेनी पड़ेगी. राज्य सरकार द्वारा एचइसी को पैकेज की मंजूरी दिये जाने के बाद एचइसी बीआइएफआर से बाहर निकला.
सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करे
हटिया विस्थापित परिवार समिति के अध्यक्ष पंकज शाहदेव ने कहा कि एचइसी को बेचने की जो प्रक्रिया चल रही है उसमें सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए और एचइसी को अच्छे ढंग से चलाने के लिए मदद करनी चाहिए. एचइसी को अगर बेचा गया तो विस्थापितों का विश्वास केंद्र सरकार से उठ जायेगा. विस्थापितों ने जमीन एचइसी कारखाने के लिए दी थी.
जिस समय एचइसी का निर्माण हो रहा था उस समय यहां के विस्थापितों को सुनहरे सपने दिखाये गये थे जो सपना बन कर ही रह गया. उन्होंने प्रधानमंत्री से मांग ही है कि विस्थापितों की भावनाओं को कुचलने का काम नहीं किया जाये. इस पर तत्काल रोक लगायी जाये. विस्थापितों की मांग पूरी नहीं हुई तो जोरदार विरोध होगा.
एचइसी बचाने के लिए जन आंदोलन की जरूरत : सुबोधकांत
रांची : पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि एचइसी पर बंदी का बादल मंडरा रहा है. ऐसी स्थिति में सभी श्रमिक संगठनों, सामाजिक संगठनों व समाज के सभी लोगों को एक मंच पर आकर केंद्र सरकार के इस निर्णय को विरोध करने की जरूरत है. एचइसी को बचाने के लिए जन आंदोलन की जरूरत है और इसमें जब कभी भी मेरी आवश्यकता होगी मैं हाजिर रहूंगा. मेक इन इंडिया का नारा देने वाले, मेक इंडिया को ही बेचने की साजिश करने पर तुले हैं.
एचइसी के निजीकरण के प्रयास का विरोध किया सीटू ने
रांची : एचइसी को निजी हाथों में बेच देने के प्रयास का माकपा राज्य कमेटी और सीटू ने विरोध किया है. सीटू के राज्य सचिव प्रकाश विप्लव ने कहा है कि एचइसी रक्षा क्षेत्र के लिए टैंक, विशेष गुणवत्ता वाली इस्पात, अंतरिक्ष-विज्ञान के लिए मोबाइल लांच पैड, बिक्रम साराभाई स्पेस सेक्टर के लिए स्पेशल ग्रेड का इस्पात आदि का निर्माण करती है. नीति आयोग के फैसले के अनुसार केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा एचइसी सहित देश के 24 महत्वपूर्ण औद्योगिक संस्थानों को निजी मालिकों के हाथों में बेचने का प्रयास किया जा रहा है.
एचइसी झारखंड की धरोहर, पुनर्विचार करे सरकार : डॉ देवशरण
रांची : आजसू पार्टी के प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने कहा है कि एचइसी झारखंड की धरोहर है. केंद्र सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए. एचइसी को बेचने का विचार छोड़ कैसे एचइसी को अच्छे ढंग से चलाया जाये, इसपर विचार करना चाहिए. एचइसी को बेचा गया, तो यह उन विस्थापितों, आदिवासियों-मूलवासियों के साथ विश्वासघात होगा, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए एचइसी को जमीन दी थी. एचइसी के मशीनों का आधुनिकीकरण कर उत्पादन बढ़ाकर रोजगार के अवसर प्रदान करने पर बल दिया जाना चाहिए.
एचइसी को बचाने के लिए श्रमिक संगठन एकजुट, सभी ने किया विरोध
संयुक्त आंदोलन के लिए एटक ने की पहल : लालदेव
हटिया कामगार यूनियन के अध्यक्ष लालदेव सिंह ने कहा कि एचइसी को बचाने के लिए एटक 10 फरवरी को सभी पांचों यूनियनों के पदाधिकारियों की बैठक करेगा. बैठक में एचइसी को बचाने के लिए संयुक्त आंदोलन करने पर विचार किया जायेगा. यह निर्णय गुरुवार को एचइसी मुख्यालय के समक्ष मजदूरों द्वारा आहूत आमसभा में लिया गया. बैठक के बाद एचइसी मुख्यालय के समक्ष प्रदर्शन भी किया जायेगा. उन्होंने तत्काल इस निर्णय को वापस लेने की मांग केंद्र की मोदी सरकार से की है.
12 को पुतला दहन करेगा सीटू : भवन सिंह
हटिया मजदूर यूनियन सीटू के अध्यक्ष भवन सिंह ने कहा कि स्मार्ट सिटी के निर्माण के लिए एचइसी को बेचने का प्रस्ताव कैबिनेट में ले जाया जायेगा. इसके लिए प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री व भारी उद्योग मंत्री दोषी हैं.
सभी नेताओं का पुतला 12 फरवरी को एचइसी मुख्यालय के समक्ष जलाया जायेगा. उन्होंने कहा कि वाजपेयी सरकार ने भी एचइसी को बंद करने का निर्णय अंतिम समय में लिया था लेकिन एचइसी बंद नहीं हुआ और दूसरी तरफ सरकार ही चली गयी. एचइसी के मजदूर सरकार के इस फैसले का जवाब चुनाव में देंगे.
रांची से दिल्ली तक होगा संघर्ष : राणा
हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन के महामंत्री राणा संग्राम ने कहा कि शनिवार को पार्टी कार्यालय में बैठक कर रणनीति की घोषणा करेंगे. कहा कि एचइसी को बचाने के लिए रांची से दिल्ली तक संघर्ष करेंगे.
एचइसी को किसी भी हाल में बिकने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि एचइसी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. 60 वर्ष पुरानी मशीन पर यहां के कर्मी काम कर रहे हैं. एचइसी का जीर्णोद्धार होना था. केंद्र सरकार ने एचइसी के कर्मियों को अंधेरे में रख कर अचानक यह फैसला लिया है, जो गलत है. उन्होंने तत्काल इस फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की.

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