II उत्तम महतो II
रांची : इसे कहते हैं मुफ्त की कमाई. रांची के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने सिखाया है कि पद मिले, तो कैसे बिना खर्च के कमाई करें. पहले तो डिप्टी मेयर ने अपने बेटे को निगम का ठेकेदार बना दिया. फिर उस कंपनी के लिए निगम की गाड़ियों को दौड़ा दिया, वह भी मुफ्त में. सिर्फ बेटे की ही कंपनी के लिए नहीं, डिप्टी मेयर ने अपने चहेते एक दूसरे ठेकेदार की भी खूब मदद की. नगर निगम के ठेके तो दिलवाये ही, निगम के संसाधनों का भी निजी हित में खूब दोहन किया.
संजीव विजयवर्गीय के पुत्र हर्षित विजयवर्गीय की कंपनी मेघा कंस्ट्रक्शन और उनके चहेते विपिन कुमार वर्मा की कंपनी पीयूष इंटरप्राइजेज को ठेके में मिलनेवाले काम (अधिकतर काम वार्ड नंबर 10 में) में मुफ्त में निगम के जेसीबी, ट्रैक्टर समेत अन्य वाहनों और उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. इससे जहां निगम को लाखों रुपये का चूना लगता है और ठेकेदार मोटा माल कमाते हैं.
इसके एवज में नगर निगम को कोई भुगतान नहीं होता. उल्टे, निगम के अन्य काम प्रभावित होते हैं. ठेका कंपनी को न मिट्टी ढुलाई के लिए ट्रैक्टर के पैसे देने पड़ते हैं, न गड्ढे की खुदाई के लिए जेसीबी को भुगतान करना पड़ता है.
निगम का पूरा महकमा जुटा रहता है
मेघा कंस्ट्रक्शन और पीयूष इंटरप्राइजेज को सिर्फ बिल्डिंग मेटेरियल और मजदूरी के पैसे देने पड़ते हैं. इस नियम विरुद्ध काम में निगम के सारे अधिकारी आंखें मूंदे रहते हैं. यही नहीं, रांची नगर निगम का पूरा महकमा इन कंपनियों के काम को कराने के लिए जुटा रहता है. प्रभात खबर के पास इसकी तसवीर भी है, जिसमें निगम के जेसीबी से गड्ढे खुदवाये जा रहे हैं और डिप्टी मेयर भी वहां खड़े हैं.
निगम को लगता है लाखों का चूना, ठेकेदार होता है मालामाल, पीए कराते हैं ठेका मैनेज
डिप्टी मेयर के पीए प्रदीप रवि ठेका मैनेज करते हैं. टेंडर के समय बॉस की कुछ खास कंपनियों को ठेका दिलाने के लिए पीए पूरी तरह मुस्तैद रहते हैं. सूत्रों ने बताया कि जब भी निगम में टेंडर होता है, गेट पर खड़ा पीए टेंडर पेपर जमा करनेवाले हर ठेकेदार से स्पष्ट शब्दों में कहता है कि वार्ड नंबर 10 की योजनाओं को छोड़ कर ही टेंडर डालें. वहां भैया (डिप्टी मेयर) खुद टेंडर डालेंगे.
ठेकेदार भयवश उस वार्ड का टेंडर नहीं डालता कि डिप्टी मेयर का मामला है. उन्हें यह भी भय सताता है कि टेंडर डालने पर भी खामियां निकाल टेंडर रद्द करा दिया जा सकता है. टेंडर मिलने पर भी जांच के बहाने काम में रुकावट डाला जा सकता है.