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मैं हरमू नदी हूं…रांची की ‘जीवन रेखा’, अपने अस्तित्व को बचाने की लगा रही हुं गुहार, कोई तो करे पहल
‘मैं हरमू नदी हूं. एक वक्त था, जब मुझे रांची की ‘जीवन रेखा’ कहा जाता था. कभी मेरा पानी इतना साफ हुआ करता था कि मेरे ईद-गिर्द आबाद दर्जनों बस्तियों के हजारों लोग उसे पीते थे. नहाने-धोने, मवेशियों को पिलाने अौर खेतों की सिंचाई के लिए मेरे पानी का ही इस्तेमाल होता था. लेकिन आज…, […]
‘मैं हरमू नदी हूं. एक वक्त था, जब मुझे रांची की ‘जीवन रेखा’ कहा जाता था. कभी मेरा पानी इतना साफ हुआ करता था कि मेरे ईद-गिर्द आबाद दर्जनों बस्तियों के हजारों लोग उसे पीते थे. नहाने-धोने, मवेशियों को पिलाने अौर खेतों की सिंचाई के लिए मेरे पानी का ही इस्तेमाल होता था. लेकिन आज…, मैं इतनी दूषित हो चुकी हूं कि लोग मेरे पानी से हाथ धोना भी पसंद नहीं करते हैं. प्रदूषण और अतिक्रमण की वजह से आज मेरा अस्तित्व संकट में है.
मैं खुद तो कुछ नहीं कर सकती. हां! शहर के कर्णधारों से थोड़ी-बहुत उम्मीद थी, लेकिन वह भी धराशाई होती दिख रही है. इन लोगों ने मेरे सौंदर्यीकरण की बड़ी-बड़ी योजनाएं तो बनायी हैं, लेकिन वह भी दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं है. मुझे नहीं लगता है कोई मेरी पीड़ा हर पायेगा. मैं हरमू नदी हूं…
कभी शीशे की तरह साफ था हरमू नदी का पानी, आज गंदगी और प्रदूषण की वजह से हो गया है काला
नदी के दोनों किनारों पर तेजी से बढ़ा अबादी का दबाव, अतिक्रमण की वजह से संकरी हो चुकी है नदी
जिन पर थी रांची की इस प्रमुख नदी को बचाने की जिम्मेदारी, वे भी कछुए की चाल से करा रहे हैं काम
शहर के आमलोगों का रवैया भी गैरजिम्मेदाराना, वे भी नहीं समझ रहे हैं शहर की जीवन रेखा का महत्व
पर्यावरणविद् नीतीश प्रियदर्शी ने कहा आज विनाश के कगार पर खड़ी है हरमू नदी
आज हरमू नदी विनाश के कगार पर खड़ी है. हर जगह प्रदूषण फैला हुआ है. हरमू नदी का उद्गम लेटराइट मिट्टी से है. ये बारिश के जल पर निर्भर है. इधर, कुछ वर्षों से बारिश में भी कमी आयी है, जिसके चलते भी इस नदी केवल चार महीने ही प्राकृतिक जल रहता है. बाकी समय ये सिर्फ गंदे पानी से भरा रहता है. अगर हरमू नदी के उद्गम स्थान को देखा , तो वहां पत्थरों का भी कटाव हो गया है. इसके चलते भी इस नदी पर खतरा मंडरा रहा है.
रांची की लाइफ लाइन हरमू नदी का चीरहरण पहले तो किनारे बसे लोगों ने किया, फिर जमीन दलालों ने ऐसी लूट मचायी कि नदी की पहचान ही मिट गयी. मापी में महज आधा किलोमीटर क्षेत्र में हरमू नदी के पेट में 45 से भी अधिक मकान बनने के भी निशान पाये गये. कहीं-कहीं तो पूरा का पूरा मकान हरमू नदी में बना हुआ है. ये नदी लाखों साल पुरानी है और आज से तीस साल पहले तक ये नदी चौड़ी और स्वच्छ थी यही नहीं.
इस नदी में बालू भी होता था, जिसका छोटे-मोटे निर्माण में उपयोग भी होता था. लोग इसमें नहाते भी थे. ये नदी बहुत बड़े क्षेत्र से होकर बहती थी. इसके चलते उन जगहों का तापमान पहले कम रहता था तथा भूमिगत जल भी रिचार्ज होता रहता था. आज ये नदी प्लास्टिक के प्रदूषण से भरी हुई है, जिसके चलते नदी का पानी जहरीला हो चुका है. यही नहीं इसमें आर्सेनिक, क्रोमियम, शीशा, पारा, निकल इत्यादि जहरीले धातु भरे हुए हैं.
इसमें बैक्टीरिया तथा दुसरे ऑर्गेनिक प्रदूषण भी हैं, जो कई बीमारियों के कारण है जैसे चर्मरोग, पेट की बीमारी, लिवर की बीमारी, आंत की बीमारी, डायरिया, जॉन्डिस इत्यादि. प्रकृति ने इस शहर को चार प्रमुख नदियां दी हैं, जो पूरे शहर के जल की मांग को पूरा कर सकती है. यही नहीं ये शहर के तापमान को भी नियंत्रित कर सकती है, लेकिन अफसोस अब ये सारी नदियां विलुप्त होते जा रही हैं. हरमू नदी स्वर्णरेखा नदी की प्रमुख सहायक नदी है. अगर हरमू नदी सूखेगी, तो इसका प्रभाव स्वर्णरेखा नदी पर भी पड़ेगा.
राजधानी रांची की जीवन रेखा कही जानेवाली हरमू नदी का अस्तित्व आज संकट में है. रांची जिला प्रशासन, रांची नगर निगम, जुडको और राजधानी के लोग इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं. बीते दो दशक में हरमू नदी पर आबादी का दबाव बढ़ा है. इसके दोनों किनारों के आसपास तेजी से मोहल्ले बसे, जिससे इसके किनारों का अतिक्रमण हुआ है.
अाबादी बढ़ने के साथ ही नदी के आसपास के मोहल्लों से निकलने वाला गंदा पानी और गंदगी दोनों ही इस नदी में गिराये जाने लगे, जिसकी वजह से आज यह नदी पूरी तरह दूषित हो चुकी है. कभी साफ पानी के साथ कलकल कर बहने वाली इस नदी का पानी पूरी तरह काला हो चुका है. जो हरमू नदी के बारे में नहीं जानता है, उसे यह किसी बड़े और गंदे नाले की तरह दिखती है. बल्कि, आज राजधानी के ज्यादातर लोग इसे हरमू नाला कहकर ही पुकारते हैं.
सौंदर्यीकरण के लिए जो भी किया वह दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं था
पिछले कुछ वर्षों में हरमू नदी को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए कई बार अभियान चलाये गये. साथ ही नदी को दोबारा जिंदा करने का प्रयास शुरू हुआ. मोहल्लों अौर घरों से निकलने वाले गंदे पानी को नदी तक पहुंचने से रोकने की पहल की गयी. इसके लिए ईगल इंफ्रा एजेंसी का चयन किया.
एजेंसी ने वर्ष 2015 से अपना काम शुरू किया. अब तक हरमू नदी की हालत सुधारने के लिए लगभग 52 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं, लेकिन आज भी हरमू नदी की तसवीर नहीं बदली है. उल्टे नदी के सौंदर्यीकरण के नाम पर इसके प्राकृतिक बहाव को खत्म कर दिया गया. किनारों पर पत्थर लगाये गये. साथ ही नदी के किनारे-किनारे नाली बनाने और पैदल चलने के लिए पाथ-वे बनाने का भी शुरू हुआ. लेकिन, सच्चाई यह है कि यह काम भी बेहद धीमी रफ्तार से चल रहा है. वहीं, काम की गुणवत्ता भी बहुत खराब है.
करमसोकड़ा से शुरू हुआ था सौंदर्यीकरण का काम
हरमू विद्यानगर से कुछ ही दूरी करमसोकड़ा नाम की जगह है. यहीं से हरमू नदी के सौंदर्यीकरण का काम शुरू हुआ था. यहां पर पत्थरों अौर लोहे की जालियों से नदी के दोनों किनारों को बांधने का काम शुरू हुआ. करमसोकड़ा से नदी के प्रवाह की दिशा में चलते हुए थोड़ी दूरी पर शौचालय बनाया गया है.
लेकिन, मौजूदा समय में लोग इस शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि इसके दरवाजे पर ताला लगा हुआ है. स्थानीय लोगों का कहना है कि निर्माण के बाद से ही शौचालय बंद है. यहां पर नदी का पानी कुछ साफ है अौर आसपास की बस्तियों के लोग बेझिझक इस पानी का इस्तेमाल करते हैं. थोड़ा अौर आगे बढ़ने पर बस्तियां शुरू हो जाती हैं. नदी के दूषित होने का सिलसिला भी यहीं से शुरू हो जाता है.
इस तरह बना रहे हैं नािलयां कि उनका पानी हरमू नदी में ही गिरेगा
हरमू नदी के किनारे-किनाने पैदल चलते हुए प्रभात खबर की टीम टुंगरीटोली पहुंची. टीम ने देखा कि यहां नदी के पास ही दो नाले बने हैं. उससे आगे भट्ठा मोहल्ला में भी दो नालों का निर्माण कार्य चल रहा है. भट्ठा मोहल्ला से हरमू पुल (किरण मैरेज हॉल तक) छह नाले मिले. आगे अौर भी नाले हैं, जबकि कडरू इलाके तक लगभग 27 ड्रेनेज पिट बनाये गये हैं.
इनमें कुछ बन रहे हैं अौर कुछ क्षतिग्रस्त हैं. भट्ठा मोहल्ले के पास नाला निर्माण में लगे मजदूरों ने बताया कि नालों में पाइप इस तरह से बिछाया जा रहा है कि एक पाइप से होकर मोहल्लों का गंदा पानी नाले में चला जायेगा, जो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से होते हुए हरमू नदी में गिरेगा. वहीं, दूसरे नाले से होकर बरसात का पानी हरमू नदी में जायेगा.
चिंताजनक स्थिति
शहरी क्षेत्र में तकरीबन सभी स्थानों पर हरमू नदी में दिखता है कचरा
जगह-जगह नदी के उथले पानी अौर कीचड़ में दिख जायेंगे मुंह मारते सूअर
देखने वाला कोई नहीं
मुक्तिधाम से लेकर नदी के रास्ते में बन रहे हैं पांच-छह शौचालय, पर रफ्तार धीमी
जो शौचालय बने, उनमें भी बंद रहता है ताला, नदी के किनारे ही शौच करते हैं लोग
गौर करनेवाली बात
स्वर्णरेखा की सहायक नदी है हरमू नदी, यह सूखी, तो संकट में आ जायेगी स्वर्णरेखा
हरमू का पानी इतान दूषित कि इसका इस्तेमाल करने से हो सकती है गंभीर बीमारियां
जगह-जगह ढह गये हैं पत्थर, मोहल्लों का कचरा फेंका जा रहा है नदी में
हरमू बाइपास के पास एक बोर्ड लगाया गया है, जिसपर चेतावनी लिखी गयी है कि हरमू नदी में कचरा फेंकना संगीन अपराध है. पकड़े जाने पर जुर्माना सहित कारावास होगा. पर शहरी क्षेत्र में तकरीबन सभी स्थानों पर नदी में कचरा दिखता है. भट्ठा मोहल्ला, विद्यानगर, चालानगर, नदी ग्राउंड हिंदपीढ़ी, हरमू कॉलोनी, कडरू का निचला हिस्सा, पुलटोली से होकर स्वर्णरेखा में मिलने के पूरे रास्ते में जहां कहीं भी नदी के आसपास बस्तियां आबाद हैं, वहां के लोग अपना कचरा नदी में ही फेंकते हैं. मुक्तिधाम के पास, पीपी कंपाउंड के पास के इलाके में कई अपार्टमेंट का गंदे पानी का बहाव नदी में ही मोड़ दिया गया है. हरमू मुक्तिधाम अौर विद्यानगर पुल आनंदपुरी के पास तीन-चार खटाल हैं, जिन्हें कई बार हटाया गया है, लेकिन ये दोबारा वहीं बस जाते हैं. इनकी सारी गंदगी नदी में ही गिरती है.
सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बावजूद गंदगी में नहीं आयी है कमी
जुड़को कंपनी द्वारा हरमू मुक्तिधाम अौर हरमू फल मंडी के पास दो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाये गये हैं. बावजूद नदी में गंदगी और गंदा पानी गिरने से नहीं रोका जा सका है. यहां तैनात गार्ड इसके बारे में कुछ भी नहीं बता पाया. मुक्तिधाम के पास नदी में कुछ दूर तक पाथ-वे बनाया गया है. हरमू बाइपास पुल के पास नदी के ढलान पर घास अौर सजावटी पौधे भी लगाये गये, लेकिन रख-रखाव के अभाव में ये सूखने लगे हैं. मुक्तिधाम से लेकर नदी के रास्ते में पांच छह शौचालय बनाये जा रहे हैं, लेकिन इनके निर्माण की रफ्तार काफी धीमी है. सभी शौचालयों में ताला बंद रहता है. ऐसे में अब भी आसपास की बस्तियों के लोग नदी के किनारे ही शौच करते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी साफ है नदी
शहरी क्षेत्रों में हरमू नदी अत्यंत ही प्रदूषित है, लेकिन इसके उलट आबादी से दूर ग्रामीण क्षेत्रों में नदी का पानी काफी साफ है. करमसोकड़ा, उससे आगे मुड़ला पहाड़, हेहल पीपरटोली, हेहल नदी पार जैसे इलाके में ग्रामीणों ने नदी में जगह-जगह मिट्टी से बांध बनाकर पानी रोका है. इसमें जमा पानी में ही लोग नहाते हैं, कपड़ा-बर्तन धोते हैं और मवेशियों को पानी पिलाते हैं. जब तक नदी में पानी रहता है तब तक आसपास के खेतों की सिंचाई भी इसी से होती है.
आज मेरी उम्र 65 साल है. मैं बचपन से इस नदी को देख रहा हूं. तब इस नदी का पानी शीशे की तरह साफ था. मुझे अब भी याद है कि बचपन में नदी किनारे खेलते-कूदते कभी प्यास लगती थी, तो हम इसी नदी का पानी पीते थे. मेरे 20 साल का होने तक नदी का पानी ठीक ठाक था. उसके बाद यह नदी प्रदूषित होने लगी.
– सागर तिर्की, निवासी, पीपर टोली, हेहल
यह बरसाती नदी है. चूंकि यह ग्रामीण इलाका है इसलिए यहां इस नदी में गंदगी नहीं दिखती है. आज भी यहां के लोग रोजमर्रा के काम इसी नदी के पानी से करते हैं. बरसात में इसका जलस्तर काफी अच्छा रहता है. मार्च तक नदी में पानी मिल जाता है. गर्मी के दिनों में गांव के लोग नदी में गड्ढा खोदकर कुछ पानी निकाल लेते हैं.
भगत कच्छप, निवासी, हेहल नदी पार इलाका
पूरी हो रही है डेड लाइन, लेकिन काम आधा भी नहीं हुआ
सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट है हरमू नदी का सौंदर्यीकरण
रांची : नाले का रूप ले चुकी हरमू नदी का जीर्णोद्धार जिसे सौंदर्यीकरण भी कहा जा रहा है, दरअसल मुख्यमंत्री रघुवर दास का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इस कार्य का शिलान्यास 15 मार्च 2015 काे हुआ था. बीतते समय में इसकी गणना करें, तो दो साल 10 महीने और 25 दिन यानी करीब-करीब तीन साल पहले यह काम शुरू हुआ था.
राज्य सरकार ने इसके लिए मुंबई की कंपनी ईगल इंफ्रा के साथ करार किया. करार के मुताबिक हरमू नदी का सौंदर्यीकरण 36 महीने 16 में (31 मार्च 2018 तक) पूरा करना था. डेड लाइन पूरा होने में 19 दिन ही शेष हैं, लेकिन हरमू नदी की तसवीर नहीं बदली है. जहां-तहां काम तो हो रहे हैं, लेकिन काम की रफ्तार काफी धीमी है. एेसे में यह कहना मुश्किल है कि सौंदर्यीकरण का काम कब पूरा होगा.
आधे से ज्यादा राशि खर्च हो चुकी है जीर्णोद्धार के नाम पर
हरमू नदी के सौंदर्यीकरण का काम नगर विकास द्वारा कराया जा रहा है. वहीं, विभाग की कंपनी जुडको ने हरमू नदी के सौंदर्यीकरण की पूरी योजना की लागत 85 करोड़ 43 लाख रुपये तय की है.
सौंदर्यीकरण की देखरेख के लिए नगर विकास विभाग की ओर से एक कमेटी भी गठित की गयी थी. उसी कमेटी ने जांच के बाद योजना के डीपीआर को ही त्रुटिपूर्ण करार दे दिया. इसके बावजूद उसी त्रुटिपूर्ण डीपीआर के आधार पर कराये जा रहे निर्माण कार्यों पर अब तक 52 करोड़ रुपये खर्च भी किये जा चुके हैं. लेकिन, इतनी बड़ी राशि खर्च करने का फलाफल कहीं नहीं दिख रहा है.
सौंदर्यीकरण योजना में क्या
नदी के किनारे छोटे-छोटे पार्क व पाथ-वे बनाये जाने की योजना थी.
आठ सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाये जाने हैं. शहर का गंदा पानी इसी से साफ होगर नदी में गिरेगा.
विभाग का दावा दो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट काम करने लगे हैं, छह अन्य जल्द शुरू हो जायेंगे.
नदी के किनारे फूल-पौधे और सोलर लाइट लगाने की योजना, लेकिन यह काम भी लंबित है.
नदी के किनारे-किनारे 33 सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किये जाने की योजना है.
नदी के मुहाने पर नेचुरल सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाये जायेंगे.
शिलान्यास के समय किसने क्या कहा
तय समय सीमा में ही भ्रष्टाचार मुक्त काम किया जायेगा. अब झारखंड में नदी, नाला और तालाब बेचने का काम नहीं चलने देंगे.
रघुवर दास, मुख्यमंत्री
दो माह के अल्प समय में सरकार ने कई काम किये हैं. पहले शिलान्यास होता था. अब उदघाटन भी होगा. 30 माह में नदी का कायाकल्प होगा.
सीपी सिंह, नगर विकास मंत्री
हरमू नदी का जीर्णोद्धार सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है. साल भर में लोगो को लगेगा कि वह मुंबई के मरीन ड्राइव से गुजर रहे हैं.
नवीन जायसवाल, विधायक
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