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झारखंड : पुनर्वास के अभाव में मानव तस्करी की शिकार हो रही राज्य की बेटियां

II प्रवीण मुंडा II रांची : मानव तस्करी (ट्रैफिकिंग) के मामले में झारखंड को सोर्स राज्यों में गिना जाता है. यानी झारखंड उन राज्यों में शामिल है, जहां से बड़ी संख्या में बच्चे/ बच्चियों को मानव तस्करी के जरिये दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, मुंबई सहित अन्य राज्यों में भेजे जाते हैं. ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में काम […]

II प्रवीण मुंडा II
रांची : मानव तस्करी (ट्रैफिकिंग) के मामले में झारखंड को सोर्स राज्यों में गिना जाता है. यानी झारखंड उन राज्यों में शामिल है, जहां से बड़ी संख्या में बच्चे/ बच्चियों को मानव तस्करी के जरिये दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, मुंबई सहित अन्य राज्यों में भेजे जाते हैं. ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में काम कर रही संस्थाअों का अनुमान है कि प्रतिवर्ष राज्य से 35 हजार से अधिक किशोरी व बच्चे दलालों की मार्फत दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं.
इसमें 12 प्रतिशत लड़कियां कभी लौट नहीं पाती हैं अर्थात वे गुम हो जाती हैं.
सरकार अौर संस्थाअों के प्रयास से हाल के वर्षों में किशोरियों को रेस्क्यू करके वापस लाया जा रहा है. पर हालत यह है कि पुनर्वास योजना की खामियों की वजह से बचायी गयी लड़कियों की बड़ी तादाद फिर से दलालों के चंगुल में फंस जाती हैं अौर वे उसी दलदल में फंस जाती हैं, जहां से उन्हें निकाला गया था.
कहीं नहीं है काउंसेलिंग की व्यवस्था
ट्रैफिकिंग से छुड़ायी गयी किशोरियों के लिए राजधानी रांची सहित राज्य के कई जिलों में शेल्टर होम है. अभी तकरीबन 25 चिल्ड्रेन होम अौर शेल्टर होम हैं.
इनमें कुछ शेल्टर होम ऐसे हैं, जहां पर लड़कियों को अस्थायी तौर पर रखा जाता है. इनमें एक भी ऐसा होम नहीं है जहां सिर्फ ट्रैफिकिंग से रेस्क्यू की गयी लड़कियों को रखा जा सके. रेस्क्यू की गयी लड़कियों में कई ऐसी होती हैं जो शारीरिक, मानसिक अौर आर्थिक रूप से काफी प्रताड़ित हो चुकी होती हैं. ऐसी लड़कियों के लिए शेल्टर के अलावा काउंसेलिंग भी जरूरी है. फिलहाल राज्य में कहीं भी काउंसेलिंग की व्यवस्था नहीं है.
बारहवीं के बाद नहीं है पढ़ने की व्यवस्था : रेस्क्यू की गयी लड़कियों को शिक्षा से जोड़ना एक बड़ी चुनौती है. ऐसी लड़कियों को कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालयों में शिक्षा प्रदान की जा रही है.
इन विद्यालयों में बारहवीं तक की शिक्षा तो मिल रही है पर इसके बाद लड़कियों को आगे की शिक्षा नहीं मिल पाती. वे खुद इतनी सक्षम नहीं होती हैं कि आगे की पढ़ायी जारी रख सकें. इनके परिवारों की स्थिति भी ऐसी नहीं होती कि वे उन्हें पढ़ा सकें. ऐसे में वे फिर से दलालों के चंगुल में फंस जाती हैं.
कौशल विकास से जोड़ना होगा
भारतीय किसान संघ, एटसेक झारखंड के संजय मिश्र कहते हैं कि 16 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों अौर उससे ज्यादा उम्र की किशोरियों के लिए शिक्षा तो जरूरी है ही. साथ ही दोनों ही वर्गों की लड़कियों के लिए अलग-अलग कौशल विकास की योजनाएं बनानी होंगी.
अगर बच्चियों को शिक्षा अौर कौशल विकास से जोड़ा जायेगा तो वे फिर दलालों के चंगुल में नहीं फंसेगी? उन्होंने कहा कि हमलोगों ने अब तक सैकड़ों बच्चियों को हाउस कीपिंग अौर सिक्युरिटी गार्ड का प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा है. पर हमारी अपनी सीमाएं हैं. सरकार के स्तर पर अौर प्रयास करना होगा. सिविल सोसाइटी को भी इन मुद्दों पर संवेदनशील होना होगा, तभी हमलोग ट्रैफिकिंग पर अंकुश लगाने की उम्मीद कर सकते हैं.

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