खुलासा: हाइकोर्ट निर्माण के टेंडर में इंजीनियरों ने की गड़बड़ी

II शकील अख्तर II कार्यपालक अभियंता ने मौखिक रूप कहा, मामला उच्च स्तर से संबंधित है रांची : झारखंड हाइकोर्ट के नये भवन के टेंडर में इंजीनियरों ने भारी गड़बड़ी की है. टेक्निकल बिड में ही गलत तथ्यों व छोटी-छोटी बातों के आधार पर ओमान के सुल्तान का शाही महल व लखनऊ हाइकोर्ट का भवन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2018 7:28 AM
II शकील अख्तर II
कार्यपालक अभियंता ने मौखिक रूप कहा, मामला उच्च स्तर से संबंधित है
रांची : झारखंड हाइकोर्ट के नये भवन के टेंडर में इंजीनियरों ने भारी गड़बड़ी की है. टेक्निकल बिड में ही गलत तथ्यों व छोटी-छोटी बातों के आधार पर ओमान के सुल्तान का शाही महल व लखनऊ हाइकोर्ट का भवन बनानेवाली कंपनियों सहित आठ को टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया.
इन कंपनियों की वित्तीय स्थिति और गुडविल को नजरअंदाज किया गया. इससे सिर्फ चार कंपनियां ही फाइनेंशियल बिड में शामिल हो सकी. इसके मूल्यांकन के बाद राम कृपाल कंस्ट्रक्शन को 264.58 करोड़ की लागत से हाइकोर्ट के नये भवन के निर्माण का काम दिया गया. साथ ही उसे अनुचित लाभ पहुंचाया गया. महालेखाकार ने ऑडिट के दौरान मिले तथ्यों से संबंधित रिपोर्ट सरकार को भेजी है.
कंपनियों की वित्तीय स्थिति का नहीं रखा ध्यान : रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट टीम ने कार्यपालक अभियंता से यह जानना चाहा कि टेक्निकल बिड के निबटारे के दौरान गलत तथ्यों व छोटी-छोटी बातों को क्यों आधार बनाया गया.
कंपनियों की वित्तीय स्थिति और उनके गुडविल को क्यों नहीं ध्यान में रखा गया. इन सवालों के जवाब में कार्यपालक अभियंता ने मौखिक रूप कहा कि यह मामला उच्च स्तर से संबंधित है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाइकोर्ट भवन निर्माण के टेंडर में कुल 12 कंपनियों ने हिस्सा लिया था. आठ कंपनियों को टेक्निकल बिड में ही बाहर कर दिया गया. अगर इन कंपनियों की आर्थिक स्थिति, काम और गुडविल को ध्यान में रखा जाता, तो टेंडर के फाइनेंशियल बिड में और ज्यादा प्रतिस्पर्द्धा होती.
दस्तावेज नहीं रहने पर एक को किया बाहर, दूसरे को नहीं किया अयोग्य
रिपोर्ट में कुछ कंपनियों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर करने के लिए इंजीनियरों की ओर से पेश किये गये आधार और वास्तविक स्थिति को बतौर उदाहरण पेश किया गया है.
कहा गया है कि टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को यह कहते हुए अयोग्य घोषित कर दिया गया कि इस कंपनी ने टूल और प्लांट के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं दिये हैं.
कंपनी ने सिर्फ तकनीकी व्यक्तियों का लिस्ट दिया है. हालांकि इन्हीं इंजीनियरों ने टूल और प्लांट के दस्तावेज नहीं देनेवाली कोलकाता की सिंप्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्टचर लिमिटेड को अयोग्य नहीं घोषित किया. इस कंपनी को फाइनेंशियल बिड में हिस्सा लेने दिया.
कंपनी के टर्न ओवर को गलत बता किया बाहर
इंजीनियरों ने मुंबई की गैनन डंकरली एंड कंपनी को उसका टर्न ओवर टेंडर में निर्धारित शर्त (401.49 करोड़) से कम होने के आधार पर बाहर कर दिया गया.
हालांकि इस कंपनी का टर्न ओवर 1923.26 करोड़ रुपये है. उत्तर प्रदेश सरकार का लोक उपक्रम उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को इंजीनियर्स सर्टिफिकेट नहीं देने और इलेक्ट्रिकल सर्टिफिकेट पढ़ने लायक नहीं होने का आधार पर टेंडर से बाहर कर दिया गया. हालांकि इस कंपनी का टर्न ओवर 3500 करोड़ रुपये है. इस कंपनी ने हाल ही में लखनऊ हाइकोर्ट के नये भवन का निर्माण किया है.
वहां के मुख्य न्यायाधीश ने कंपनी के काम की काफी सराहना की है. शापरोजी पालोनजी एंड कंपनी को इलेक्ट्रिकल लाइसेंस नहीं देने के आधार पर बाहर कर दिया गया. जबकि इस कंपनी का टर्न ओवर 4522.40 करोड़ है. इस कंपनी ने ओमान के सुल्तान का शाही महल बनाया है.
ठेकेदार को दिये गये अग्रिम पर सवाल
एजी ने हाइकोर्ट के निर्माण कार्य में ठेकेदार रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को दिये गये अग्रिम के औचित्य पर सवाल उठाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ठेकेदार को मोबलाइजेशन एडवांस के रूप में 26.40 करोड़ का भुगतान किया गया है.
मशीन व उपकरण खरीदने के लिए 10 करोड़ का अग्रिम दिया गया है. ऑडिट के दौरान पाया गया कि ठेकेदार ने अग्रिम लेने के बाद सिर्फ 1.13 करोड़ की लागत से मशीन व उपकरण खरीदने से संबंधित बिल दिया है. यानी की बाकी मशीनें उसके पास पहले से है.
नियमानुसार नयी मशीन के लिए 90 प्रतिशत और पुरानी मशीन का 50 प्रतिशत अग्रिम देना है. अग्रिम लेने के बाद ठेकेदार ने मशीन खरीदने का जो ब्योरा दिया, उसके हिसाब से उसे नौ करोड़ रुपये अधिक दिया गया.
दूसरी बात यह कि ठेकेदार ने निर्माण कार्य की लागत का 25 प्रतिशत अपने पास से खर्च करने पर सहमति दी थी. फिर भी उसे अग्रिम दिया गया. इसलिए एजी ने ठेकेदार को दिये गये अग्रिम का औचित्य जानना चाहा है. ठेकेदार के एकस्ट्रा काम के लिए बिना सप्लिमेंट्री एग्रीमेंट के ही भुगतान किया जाने को भी गलत बताया है.
गलत तरीके से टेंडर प्रक्रिया से बाहर करने का उदाहरण
कंपनी बाहर करने का कारण वास्तविक स्थिति
गैनन डंकरली टर्न ओवर 401.49 टर्न ओवर
एंड कंपनी, मुंबई करोड़ से कम 1923.26 करोड़
टाटा प्रोजेक्ट्स टूल व प्लांट का टूल प्लांट का पेपर नहीं देने पर
लिमिटेड, हैदराबाद दस्तावेज नहीं दिया सिंप्लेक्स को टेंडर से नहीं निकाला
उत्तर प्रदेश राजकीय इलेक्ट्रिकल साइसेंस टर्न ओवर 3500 करोड़,
निर्माण निगम,लखनऊ साफ नहीं पढ़ा जा रहा है लखनऊ हाइकोर्ट बनाया
शापोरजी पालोनजी इलेक्ट्रिकल लाइसेंस टर्न ओवर 4522.40 करोड़,
एंड कंपनी, कोलकाता नहीं दिया कंपनी के गुडविल को नहीं देखा

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