Advertisement
केस निरस्त होने के बाद भी रिम्स के पूर्व निदेशक को जाना पड़ा जेल, ACB को नहीं थी जानकारी
रांची : रिनपास में हुए नियुक्ति घोटाले से संबंधित केस को झारखंड हाइकोर्ट की ओर से निरस्त किये जाने के दो माह बाद इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने पूर्व प्रभारी निदेशक सह चिकित्सा अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. यही नहीं, इसी मामले में पूर्व प्रभारी […]
रांची : रिनपास में हुए नियुक्ति घोटाले से संबंधित केस को झारखंड हाइकोर्ट की ओर से निरस्त किये जाने के दो माह बाद इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने पूर्व प्रभारी निदेशक सह चिकित्सा अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.
यही नहीं, इसी मामले में पूर्व प्रभारी निदेशक डॉ अमूल रंजन के खिलाफ धारा-82 की कार्रवाई (कुर्की) के तहत उन्हें फरार घोषित करते हुए उनके रिनपास परिसर स्थित आवास में इश्तेहार चिपका दिया. उनके खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया.
इस दौरान एसीबी के अधिकारियों को इस बात की जानकारी भी नहीं हुई कि जिस मामले में वे कार्रवाई कर रहे हैं, उसे हाइकोर्ट ने पूर्व में ही निरस्त कर दिया है. मामले का खुलासा तब हुआ, जब डॉ अमूल रंजन की ओर से हाइकोर्ट में दायर क्वैशिंग याचिका पर गुरुवार और शुक्रवार को सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान शुक्रवार को जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने याचिकाकर्ता को बताया कि इस मामले जो प्राथमिकी एसीबी में दर्ज हुई थी, वह पूर्व में ही (19 दिसंबर को) निरस्त हो चुकी है.
ऐसे में जब मामला ही नहीं है, तो याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा-82 के तहत कार्रवाई क्यों हो रही है? मामले में एसीबी के अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गयी. लेकिन कोई अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है.
बीके त्रिपाठी की याचिका पर निरस्त किया था केस : हाइकोर्ट ने मामले के आरोपी पूर्व स्वास्थ्य सचिव बीके त्रिपाठी व अन्य की ओर से दायर क्रिमिनल याचिका पर सुनवाई करते हुए 19 दिसंबर 2017 को केस को निरस्त कर दिया था. पर इसके बाद भी एसीबी के अधिकारियों ने रिनपास के पूर्व प्रभारी निदेशक सह चिकित्सा अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग को 23 फरवरी को श्मशान घाट से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. डॉ अमूल रंजन के रिनपास परिसर स्थित आवास में 13 मार्च को इश्तेहार चिपका दिया. उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया था. अब अदालत ने शुक्रवार को डॉ अमूल रंजन की ओर से दायर क्वैशिंग याचिका को निष्पादित कर दिया. साथ ही इस मामले में नये सिरे से प्राथमिकी दर्ज करने के लिए एसीबी को छूट प्रदान की. प्रार्थी की अोर से वरीय अधिवक्ता आरएस मजूमदार ने बहस की.
क्या है प्रक्रिया
रजिस्ट्रार जनरल अंबुज नाथ के अनुसार, हाइकोर्ट द्वारा पारित आदेश की सत्यापित प्रति (कॉपी ) वादी और प्रतिवादी को खुद लेनी पड़ती है. हाइकोर्ट सिर्फ निचली अदालत को मामले में हुए निर्णय से अवगत कराता है.
क्या था मामला
एसीबी ने रिनपास में नियुक्ति, प्रोन्नति, टेंडर और किताब खरीद व अन्य वित्तीय गड़बड़ी की जांच सरकार के निर्देश पर 2015 में शुरू की थी. जांच में रिनपास में नियुक्ति के अलावा निर्माण कार्य, दवा खरीद और लाइब्रेरी के लिए पुस्तक खरीदने में हुई घोटाले की बात सामने आयी थी. तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह व हेमलाल मुर्मू, सचिव बीके त्रिपाठी, डॉ अमूल रंजन, डॉ अशोक नाग सहित रिनपास के कई कर्मियों को दोषी पाया. गिरफ्तारी के बाद एसीबी के अधिकारी डॉ अशोक नाग से विभिन्न बिंदुओं पर पूछताछ कर रहे हैं.
जब प्राथमिकी निरस्त हो गयी, तो कोई मामला ही नहीं रह गया. इस कारण बनाये गये आरोपियों के खिलाफ मामला नहीं चल सकता है. यदि कोई गड़बड़ी का सबूत मिलता है, तो निगरानी नये सिरे से कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है.
– आरएस मजूमदार, वरीय अधिवक्ता
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement