!!गुरुस्वरूप मिश्रा!!
Advertisement
केरल की तर्ज पर नजीर पेश करें गांवों के राजा, तब हो सकेगा झारखंड का असली विकास
!!गुरुस्वरूप मिश्रा!! पंचायती राज व्यवस्था का नाम लेते ही अक्सर जेहन में केरल की तस्वीर उभरने लगती है. देश के रोल मॉडल इस प्रदेश में गांव की सरकार, ग्राम सभा की ताकत और पंचायतों में विकास की झलक देखते ही बनती है. ब्लॉक या जिला का चक्कर लगाये बिना पंचायत सचिवालय में ही हर काम […]
पंचायती राज व्यवस्था का नाम लेते ही अक्सर जेहन में केरल की तस्वीर उभरने लगती है. देश के रोल मॉडल इस प्रदेश में गांव की सरकार, ग्राम सभा की ताकत और पंचायतों में विकास की झलक देखते ही बनती है. ब्लॉक या जिला का चक्कर लगाये बिना पंचायत सचिवालय में ही हर काम चुटकी में हो जाता है. इसकी खास वजह सरकार का पंचायतों पर पूरा भरोसा और उन्हें अधिकार देने की दृढ़ इच्छाशक्ति है. इस कसौटी पर झारखंड खरा नहीं उतर पा रहा. वैसे सात साल के मासूम से इतनी उम्मीदें की भी नहीं जा सकती हैं. इसके बावजूद झारखंड की पंचायतें सकारात्मक बदलाव से उम्मीद बंधाती हैं. राज्य सरकार तीसरी सरकार पर भरोसा कर उसे फंड, शक्ति और आधारभूत संरचनाओं से लैस करे, तो झारखंड की पंचायतें भी देश के लिए नजीर बन सकती हैं.
समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक विकास की किरणें पहुंच सकें, इसके लिए पंचायती राज व्यवस्था की परिकल्पना की गयी थी. लंबे अरसे के बाद झारखंड में वर्ष 2010 में पहली बार पंचायत चुनाव तो हुए, लेकिन सात साल बाद भी पूरी व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पायी है. राज्य की 4402 पंचायतों में कुछ पंचायतें विकास के आईने से सुकून देती हैं, लेकिन अधिकतर पंचायतों से निराशा हाथ लगती है. पंचायत सचिवालयों के अच्छे भवन हैं, लेकिन आधारभूत संरचनाओं का घोर अभाव है. कुछ पंचायत सचिवालयों में ताला लटका दिखेगा. अगर खुला हुआ है, तो वहां न तो पंचायत सचिव दिखेंगे, न रोजगार सेवक और न ही मुखिया. कंप्यूटर है, तो नेटवर्क नहीं. पंचायतों की कमेटियां हैं, लेकिन कमेटी के सदस्यों को ही मालूम नहीं कि वो किस कमेटी के सदस्य या पदाधिकारी हैं. अब ऐसे में भला पंचायतों की सूरत कैसे बदलेगी ?
सरकार को पंचायतों पर भरोसा करना होगा. उसे पर्याप्त फंड, पूरी शक्ति और मानव संसाधनों से लैस करना होगा. कार्यसंस्कृति विकसित होगी, तभी जनता का उससे जुड़ाव होगा. पंचायत प्रतिनिधियों को पूरी शक्ति मिलने से राजस्व वसूली समेत अन्य कार्यों से पंचायतें सशक्त होंगी. इसके बाद ही वह आत्मनिर्भर बन सकेंगी. पर्याप्त फंड का अभाव और कागजी शक्ति के कारण चाहकर भी पंचायत प्रतिनिधि क्षेत्र का समुचित विकास नहीं कर पा रहे हैं.
पंचायत प्रतिनिधियों को नियमित प्रशिक्षण देने की जरूरत है, ताकि कार्यप्रणाली और सरकार की विभिन्न योजनाओं से वह अवगत हो सकें. उन्हें अधिकार व कर्तव्य की पूरी जानकारी मिल सके. डॉक्यूमेंटेशन व राशि के सदुपयोग समेत अन्य बारीकियों से रू-ब-रू होने के लिए भी प्रशिक्षण जरूरी है. जनप्रतिनिधि सजग व जागरूक होंगे, तो पंचायतें खुद ही तेज रफ्तार से विकास के साथ कदमताल कर सकेंगी.
पंचायत प्रतिनिधियों को कंप्यूटर का प्रशिक्षण मिले, तो इसका काफी असर दिखेगा. इससे अनभिज्ञ होने के कारण भी पंचायतें तकनीकी रूप से पिछड़ रही हैं. जानकारी के अभाव में कई पुरस्कारों से वह वंचित हो जा रही हैं. तकनीकी कौशल होने पर न सिर्फ पंचायतें पुरस्कृत होंगी, बल्कि लाखों की राशि भी पंचायतों को मिल सकेगी. इसके लिए वेबसाइट http://panchayataward.gov.in पर विस्तृत जानकारी ली जा सकती है.
पंचायतों के विकास में जागरूक ग्रामीणों की अहम भूमिका है. वह सजग और विकास के सहभागी होंगे, तो पंचायत प्रतिनिधि जिम्मेदार बनेंगे ही. ग्रामीणों को मॉनिटर की भूमिका निभानी चाहिए. ग्रामसभा में दमदार उपस्थिति दर्ज कराते हुए विकास योजनाओं पर पैनी नजर रखनी चाहिए. इसके लिए बेवसाइट www.panchayatonline.gov.in एवं www.panchayatportals.gov.in पर जानकारी ली जा सकती है.
झारखंड में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने की बजाए पंचायत राज स्वशासन परिषद, ग्राम विकास समिति व आदिवासी विकास समिति समेत अन्य नई समितियों के गठन पर जोर दिया जा रहा है. इसकी बजाए पंचायतों को और मजबूत बनाने के लिए राजस्व संग्रह की दिशा में पहल करनी चाहिए. बेवजह दखल देने और इंप्लीमेंटिंग एजेंसी समझकर पंचायतों पर हर चीज थोपने की जगह पंचायतों के प्रति उदारता दिखाई जाये, तो इनकी दशा-दिशा बदलते देर नहीं लगेगी.
प्रदेश के पंचायत प्रतिनिधियों को केरल, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों की मॉडल पंचायतों से रू-ब-रू कराया जाये, ताकि वह खुद की पंचायत के विकास का आंकलन कर सकें और उससे प्रेरणा ले सकें. इससे उनका पंचायत को लेकर नजरिया बदलेगा.
पंचायतों की मजबूती को लेकर राज्य में करीब 17,500 पंचायत स्वयंसेवकों की नियुक्ति की गयी है. प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, शौचालय का निर्माण, घर-घर जाकर वृद्धा व विधवा पेंशन, जाति, आवासीय व आय प्रमाणपत्र भरना और उन्हें नि:शुल्क उपलब्ध करा देना है. इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जानी है. हद तो यह है कि महीनों से प्रोत्साहन राशि का इंतजार करना पड़ रहा है. ससमय प्रोत्साहन राशि मिले और पंचायत सचिवालय में बैठने की व्यवस्था कर दी जाये, तो ये काफी कारगर साबित होंगे.
झारखंड जिला परिषद संघ सह कोडरमा जिला परिषद की अध्यक्ष शालिनी गुप्ता कहती हैं कि फंड, फंक्शन एवं फंक्शनरिज हों, तभी पंचायतें आदर्श बन सकेंगी. विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बेहतर कार्य करने की कोशिश की जा रही है. झारखंड की पंचायतों को जमीनी स्तर पर मजबूत की जरूरत है.
मुझे मेरा अधिकार मिले, बदल देंगे पंचायतों की सूरत-विकाश कुमार महतो
झारखंड मुखिया संघ के प्रदेश संयोजक विकाश कुमार महतो कहते हैं कि सरकार साजिश के तहत पंचायतों को कमजोर करने पर तुली है. पंचायतस्तरीय कर्मियों की सेवा पंचायतों को हस्तांतरित कर निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों को उनका पूरा अधिकार मिले, तो वो पंचायतों की सूरत बदल देंगे. सरकार भरोसा तो करे.
साजिश के तहत पंचायतों को किया जा रहा कमजोर-अनिल टाइगर
रांची जिला परिषद के सदस्य (कांके) अनिल टाइगर कहते हैं कि 20 सूत्री समेत अन्य नई-नई समितियों का गठन कर पंचायतों को कमजोर किया जा रहा है. साजिश के तहत पंचायत प्रतिनिधियों को उनका अधिकार नहीं दिया जा रहा है. इस कारण वह उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. इससे उनमें आक्रोश भी है.
ससमय मिले प्रोत्साहन राशि, तो बढ़ेगा मनोबल-चंद्रदीप कुमार
राज्यस्तरीय पंचायत सचिवालय स्वयंसेवक संघ के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रदीप कुमार कहते हैं कि पंचायतों के विकास को लेकर पंचायत स्वयंसेवकों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी है. अगर उन्हें ससमय प्रोत्साहन राशि दे दी जाये और पंचायत सचिवालयों में बैठने की व्यवस्था उपलब्ध करा दी जाये, तो वो और बेहतर सेवा दे सकेंगे.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement