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कुरमी-तेली को आदिवासी बनाने की मांग के विरोध में महारैली, कहा, दूसरों को आदिवासी बनाया, तो जातीय संघर्ष तय

रांची : कुरमी और तेली को आदिवासी बनाने की मांग के विरोध में गुरुवार को मोरहाबादी में 32 आदिवासी जाति बचाओ महारैली आयोजित की गयी. रैली में संकल्प लिया गया कि किसी भी हाल में अन्य जातियों को झारखंड के आदिवासियों की सूची में शामिल नहीं होने दिया जायेगा. जरूरत पड़ी तो भगवान बिरसा मुंडा […]

रांची : कुरमी और तेली को आदिवासी बनाने की मांग के विरोध में गुरुवार को मोरहाबादी में 32 आदिवासी जाति बचाओ महारैली आयोजित की गयी. रैली में संकल्प लिया गया कि किसी भी हाल में अन्य जातियों को झारखंड के आदिवासियों की सूची में शामिल नहीं होने दिया जायेगा.
जरूरत पड़ी तो भगवान बिरसा मुंडा से प्रेरणा लेकर उलगुलान किया जायेगा. साथ ही चेतावनी देते हुए कहा गया कि किसी अन्य जाति को आदिवासी बनाये जाने पर राज्य में जातीय संघर्ष तय है, जिसकी पूरी जवाबदेही राज्य सरकार की होगी. रैली के दौरान 20 दिसंबर को कोल विद्रोह दिवस के मौके पर मोरहाबादी मैदान में ही राज्य स्तरीय महारैली करने का प्रस्ताव पारित किया गया.
पूर्व मंत्री व 32 आदिवासी जाति रक्षा समन्वय समिति के संयोजक देवकुमार धान ने कहा कि कुरमी जाति के लोग स्वयं के आदिवासी बन जाने पर 52 प्रतिशत आबादी होने और राज्य के आदिवासी राज्य बन जाने की बात प्रचारित कर रहे हैं. लेकिन, राज्य के आदिवासियों को ऐसा आदिवासी राज्य नहीं चाहिए, जिससे मूल आदिवासी ही खत्म हो जायें.
कुरमी जाति के लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. आदिवासियों को किसी की हमदर्दी नहीं चाहिए. श्री धान ने कहा कि कुरमी व तेली आदिवासी बनाये गये तो आदिवासियों को मिलने वाला पूरा लाभ उनसे छीन लिया जायेगा. आदिवासी समुदाय के सांसद, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि, जमीन, भाषा-संस्कृति सभी चीजें छीन ली जायेगी.
कार्यक्रम की अध्यक्षता बैजू मुर्मू ने और संचालन विनोद भगत ने किया. महारैली में अनिल कुमार बेदिया, निरंजना हेरेंज टोप्पो, नारायण उरांव, कुलदीप तिर्की, पीटर बेग, भुईहर मुंडा, विश्वनाथ गौड़, सनिका मुंडा, आशीष सिंह चैरो, सैमसन बेक, शिबू उरांव, मार्शल बारला, मोती कच्छप समेत अन्य वक्ताओं ने अपने विचार रखे.
रैली में पारित किये गये ये प्रस्ताव
स्थानीय नीति बदल कर झारखंडियों के लिए आरक्षित किया जाये
भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को खारिज किया जाये
कुरमी को आदिवासी बनाने की मांग करने वाले दल एवं विधायकों का बहिष्कार एवं गांव में घुसने नहीं देंगे
मोमेंटम झारखंड और ग्राउंड ब्रेकिंग के नाम पर आदिवासी व कृषि योग्य भूमि की लूट बंद हो
20 दिसंबर को कोल विद्रोह के दिन रांची में होगी बड़ी महारैली
कुरमी, तेली सहित किसी भी अन्य जातियों को आदिवासी सूची में शामिल करने के प्रस्ताव का विरोध
सरना आदिवासी को सनातन व हिंदू नहीं कहा जाये
सरना धर्म कोड लागू किया जाये
आदिवासी विरोधी हैं पांच पार्टियां : सघनू भगत
पूर्व मंत्री सघनू भगत ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आजसू और झाविमो आदिवासी विरोधी पार्टियां हैं. इन दलों के 52 विधायकों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास से कुरमी को आदिवासी बनाने की मांग की है. इसलिए इन दलों के विधायकों का सामाजिक बहिष्कार किया गया है. इसके साथ ही उनको गांव में घुसने नहीं दिया जायेगा.
… तो खत्म हो जायेंगे आदिवासी : प्रो उरांव
रैली को संबोधित करते हुए प्रो प्रवीण उरांव ने कहा कि झारखंड के आदिवासी एकजुट नहीं हुए, तो वह खत्म हो जायेंगे. आरएसएस एवं भाजपा पहले से ही सरना आदिवासियों पर हमला कर रही है. सनातन और हिंदू बता कर उनके अस्तित्व को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है.
आदिवासी हितैषी नहीं है सरकार: देवंेद्र चंपिया
बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ चंपिया ने कहा कि सीएनटी, एसपीटी और भूमि अधिग्रहण में संशोधन करने वाली सरकार कभी आदिवासी हितैषी नहीं हो सकती. सरकार की स्थानीय नीति से पूरे देश के लोग स्थानीय हो गये हैं. राज्य का माहौल फिर से बिहार जैसा हो गया है.
हर हाल में लागू हो सरना धर्म कोड : वीरेंद्र भगत
वीरेंद्र भगत ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों की हितैषी होने का दावा करने वाली भाजपा को सरना धर्म कोड लागू करना चाहिये. एक तरफ आदिवासी को सनातन हिंदू कहना और दूसरी तरफ खुद को आदिवासी हितैषी बताने की दोहरी नीति अब नहीं चलेगी. इसका विरोध होगा.
32 जनजातियों के प्रतिनिधियों ने लिया हिस्सा
मोरहाबादी में आयोजित रैली में 32 आदिवासी जनजाति असुर, बैगा, बंजारा, बाथुड़ी, बेदिया, बिंझिया, बिरहोर, बिरजिया, चीक बड़ाईक, गोंड, गोड़ाईत, हो, करमाली, खड़िया, खरवार, खौंड, किसान, नागेसिया, कोरा, कोरवा, लोहरा, महली, माल पहाड़िया, मुंडा पातर, उरांव, परहईया, संथाल, सौरिया पहाड़िया, सदर, भुमिज, कवर और कोल के प्रतिनिधियों समेत राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासी लोगों ने हिस्सा लिया.

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