झारखंड : गांवों को औसतन 14 और शहरों को आठ घंटे नहीं मिल रही है बिजली
राजधानी रांची समेत पूरे झारखंड में बदहाल है बिजली आपूर्ति की स्थिति राजधानी समेत पूरे झारखंड में बिजली की स्थिति बदहाल है. तेनुघाट की एक यूनिट को छोड़ कर राज्य सरकार के किसी भी पावर प्लांट से बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है. खरीद कर बिजली की आपूर्ति करने के लिए ट्रांसमिशन लाइनें नहीं […]
राजधानी रांची समेत पूरे झारखंड में बदहाल है बिजली आपूर्ति की स्थिति
राजधानी समेत पूरे झारखंड में बिजली की स्थिति बदहाल है. तेनुघाट की एक यूनिट को छोड़ कर राज्य सरकार के किसी भी पावर प्लांट से बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है. खरीद कर बिजली की आपूर्ति करने के लिए ट्रांसमिशन लाइनें नहीं हैं. राज्य गठन के समय शुरू किया गया अंडरग्राउंड केबलिंग का काम अब तक पूरा नहीं हो सका है. निर्बाध बिजली की समुचित व्यवस्था पूरे राज्य में कहीं नहीं की जा सकी है. हल्की बारिश या तेज हवा चलने पर ग्रिड फेल हो जाते हैं. उनको बनाने में घंटों समय लगता है.
रांची : पूरे झारखंड में कहीं भी बिजली की निर्बाध आपूर्ति नहीं की जा रही है. ग्रामीण इलाकों को 14 घंटे बिजली नहीं मिल रही है. वहीं, राजधानी समेत सभी शहरी क्षेत्रों में आठ घंटे बिजली नहीं मिल रही है.
इधर, राज्य में हर दिन करीब 2100 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होती है, जबकि उत्पादन केवल 130 मेगावाट ही हो रहा है. पॉवर प्लांटों से उत्पादन लगातार घटता जा रहा है. राज्य गठन के बाद दो निजी कंपनियों इनलैंड पावर से 55 मेगावाट व आधुनिक पावर से 122 मेगावाट अतिरिक्त बिजली राज्य को मिल रही है.
पीटीपीएस साल भर पहले ही बंद हो चुका है. अगले पांच वर्षों तक उससे उत्पादन शुरू नहीं किया जा सकता है. सिकिदरी हाइडल पावर प्लांट से केवल बरसात में ही बिजली का उत्पादन होता है. अब टीवीएनएल भी क्षमता के अनुरूप उत्पादन करने में अक्षम हो गया है.
टीवीएनएल प्लांट के लिए सीसीएल से कोयला खरीदता है. सीसीएल का 335 करोड़ रुपये टीवीएनएल पर बकाया हो गया है. इस वजह से सीसीएल ने टीवीएनएल को कोयले की आपूर्ति कम कर दी है. कोयले की कमी की वजह से पिछले 15 दिनों से टीवीएनएल की सिर्फ एक यूनिट से केवल 130 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो रहा है.
हर महीने खरीद रहे 370 करोड़ की बिजली : राज्य में बिजली कीमांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. जरूरत के मुताबिक, बिजली उत्पादन नहीं होने से झारखंड बिजली वितरण निगम करीब 370 करोड़ रुपये की बिजली प्रतिमाह बाजार से खरीदता है. वर्ष 2010 में राज्य में 14 लाख बिजली के उपभोक्ता थे, जो 2018 में बढ़कर 26 लाख हो गये हैं. उस समय 82 करोड़ यूनिट बिजली की खपत प्रतिमाह होती थी. राजस्व 125 करोड़ मिलता था, जबकि खर्च 260 करोड़ रुपये प्रतिमाह था.
देखना पड़ता है दूसरे राज्यों का मुंह
राज्य के कई जिलों में बिजली के लिए हमें दूसरे राज्यों का मुंह देखना पड़ता है. गढ़वा जिले में आज भी यूपी पर ही बिजली की निर्भरता है. दुमका समेत संताल परगना में पूरी व्यवस्था बिहार व एनटीपीसी के कहलगांव पावर प्लांट पर टिकी है. इसे ललपनिया और पतरातू से जोड़ने का काम आज तक नहीं हो सका है. गर्मी में बिजली का नहीं रहना लोगों को भारी कष्ट दे रहा है. कई जिलों में लोग बिजली की वजह से रात को सो नहीं पा रहे हैं. उनको पीने के लिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.