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रांची : जनजातीय बच्चों को मातृभाषा में दी जाये 12वीं तक की शिक्षा

आदिवासी भाषा-साहित्य पर आयोजित सेमिनार में प्रो कट्टीमनी ने कहा रांची : इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति प्रो टीवी कट्टीमनी ने कहा कि जनजातीय बच्चों को 12वीं कक्षा तक उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा मिलनी चाहिए़ अमरकंटक में अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान बनायेंगे़ वह ‘आदिवासी भाषा-साहित्य का विकास’ विषयक दो दिवसीय सेमिनार के […]

आदिवासी भाषा-साहित्य पर आयोजित सेमिनार में प्रो कट्टीमनी ने कहा

रांची : इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति प्रो टीवी कट्टीमनी ने कहा कि जनजातीय बच्चों को 12वीं कक्षा तक उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा मिलनी चाहिए़ अमरकंटक में अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान बनायेंगे़ वह ‘आदिवासी भाषा-साहित्य का विकास’ विषयक दो दिवसीय सेमिनार के उदघाटन के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे़

अमरकंटक जनजातीय विवि में आरक्षण राेस्टर विवाद पर उन्होंने कहा कि निर्णय रोक लिया गया है़, अब सब पूर्ववत होगा़ उन्होंने बताया कि विवि के 17 फीसदी शिक्षक व लगभग 42 फीसदी विद्यार्थी जनजातीय हैं. टाॅप टेन में कई जनजातीय विद्यार्थी अपनी जगह बनाते हैं. यह आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक, अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच व रमणिका फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से राजधानी के प्रेस क्लब में किया है़

अपने बूते स्वतंत्र रूप से खड़े हों आदिवासी : विशिष्ट अतिथि रमणिका गुप्ता ने कहा कि रमणिका फाउंडेशन अपनी संस्थाओं को स्वायत्त बनाने की प्रक्रिया शुरू कर चुका है़

इसने विगत 15 वर्षों से आॅल इंडिया ट्राइबल लिट्रेरी फोरम चलाया है़ अब लोग इसे खुद संभालेंगे़ उन्होंने कहा कि भाषा बचाने वाले आम आदमी होते हैं. साहित्यकार बस इसे परिष्कृत करता है़ फाउंडेशन ने शुरू से ही शोध कार्य पर बल दिया है़ हम मानते हैं कि भोगनेवाला व्यक्ति अपनी बातों को बेहतर तरीके से अभिव्यक्त कर सकता है़

आदिवासी भाषाएं बोलने वाले बहुत, लिखने वाले कम : डॉ निर्मल मिंज ने कहा कि किसी भाषा में बोलने व लिखने में अंतर है़ आदिवासी भाषाओं में बोलने वाले बहुत, पर लिखने वाले अत्यंत कम हैं.

अपनी भाषा में लिखे बिना काम नहीं चलेगा़ लोग इससे ही जुड़ेंगे़ यदि प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा में पढ़ायी होगी, तो बदलाव दिखेगा़ सरकार आदिवासियों को जनजाति बोलती है, जबकि उन्हें आदिवासी बोलना चाहिए़

झारखंड में आदिवासियों के सवालों पर ध्यान नहीं दिया जाता़ ऐसे में एक बड़ा आंदोलन अवश्यंभावी हो जायेगा, जिसे कोई रोक नहीं सकेगा़ वासवी किड़ो ने कहा कि यहां की सरकारों ने झारखंड के साथ खिलवाड़ किया, इसलिए संघर्ष अब तक जारी है़

राज्य गठन के बाद जमीन के मुद्दे पर ही यहां सात गोलीकांड हुए हैं. त्रिपुरा से आये विकास राय देब वर्मा ने कहा कि कोकबोरोक भाषा के 600 से अधिक शिक्षक हैं, पर उन्हें पढ़ाने का काम नहीं दिया जा रहा है़ सरकार के पास इस भाषा के विकास के लिए कोई योजना नहीं है़ उसने इसका शब्दकोश तक नहीं प्रकाशित किया है़

किसी भी आदिवासी भाषा में स्त्री का अपमान नहीं: हरिराम मीणा ने कहा कि आदिवासी साहित्य सिर्फ मनुष्य ही नहीं, मानवेतर जगत की भी बात करता है़

आदिवासी दर्शन में स्त्री को बराबरी का दर्जा दिया जाता है़ किसी भी आदिवासी भाषा में स्त्री सूचक गालियां नहीं हैं. आदिवासी दर्शन या आदिवासी मानसिकता को समझे बिना हम आदिवासी साहित्य की रचना नहीं कर सकते़ शिलांग, मेघालय की स्ट्रीमलेट डकार ने कहा कि यह खासी लिपि का 176वां साल है़

यह भाषा काफी विकसित हुई है और काफी लेखन कार्य हो रहा है़ इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का संघर्ष चल रहा है़ मिजोरम के प्रो एलटी लियाना खियांग्ते ने कहा कि साहित्य अकादमी ने इस भाषा को मान्यता नहीं दी है़ केंद्र सरकार से किसी तरह का अनुदान नहीं मिलता़ मेघालय की मीनीमोन लालो ने कहा कि खासी भाषा में 1895 से अब तक 50,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं.

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसे अब तक संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है़ प्रो निशिता खलखो ने कहा कि जनजातीय भाषाओं को संरक्षित करने की नहीं, रोजगार से जोड़ने की जरूरत है, तभी ये बचेंगे़ मौके पर कवि अनुज लुगुन, महादेव टोप्पो, डॉ वीरेंद्र कुमार सोय, डॉ नारायण, श्रीप्रकाश व अन्य मौजूद थे़

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