रांची / पटना : चर्चित अलकतरा घोटाले के सभी छह आरोपितों को अदालत ने दोषी पाते हुए पांच-पांच वर्ष कैद के साथ अधिकतम 25 लाख रुपये का जुर्माना अदा करने की सजा सुनायी है. मालूम हो कि एकीकृत बिहार में वर्ष 1992-93 में अलकतरा घोटाला हुआ था. उसके बाद वर्ष 1997 में सीबीआई ने मामला दर्ज किया था, जिस पर शनिवार को यह फैसला करीब 21 वर्षों बाद आया है.
जानकारी के मुताबिक, एकीकृत बिहार व वर्तमान में झारखंड के हजारीबाग में सड़क निर्माण विभाग के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता मो इशाक को पांच वर्ष की सजा और 24 लाख रुपये अर्थदंड की सजा शनिवार को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश अनिल कुमार मिश्र ने सुनायी. साथ ही घोटाले के अन्य आरोपित आरएस मंडल, आशीष मेथी, विनय कुमार सिन्हा, अशोक अग्रवाल और रंजन प्रधान को भी पांच-पांच साल की सजा के साथ-साथ 25-25 लाख का अर्थदंड की सजा सुनायी गयी.
क्या है अलकतरा घोटाला
एकीकृत बिहार व वर्तमान में झारखंड के हजारीबाग क्षेत्र के अंतर्गत सड़क निर्माण में फर्जी कागजात के जरिये अलकतरा की खरीदारी कर लाखों रुपये की सरकारी राशि का गबन किया गया था. अफसरों, ठेकेदारों, इंजीनियरों और बिचौलियों की मिलीभगत से दो वर्षों में 50 करोड़ से अधिक का अलकतरा घोटाला हो गया. कैग की जांच में खुलासा हुआ कि केरोसिन की रसीद के नाम पर अलकतरा की खरीदारी कर ली गयी है. जिन प्रतिष्ठानों से खरीदारी के दस्तावेज जमा किये गये, उनका जमीन पर कहीं अस्तित्व भी नहीं था. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, बिटुमिन की 352 रसीदों में से 41 की जांच में पाया गया कि मार्च 2007 और फरवरी 2008 में तीन मीट्रिक टन बिटुमिन की खरीदारी हुई है. वहीं, इस अवधि में एचपीसीएल कंपनी से एक करोड़ सात लाख रुपये की बिटुमिन की खरीद दिखायी गयी है. वहीं, जांच में पाया गया है कि इस अवधि में कंपनी के गोदाम में बिटुमिन ही नहीं था. उसके बाद कैग ने बताया कि 352 रसीदें संदेह के घेरे में हैं. मामले का खुलासा होने के बाद सीबीआई ने वर्ष 1997 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. सीबीआई ने मामले में कुल 16 लोगों को आरोपित किया.