जहां काजू की जरूरत है, वहां मूंगफली से काम चलाइयेगा, तो मरीज कैसे ठीक होगा

ब्रांडेड दवाएं लिखने को लेकर रिम्स प्रबंधन को अजीब सा तर्क देते हैं डॉक्टर रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के डॉक्टर भर्ती मरीजों को ब्रांडेड दवाएं ही लिखते हैं. ये दवाएं गरीब मरीजों को बाहर से खरीद कर लानी पड़ती हैं, जो काफी महंगी होती हैं. रिम्स प्रबंधन के पास जब इसकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 22, 2018 6:13 AM
ब्रांडेड दवाएं लिखने को लेकर रिम्स प्रबंधन को अजीब सा तर्क देते हैं डॉक्टर
रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के डॉक्टर भर्ती मरीजों को ब्रांडेड दवाएं ही लिखते हैं. ये दवाएं गरीब मरीजों को बाहर से खरीद कर लानी पड़ती हैं, जो काफी महंगी होती हैं.
रिम्स प्रबंधन के पास जब इसकी शिकायत पहुंचती है और प्रबंधन द्वारा डॉक्टरों से पूछा जाता है, तो वह ब्रांडेड व जेनेरिक के निर्माण की प्रक्रिया समझाने लगते हैं. रिम्स के एक अधिकारी ने बताया कि सीनियर डॉक्टर यहां तक कहते हैं कि जहां काजू (ब्रांडेड दवा) की जरूरत है, वहां आपलोग मूंगफली (जेनेरिक दवा) से काम चलाना चाहते हैं. इसके बाद भी आप उम्मीद रखते हैं कि मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो जाये.
सोमवार को रिम्स के हड्डी व न्यूरो विभाग में मरीज के परिजनों को डॉक्टर राउंड के बाद ब्रांडेड दवाएं लिखीं. परिजनों को कहा गया कि जो दवाएं लिखी जा रही हैं, उसी को लाना है.
अगर इधर-उधर की दवाएं लाये, तो मरीज ठीक नहीं होगा. मरीज के परिजन जब दवा खरीदने गया, तो दवाओं की कीमत सुनकर वह लाैट आये. परिजन का कहना था कि उसके पास इतने पैसे ही नहीं है. वहीं, मरीज को जो दवाएं लिखी गयी थी, उसका अगर जेनेरिक मंगाया जाता, तो आधा से भी कम खर्च में मरीज का इलाज हो जाता.
मरीजों से पूछते हैं : सक्षम हैं, तो बाहर की दवा लिख दें
रिम्स के ओपीडी में परामर्श लेने पहुंचे मरीजों को डॉक्टर जब दवाएं लिखते हैं, तो उनसे पूछते हैं कि बाहर की दवाएं लिख दें. सक्षम हैं, तो बाहर की दवाएं ले लीजिये. यह ज्यादा कारगर है. वैसे आप कहेंगे, तो हम रिम्स की दवाएं भी लिख देंगे. रिम्स के बच्चा विभाग के ओपीडी में मारूति नंदन को रिम्स में ऐसा ही हुआ. डॉक्टरों ने रिम्स की उपलब्ध दवाओं की जगह ब्रांडेड दवाएं लिख दीं.
मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया ने जारी किया था निर्देश
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने बीते साल ही सभी डॉक्टरों के लिए दवाओं का जेनेरिक नाम कैपिटल और स्पष्ट अक्षर में लिखना अनिवार्य कर दिया था. साथ ही कहा था कि अगर डॉक्टरों ने इस आदेश का पालन नहीं किया, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी.
इसके तहत एमसीआइ संबंधित डॉक्टर का लाइसेंस तक रद्द कर सकती है. एमसीआइ ने सभी राज्य सरकारों, राज्य आयुर्विज्ञान परिषदों, अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को भी इस निर्देश का पालन करवाने को कहा था.
विभागाध्यक्षों से मांगी गयी दवाओं की लिस्ट
रिम्स प्रबंधन ने विभागाध्यक्षों व यूनिट इंचार्ज से दवाओं की लिस्ट मांगी है. उनसे पूछा गया है कि उनके वार्ड में मरीजों को कौन-कौन सी दवाओं की आवश्यकता है. लेकिन विभागाध्यक्षों व यूनिट इंचार्ज ने अभी तक दवाओं की लिस्ट नहीं भेजी है.
हर ड्रग कंपनी 20 फीसदी जेनेरिक दवाएं तैयार करती है. विदेशों में जेनेरिक दवाएं ही चलती हैं. विकसित देश होने के बावजूद वहां ब्रांड के नाम से दवाएं नहीं दी जाती है. यह सरासर गलत है कि जेनेरिक दवाएं कारगर नहीं होती हैं. मैं खुद जेनेरिक दवाएं खाता है और ठीक हूं.
डॉ सुमंत मिश्रा, निदेशक प्रमुख, स्वास्थ्य सेवाएं
अस्पताल के सभी डॉक्टरों को सख्त हिदायत है कि वे मरीजों की पर्ची पर दवाओं के जेनेरिक नाम और उनका कंपोजिशन भी लिखें. इसके बाद मरीज जेनेरिक दवा खरीदे या ब्रांडेड, यह उस पर निर्भर करता है. इसकी जांच करायी जायेगी कि अस्पताल में आदेश का पालन हो रहा है या नहीं.
डॉ आरके श्रीवास्तव, निदेशक रिम्स

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