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प्रधानमंत्री आज रांची में, पिछड़े जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली पर देना होगा जोर

राज्य के 24 में से 19 जिले अति पिछड़े और नक्सल प्रभावित है़ं जंगल और दुर्गम पहाड़ों से घिरे इस राज्य के विकास को समझने के लिए यह आंकड़ा काफी है़ ये आदिवासी बहुल जिले है़ं इन जिलों के हालत बदतर हैं. झारखंड का समेकित और संतुलित विकास करना है, तो इन जिलों पर विशेष […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2018 7:18 AM
राज्य के 24 में से 19 जिले अति पिछड़े और नक्सल प्रभावित है़ं जंगल और दुर्गम पहाड़ों से घिरे इस राज्य के विकास को समझने के लिए यह आंकड़ा काफी है़ ये आदिवासी बहुल जिले है़ं इन जिलों के हालत बदतर हैं.
झारखंड का समेकित और संतुलित विकास करना है, तो इन जिलों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है़ केंद्र और राज्य सरकार का विशेष जोर भी है़ स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त करना होगा. पीएम आज रांची में इन 19 में से 10 जिलों के उपायुक्तों से बात करेंगे और इन जिलों में विकास गति पकड़े यह सुनिश्चित करेंगे.
पलामू
सड़कें हुईं बेहतर, पर स्वास्थ्य में सुधार की रफ्तार धीमी
मेदिनीनगर : पलामू में आवागमन की स्थिति में सुधार हुआ है. अब गांव जानेवाली सड़कों की स्थिति पहले की अपेक्षा काफी बेहतर है. राष्ट्रीय उच्च मार्ग एनएच-75 व 98 की बात छोड़ दी जाये, तो अन्य सड़कों की स्थिति काफी अच्छी है.
स्वास्थ्य की स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार नहीं हुआ है. प्रमंडलीय मुख्यालय में स्थापित सदर अस्पताल में सुविधाओं का अभाव है. जरूरत के अनुसार डाॅक्टर नहीं हैं. पलामू में बिजली की स्थिति में सुधार हुआ है. पूर्व में बिजली के मामले में पलामू सोननगर व रिहंद के भरोसे था़ बाद में इसे हटिया ग्रिड से जोड़ा गया़
अब लहलहे में स्थापित नेशनल ग्रिड से जुड़ने के बाद पलामू को जरूरत के अनुसार बिजली मिल रही है.औसतन 18 से 20 घंटे बिजली मिल रही है. कानून व्यवस्था की स्थिति भी पहले से बेहतर हुई है. बात यदि उग्रवाद की जाये तो 2016-17 में कोई बड़ी उग्रवादी घटना नहीं हुई है.
साथ ही सक्रिय अपराधियों के गिरोह पर नकेल कसने में भी पुलिस सफल रही है. शिक्षा के मामले में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. वर्ष 2009 में नीलांबर-पीतांबर विवि की स्थापना हुई थी. लेकिन आज भी विवि का प्रशासनिक भवन किराये के भवन में चल रहा है. पेयजल में गांव से लेकर शहर तक में संकट है. शहरी जलापूर्ति योजना फेज टू का कार्य लंबित पड़ा हुआ है.
हजारीबाग
शिक्षा व्यवस्था दयनीय, घरों में नहीं पहुंच रहा पानी
हजारीबाग : हजारीबाग जिले में शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों की कमी के कारण दयनीय स्थिति में पहुंच गयी है.कक्षा एक से आठ तक में एक लाख 92 हजार 629 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. इन्हें पढ़ाने के लिए 2300 शिक्षक की जगह मात्र 1650 शिक्षक हैं. इसी तरह हाई स्कूल की पढ़ाई 44 हजार 219 बच्चे कर रहे हैं. इन्हें पढ़ाने के लिए 1250 शिक्षक की जगह 363 शिक्षक हैं. जिले को 210 मेगावाट बिजली की जरूरत है.
डीवीसी से 138 मेगावाट बिजली की आपूर्ति हो रही है. 72 मेगावाट कम बिजली आपूर्ति से प्रतिदिन आठ घंटा लोड शेडिंग हो रहा है. जिले में घरों तक नियमित पानी नहीं पहुंच पा रहा है. वहीं शहर की आबादी का 40 प्रतिशत हिस्से में पेयजल पाइप लाइन अभी तक नहीं बिछी है. ग्रामीण क्षेत्रों में कुंआ सूखने पर चापानल पर आबादी निर्भर है.
जिले में रखरखाव के अभाव में तीन हजार से अधिक चापानल खराब हैं. सदर अस्पताल में 18 डॉक्टर के पद खाली हैं. हजारीबाग शहर का रिंग रोड पिछले 15 वर्षों से फाइलों पर है. 16 किमी के रिंग रोड को हजारीबाग रामगढ़ रोड से, हजारीबाग बड़कागांव रोड, हजारीबाग चतरा रोड, हजारीबाग कटकमसांडी रोड और हजारीबाग पटना रोड से जोड़ना है.
गिरिडीह
लौह उद्योग की कई फैक्ट्रियां बंद, पलायन को मजबूर लोग
गिरिडीह : अबरख (माइका) के लिए विश्व में अपनी पहचान रखनेवाले गिरिडीह जिले की गिनती अभी भी पिछड़े जिलों में होती है. माइका के अलावा कोयला कंपनी सीसीएल की खनन गतिविधियां भी यहां संचालित हैं. वर्तमान में सीसीएल की कोयला खदानों की हालत भी खराब है. बंदी का खतरा मंडरा रहा है. लौह उद्योग से जुड़ी कई फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं.
ऐसे में 24,45,474 आबादी वाले गिरिडीह जिले के वाशिंदों के सामने रोजी-रोजगार की तलाश में देश के अलग-अलग इलाके में पलायन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. जिले भर में 3418 मवि व प्रावि हैं, जिनमें लगभग 2.50 लाख बच्चे रोजाना पढ़ते हैं. जिले के 1.19 लाख बच्चे हाई स्कूल में अध्ययनरत हैं.
इन बच्चों को पढ़ाने के लिए महज 450 शिक्षक ही कार्यरत हैं. जिले में 157 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं लेकिन वर्तमान में महज 69 चिकित्सक ही इस जिले में पदस्थापित हैं. कोलियरी क्षेत्र के कई इलाके ऐसे हैं जहां पर चापाकल, कुआं फेल हो चुका है. जिले में बिजली की लचर व्यवस्था है. शहरी इलाके में घंटों बिजली गुल रहती है. कई प्रखंडों में तो दो-तीन दिन बिजली नहीं मिल रही है. अभी भी जिले के कई गांव-टोला हैं, जहां पर बिजली नहीं पहुंची है.
साहेबगंज
शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और सड़क की स्थिति दयनीय
साहेबगंज : साहेबगंज जिले के नौ प्रखंडों में 11 लाख 65 हजार आबादी निवास करती है. यह आदिवासी व मुस्लिम बहुल जिला है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पेयजल व सड़क की स्थिति दयनीय है.
पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल की सुविधा को लेकर 320 चापाकल लगाये गये हैं. अनाबद्ध निधि तथा डीएमएफटी राशि से चापाकल का निर्माण किया जा रहा है. एसबीएम व पीएचइडी के तहत 19 बायोडाइजेस्टर टॉयलेट का निर्माण किया जा रहा है. पथ निर्माण एवं आरइओ की ओर से बारिश के पूर्व जिले में 300 किमी सड़क सौ करोड़ की लागत से बनाने की योजना है. शिक्षा की बात करें, तो जिले की शिक्षा दर भी चिंताजनक है.
मात्र 52.04 फीसदी ही लोग साक्षर हैं. पुरुष साक्षरता दर 60.34 और महिला शिक्षा दर 43.31 फीसदी है. इससे प्रतीत होता है कि जिले में शिक्षा विभाग किस तरह का काम कर रहा है. जिले के 1813 गांवों में से 1054 गांवों में बिजली कनेक्शन पहुंच गया है. 227023 घरों में से अब तक 96340 घरों में बिजली पहुंच चुकी है. बिजली कनेक्शन देने का कार्य अभी जारी है.
गढ़वा
पेयजल व सिंचाई की समस्या से जूझ रहे हैं लोग
गढ़वा : अभी भी कई बुनियादी सुविधाओं के मामले में गढ़वा पिछड़ा है. पेयजल एवं सिंचाई की समस्या दशकों पहले की तरह बनी हुई है. हाल के कुछ सालों में जिला मुख्यालय गढ़वा में नगर परिषद बनने के बाद डीप बोरिंग के माध्यम से कुछ हद तक पेयजल की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया गया. लेकिन गढ़वा शहर सहित जिले के सभी शहरी क्षेत्रों में पाइप लाइन के माध्यम से बनायी गयी पेयजलापूर्ति योजना गर्मी में पानी के अभाव में फेल हो जाती है.
ग्रामीण क्षेत्रों में और स्थिति विकराल है. सिंचाई के क्षेत्र में गढ़वा जिला दशकों से पिछड़ा रहा है. जिले का तीन चौथाई क्षेत्र सिंचाई से वंचित है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में गढ़वा सदर अस्पताल की स्थिति में पहले से काफी सुधार हुआ है.
यहां मरीजों की सुविधा में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन चिकित्सक, एएनएम एवं तकनीशियनों के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य उपकेंद्र हाथी के दांत साबित हो रहे हैं. जिले में चलाये गये स्वच्छता अभियान के माध्यम से लोगों में स्वच्छता के प्रति काफी जागरूकता आयी है. जिले के सात प्रखंड ओडीएफ घोषित हो चुके हैं है. जिले में सड़कों की स्थिति काफी सुधरी है, लेकिन कई ग्रामीण सड़कों का निर्माण अभी करना बाकी है.
आज भी अशिक्षित है राजधानी की सात लाख आबादी
रांची : राज्य गठन के 18 साल बाद भी राजधानी पिछड़े जिलों की श्रेणी में आता है. केंद्र का इस पर भी फोकस है. 2011 की जनगणना के अनुसार राजधानी में करीब सात लाख लोग अशिक्षित हैं. यहां की कुल आबादी करीब 30 लाख के आसपास है. इसमें करीब 23 लाख लोग ही शिक्षित हैं.
यहां करीब 2552 सरकारी स्कूल हैं. इसमें करीब पौने चार लाख बच्चों का नामांकन होता है. इसके बावजूद यहां संचालित 606 निजी विद्यालयों पर लोगों का विश्वास है. यहां इलाज के लिए लोगों को निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है. 30 लाख की आबादी के लिए कुल 453 सरकारी स्वास्थ्य केंद्र हैं. इसमें 328 ग्रामीण तथा 25 शहरी क्षेत्रों में हैं. राजधानी में सबसे अधिक अपराध भी होता है.
यहां पिछले माह (अप्रैल) में अपराध के कुल 678 मामले दर्ज किये गये. सामान्य रूप से हर दो से ढाई दिनों में एक लोगों की हत्या होती है. आज भी राजधानी के करीब 50 फीसदी लोगों को सप्लाइ का पानी नहीं मिल पाता है. पिछले 18 साल में पेजयल की कोई नयी योजना पर सरकार ने काम नहीं किया है. इस कारण हर साल गरमी के दिनों में जल संकट होता है.
पूर्वी सिंहभूम
शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था लचर, जलापूर्ति योजना लटकी
नीति आयोग के ताजा आंकड़े के अनुसार पूर्वी सिंहभूम को पूरे देश में 25वां रैंक दिया गया है. पूर्वी सिंहभूम जिले का स्वास्थ्य विभाग डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पद 141 में मात्र 59 ही कार्यरत हैं.वहीं हाइ स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए कुल 649 शिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन सिर्फ 138 शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है. पूर्वी सिंहभूम अति नक्सल प्रभावित जिला की सूची से बाहर हो चुका है.
जिले में कुल 167 जलापूर्ति की योजनाएं चल रही हैं. शहर से सटे बागबेड़ा-गोविंदपुर में 138 करोड़ की लागत से वृहद जलापूर्ति योजना पिछले तीन सालों से अधूरी है. बिजली आपूर्ति के मामले में गरमी में जिले में आठ से 10 घंटे तक बिजली गुल रहती है. इससे पेयजलापूर्ति भी बाधित रहती है. जिले के कुल 217 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां विद्युतीकरण नहीं हुआ है.
पश्चिमी सिंहभूम
बिजली व जल संकट से जूझ रहे हैं जिले के लोग
नीति आयोग के ताजा आंकड़े के अनुसार पश्चिमी सिंहभूम को पूरे देश में 37वां रैंक दिया गया है. पश्चिमी सिंहभूम में जहां वर्तमान में 81.24 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हो पा रहा है, वहीं 78 फीसदी महिलाओं को प्रसवपूर्व देखभाल के लिए पंजीकृत कराया जा सका है.
जिले की 63.41 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में ही अभी बिजली की सुविधा पहुंच सकी है. शहरी क्षेत्र में जहां 24 में से 16 घंटे ही लोगों को बिजली मिल पा रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में सिर्फ 10 घंटे बिजली मिल रही है. जिले में जल संकट भी बरकरार है.
यहां रोजाना जहां प्रति व्यक्ति 130 लीटर पानी की जरूरत है, वहीं विभाग पाइप पेयजलापूर्ति के जरिये प्रति व्यक्ति रोजाना मात्र 70 लीटर पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है. जबकि ग्रामीण क्षेत्र में चापाकल के जरिये प्रति व्यक्ति रोजाना मात्र 40 लीटर पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है. जिले में नक्सल गतिविधियां अब भी बरकरार हैं.
जहां एक ओर वर्तमान में किसन जी, मिसिर बेसार जैसे एक करोड़ के इनामी नक्सली अब भी सक्रिय हैं, वहीं हाल में सुरक्षा बलों ने सारंडा क्षेत्र से नक्सलियों को खदेड़ने में सफलता हासिल की है. पुलिस ने इसी साल सैक सदस्य संदीप दा उर्फ संदीप सोरेन को गिरफ्तार किया.
रामगढ़
सड़कें बेहतर, पर बिजली व शिक्षा में खास सुधार नहीं
रामगढ़ : रामगढ़ जिला में आमतौर पर सड़क की स्थिति बेहतर है. हालांकि कोलियरी क्षेत्र में भारी वाहनों की आवाजाही से सड़कों की स्थिति खराब हो गयी हैै. एनएच के अलावा पथ निर्माण विभाग ने भी कई सड़कों का निर्माण किया है, जिनकी स्थिति बेहतर है. वहीं जिले के लोग बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं. रामगढ़ शहर के कई वार्ड अब भी ग्रामीण फीडर के भरोसे हैं. इन क्षेत्रों में 10 से 15 घंटे विद्युत आपूर्ति हो रही है. रामगढ़ शहर में 18 से 20 घंटे विद्युत की आपूर्ति हो रही है.
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का संकट गहराने लगा है. लोग चुआं का पानी पीने को विवश हैं. रामगढ़ प्रखंड में भी पाइपलाइन से जलापूिर्त नहीं होती है. जिले में शिक्षा के लिए पर्याप्त स्कूल है, लेकिन स्कूलों में शिक्षकों की कमी है. स्वास्थ्य केंद्रों में चििकत्सकों की भारी कमी है. अन्य बुनियादी सुविधाओं की भी घोर कमी है.
खूंटी
10-12 घंटे मिल रही है बिजली जल संकट से लोग परेशान
खूंटी : जिले के कई गांवों में आज भी बिजली नहीं है. पत्थलगड़ी वाले कुछ गांवों में बिजली पोल गाड़ने का काम भी ठप है़ पिछले कई माह से जिले में 10 से 12 घंटे ही विद्युतापूर्ति हो रही है़ इधर, गर्मी में पेयजल एक बड़ा संकट बन गया है़ सौ से अधिक सरकारी स्कूलों में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है़
ग्रामीण क्षेत्रों में मुखिया फंड से लगाये गये सोलर वाटर पंप से ग्रामीणों को बड़ी राहत मिली है़ जिले में शिक्षा की स्थिति भी ठीक नहीं है. कई स्कूलों में शिक्षकों की कमी है़ स्वास्थ्य सेवा के नाम पर सदर अस्पताल ही एक मात्र सहारा है़
जिले के सीएचसी-पीएचसी तो महज रेफरल अस्पताल है. ज्यादातर स्वास्थ्य उपकेंद्र बंद ही रहते हैं.जिले की कानून व्यवस्था काफी समय से चुनौतीपूर्ण रही है़ पूर्व में उग्रवाद-नक्सलवाद बड़ी समस्या थी, तो अब पत्थलगड़ी के कारण कानून-व्यवस्था में परेशानी होती है़

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