राजीव पांडेय
रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में नर्सों और जूनियर डॉक्टरों की हड़ता की वजह से अस्पताल की एनआइसीयू में भर्ती एक दर्जन मासूम बच्चों की जिंदगी संकट में थी. एनआइसीयू में एक बेड पर दो से तीन मासूम भर्ती थे. किसी को फोटोथेरेपी के माध्यम से इलाज दिया जाता था, तो कोई वेंटिलेटर पर था. इन बच्चों के परिजन उनके साथ तो थे, लेकिन वे खुद को असहाय महसूस कर रहे थे.
वे डॉक्टरों और नर्सों के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकते थे, क्योंकि उनके एक विरोधपूर्ण आवाज से उनके मरीज का इलाज प्रभावित हाे सकता था. इधर, बेड पर लेटे नवजात बच्चों (इनमें से कोई तीन दिन का था, तो कोई एक सप्ताह का) को देखकर किसी का भी दिल पसीज जाता. मानो ये बच्चे गुहार लगा रहे हों, ‘डॉक्टर अंकल आखिर हमारी क्या गलती है. हमने क्या कसूर किया है कि अाप हमारा इलाज नहीं कर रहे हैं.’
यहां भर्ती एक महिला को 31 मई को एक बेटा हुआ था. हजारीबाग के डॉक्टरों ने उसे बेहतर इलाज के लिए रिम्स भेजा था, लेकिन यहां एक दिन इलाज के बाद हड़ताल हो गयी. इसके बाद उसे सूई देने वाला कोई नहीं था. हालांकि, कुछ डॉक्टर (जिनमें संवेदना बची थी) बच्चों को सूई-दवा देने में लगे हुए थे.
हड़ताल में मरीजों की मौत पर हाइकोर्ट ने लिया संज्ञान
रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में हड़ताल की वजह से शनिवार को एक दर्जन से अधिक मरीजों की मौत पर झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस अपरेस कुमार ने संज्ञान लिया. उन्होंने झालसा अौर प्रधान न्यायायुक्त रांची नवनीत कुमार को मामले को जल्द सुलझाने का निर्देश दिया.
इस निर्देश के आलोक में हाइकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी के सचिव संतोष कुमार के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की गयी. इसमें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी स्वयंभू, जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव फहीम किरमानी, न्यायिक दंडाधिकारी मनीष कुमार सिंह, विशेषज्ञ मध्यस्थ गिरीश मल्होत्रा, पंचानन सिंह, एलके गिरी, मनीषा रानी अौर नीलम शेखर को रखा गया. कमेटी ने रविवार को रिम्स के निदेशक आरके श्रीवास्तव से मुलाकात कर मामले को मध्यस्थता से सुलझाने का प्रस्ताव रखा.