हाल झारखंड का : कंक्रीट के जंगलों के नीचे दफन हो गये राज्य के हजारों तालाब, अब पानी को तरस रही है जनता

वेटलैंड पर भूमाफियाओं का कब्जा, सरकारी विभाग भी पीछे नहीं तालाब, झील, पोखर, जलाशय और दलदल इत्यादि को वेटलैंड (आद्र भूमि) कहा जाता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर झारखंड सरकार ने स्पेस एप्लीकेशन सेंटर की मदद से वेटलैंड की पहचान करायी थी, जिसमें राज्य में 5649 वेटलैंड चिह्नित किये गये. पर्यावरण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2018 7:27 AM
वेटलैंड पर भूमाफियाओं का कब्जा, सरकारी विभाग भी पीछे नहीं
तालाब, झील, पोखर, जलाशय और दलदल इत्यादि को वेटलैंड (आद्र भूमि) कहा जाता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर झारखंड सरकार ने स्पेस एप्लीकेशन सेंटर की मदद से वेटलैंड की पहचान करायी थी, जिसमें राज्य में 5649 वेटलैंड चिह्नित किये गये.
पर्यावरण के लिए काम करनेवाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में लगभग 25 फीसदी भूमि वेटलैंड है, जिनमें करीब 12 फीसद भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है. इन वेटलैंड को भरकर भवन आदि बनाये जा चुके हैं. इनमें से कई सरकारी भवन हैं. यानी तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में भूमाफियाओं के अलावा सरकारी विभाग भी हाथ है. जबकि वेटलैंड एरिया के अंतिम छोर से कम से कम 200 मीटर के दायरे में किसी तरह के निर्माण कार्य भी प्रतिबंिधत है.
लोहरदगा
इधर आबादी बढ़ी और उधर घटते गये तालाब
लोहरदगा जिला में लगभग 176 तालाब हैं. आबादी बढ़ने के बाद कई तालाब पहले मैदान में तब्दील हुए और फिर कुछ दिनों के बाद वहां भवन खड़े हो गये. इससे जिले के लगभग दो दर्जन तालाब खत्म हो गये.
जहां पहले तालाब हुआ करते थे, वहां अब भवन बन गये हैं. तालाबों के लुप्त होने का असर यहां के जलस्तर पर पड़ा है. पहले कुआं खोदने पर 10 फीट में ही पानी निकलता था और वह कुआं कभी नहीं सूखता था. लेकिन, आज हालात बदल गये हैं. अब कम से कम 25 फीट कुएं की खुदाई करनी पड़ती है, तब जाकर पानी निकलता है.
वह भी गर्मी में सूख जाता है. शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी लोग पानी को लेकर परेशान हैं. हालांकि, सरकार पिछले कुछ वर्षों से जल संरक्षण की दिशा में काम कर रही है और इसके तहत 50 तालाबों का जीर्णोद्धार कराया गया है. वहीं, 200 डोभा का भी निर्माण कराया गया है. शहरी क्षेत्र में कभी लोहरदगा की शान माने जाने वाला महावीर चौक स्थित बूचा तालाब आज मैदान में तब्दील हो गया है. उस तालाब को कचरा से भर दिया गया. वहीं, महारानी विक्टोरिया द्वारा जेल के बंदियों से खुदवाये गये तालाब (जिसे बड़ा तालाब कहते हैं) का अस्तित्व भी मौजूदा समय में खतरे में है.
लातेहार
तालाब थे, तो 10 फुट खोदने पर निकल आता था पानी, आज 100 फुट पर भी नहीं मिलता है
पानी के मामले में लातेहार जिला कभी सिरमौर हुआ करता था. लेकिन समय के साथ हालत बदलते गये. आज आलम यह है कि जिला मुख्यालय में लगभग आधा दर्जन जलस्रोतों को भरकर सरकारी भवन बनाये जा चुके हैं. वहीं, कई तालाबों पर अतिक्रमण करके भवन बना दिया गया या फिर मैदान बन चुके हैं. विभाग हर बार इस ओर ध्यान देने की बात कहता है, लेकिन स्थित ‘ढाक के तीन पात’ जैसी है. तालाबों को भरने का सिलसिला अभी थमा नहीं है.
धर्मपुर मोहल्ले के लोगों का कहना है कि इन तालाबों के जीवित रहने से धर्मपुर मोहल्ले का जलस्तर काफी ऊंचा रहता था. महज 10 फुट खोदने पर ही पानी मिल जाता था. आज स्थिति ऐसी है कि कई जगहों पर 100 फुट खोदने पर भी पानी नहीं मिलता है. सरकारी स्तर पर भी शहर में कुएं एवं तालाब का निर्माण पिछले तीन दशकों में शून्य है.
मेदिनीनगर
तालाबों के सूखते ही घटा मेदिनीनगर का जलस्तर
पलामू जिले की स्थापना एक जनवरी 1892 को हुई थी. इस लिहाज से यह लगभग 126 साल पुराना जिला है. जल के मामले में संपन्न इस शहर में कई बड़े तालाब बनाये गये थे. लेकिन, आज हालत बदतर हो गयी है. तालाबों के सौंदर्यीकरण और गहरीकरण की बात तो वर्षों से हो रही है, लेकिन अब तक अमल में नहीं लाया गया है. मेदिनीनगर शहर में मुख्यत: चार तालाब हैं.
साहित्य समाज के पास बड़ा तालाब, जिसकी परिधि 16 एकड़ 8 डिसमिल है. लोगों की मानें, तो जब तालाब ठीक स्थिति में था, तो जल संग्रहण का बड़ा माध्यम था. इससे बाजार क्षेत्र में जल स्तर बरकरार रहता था. शहर में तब पानी की समस्या भी नहीं रहती थी. लेकिन, अब जलस्तर नीचे जाने से संकट बढ़ गया है.
इसके सौंदर्यीकरण व गहरीकरण के लिए पांच करोड़ की योजना बनी पर धरातल पर नहीं उतर सका. दूसरा तालाब नावाटोली में है, जो कि आठ एकड़ में है. पिछले कई वर्षों से इसकी भी सुध नहीं ली गयी. आबादगंज व रेड़मा के तालाब की भी कमोबेश यही स्थिति है. आबादगंज का तालाब भी एक एकड़ में हुआ करता था. लेकिन, वर्तमान में यह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.
चतरा
तालाबों को भरकर मकान बना दिये, खेती भी हो रही
जिले में तालाबों की संख्या करीब तीन हजार हैं, लेकिन गर्मी आते ही अधिकांश तालाब सूख जाते हैं. वहीं, कई तालाबों का जीर्णोद्धार नहीं होने से वे मैदान में तब्दील हो चुके हैं. जबकि कई तालाबों पर भूमाफियाओं ने अतिक्रमण कर मकान और खेत बना लिया गया.
वर्ष 1967 में अकाल के समय कई तालाबों की खुदाई हुई थी. लेकिन, बाद में उनका जीर्णोद्धार नहीं किया गया. नतीजतन, ये तालाब धीरे-धीरे भरते चले गये. दूसरी तरफ, गिद्धौर प्रखंड में सात ऐसे तालाब हैं, जिसमें बरसात के दिनों में धान की खेती की जाती है. मनरेगा से बने तालाब में बरसात में ही पानी रहता है.
तालाब सूख जाने से कृषि व मत्स्य पालन प्रभावित होता है. शहर के थाना मोड़ स्थित पोखरिया तालाब में कभी मछली पालन किया जाता था. आज आधे से अधिक हिस्से में मकान बन गये हैं. वहीं, सदर प्रखंड के डाढा पंचायत का पगला गोसाई स्थित तालाब मैदान में तब्दील हो गया है.
कभी करीब दस एकड़ भाग में सिंचित कर साग, सब्जी का उत्पादन किया जाता था. मछली पालन भी होता था. कुछ यही हाल है सिमरिया, टंडवा, इटखोरी, पत्थलगड्डा, कान्हाचट्टी, कुंदा, प्रतापपुर, हंटरगंज, लावालौंग, मयूरहंड स्थित तालाबों का, जहां अतिक्रमण कर मकान बना दिया गया है या खेती की जा रही है.
रामगढ़
अतिक्रमण की वजह से मिट रहा है तालाबों का अस्तित्व
रामगढ़ : रामगढ़ शहर में सबसे बड़ा तालाब मत्स्य विभाग का बिजुलिया तालाब है. अभी इसका स्वरूप बचा हुआ है तथा इसका सौंदर्यीकरण हो रहा है.
लेकिन इसके बड़े भू-भाग पर अतिक्रमण है. शहर के निजी तालाबों को मालिकों द्वारा बेच दिया गया है. थोड़े बहुत बचा हिस्सा गंदगी का पर्याय बन गया है. जो निजी तालाब बचे हैं, उन्हें थोड़ा-थोड़ा भरकर बेचा जा रहा है. रामगढ़ जिले में मत्स्य विभाग द्वारा देखभाल किया जानेवाले तालाबों की संख्या 143 है. इसमें मांडू प्रखंड में 33, पतरातू प्रखंड में 33, गोला प्रखंड में 33 तथा चितरपुर, दुलमी व रामगढ़ मिला कर कुल 44 तालाब हैं. भुरकुंडा में बेशर्म तालाब व शालिग्राम तालाब का आस्तित्व धीरे-धीरे मिटता जा रहा है.
गुमला
नक्शे से गायब हो गये जिले के 81 तालाब और बांध
गुमला : जल ही जीवन है. जल नहीं तो कल नहीं. ऐसी तमाम बातें हम सब ने सुन रखी है. लेकिन इस ओर बहुत कम लोगों का ही ध्यान है. जबकि पानी बचाने के लिए सरकार भी अभियान चला रही है.
जलस्रोतों को बचाने की मुहिम चल रही है. लेकिन गुमला जिले में पानी बचाने की मुहिम धराशायी होते दिख रही है. पानी बचाने की योजना फेल होते नजर आ रही है. इसका कारण है कि जिले के 81 तालाब व बांध का अस्तित्व समाप्त होने को है. विभागीय अधिकारी की मानें, तो ये 81 तालाब व बांध नक्शे से ही गायब हो गये हैं. इन तालाबों व बांधों में से कई पर या तो अतिक्रमण कर लिया गया है. या फिर विभागीय उदासीनता के कारण जीर्णोद्धार नहीं हो सका.
कोडरमा
सरकारी पैसे खर्च हो रहे हैं, लेकिन नहीं बदल रही स्थिति
कोडरमा : यूं तो जिले में छोटे-बड़े मिला कर करीब 350 तालाब हैं, लेकिन प्रमुख तालाबों की संख्या करीब 60 से ज्यादा है. अकेले मत्स्य विभाग के अधीन 206, नगर पंचायत कोडरमा में चार, झुमरीतिलैया में 12 व भूमि संरक्षण विभाग के अधीन करीब 22 तालाब हैं.
इन तालाबों के जीर्णोद्धार को लेकर हर वर्ष मानसून के पूर्व लाखों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन स्थिति में खास सुधार नहीं हो रहा है. कुछ तालाबों का पानी सूख जाने पर वहां कचरे का अंबार है. लोगों की मानें तो बीस वर्ष पहले सालों भर इन तालाबों से खेती हाेती थी. अब स्थिति यह है कि कई छोटे तालाब तो गायब हो चुके हैं, वहीं बड़े तालाबों पर भी संकट मंडरा रहा है.
हजारीबाग
सिकुड़ गये कई तालाब कई में कचरे का अंबार
हजारीबाग जिले में 1500 से अधिक पुराने तालाब हैं. जिले के हर प्रखंड में दर्जनों पुराने तालाब का अतिक्रमण करने और मिट्टी भरने से तालाब की चौड़ाई व गहराई कम हो गयी है. हजारीबाग का कृष्णापुरी मटवारी तालाब 4.50 एकड़ में फैला है. इसमें से लगभग दो एकड़ भूमि पर अतिक्रमण कर लिया गया है. आसपास में आवासीय भवन बना लिये गये हैं.
केरेडारी में मुख्यालय के पास महतो तालाब सैकडों वर्ष पुराना है. उक्त तालाब को भर कर घर बनाया जा रहा है. हालांकि अंचलाधिकारी की कार्रवाई के बाद निर्माण कार्य पर रोक लगी हुई है. बरकट्ठा प्रखंड कार्यालय के बगल में पुराना तालाब पर अतिक्रमण कर लोगों ने रास्ता बना दिया है. बरवां गांव का डोभागढ़ा तालाब का अस्तित्व भी खतरे में है. टाटीझरिया के चेरवाडीह गांव के तालाब को समतल कर खेत बना दिया गया है.
जिले में पूरी तरह से किसी तालाब का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन सैकड़ों तालाब के किनारे कूड़ा करकट फेंकने के कारण तालाब की चौड़ाई कम हुई है. शहरी क्षेत्र में लोहसिंघना तालाब, छठ तालाब, मीठा तालाब, बुढ़वा महादेव तालाब इसके उदाहरण हैं. वहीं कई तालाबों की सौंदर्यीकरण योजना आज भी अधूरी है.
तालाब को भर कर बना दी गयी चहारदीवारी
सिमडेगा
जिले में निजी तथा सरकारी तालाबों की संख्या 76 है. वर्तमान में प्रशासन द्वारा तालाबों के जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया गया है. उपायुक्त ने बारिश से पहले सभी तालाबों के जीर्णोद्धार का काम पूरा करने का निर्देश दिया है. हालांकि, अब तक जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं दिख रहा है. इधर, शहरी क्षेत्र के बहुत पुराने तालाब (जो रामलाल तालाब के नाम से जाना जाता था) को कुछ लोगों की मिलीभगत से भर दिया गया. अब वहां बीचोबीच चहारदीवारी खड़ी कर दी गयी है.
उक्त तालाब से आसपास के कुओं व चापाकलों का जलस्तर लेवल में रहता था. इसी तालाब के पानी से किसान धान की फसल की सिंचाई करते थे, लेकिन तालाब को भर दिये जाने से लोगों की परेशानी बढ़ गयी. स्थानीय लोगों की सूचना पर प्रशासन ने मामले की जांच भी की, इसके बाद भी तालाब को भरने से नहीं बचाया जा सका.

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