प्रभात खबर से खास बातचीत: पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा- आदिवासियों में असंतोष
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा है कि वर्तमान में आदिवासियों के बड़े वर्ग में असंतोष है. उनमें असमंजस की स्थिति है. अगर इस असंतोष को तत्काल दूर नहीं किया गया, तो समस्याएं और जटिल होती जायेंगी. जनता, सरकार आैर पार्टी के बीच संवादहीनता की स्थिति दिख रही है. इस पर ठोस पहल […]
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा है कि वर्तमान में आदिवासियों के बड़े वर्ग में असंतोष है. उनमें असमंजस की स्थिति है. अगर इस असंतोष को तत्काल दूर नहीं किया गया, तो समस्याएं और जटिल होती जायेंगी. जनता, सरकार आैर पार्टी के बीच संवादहीनता की स्थिति दिख रही है. इस पर ठोस पहल होनी चाहिए. स्थानीय नीति को लेकर सरकार को होमवर्क कर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए.
ऐसी नीति बननी चाहिए, जिसमें लोगों का विश्वास हो. वे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें. हाल में हो रही पत्थलगड़ी के पीछे भी संवादहीनता एक बड़ा कारण है. उन्हाेंने कहा- शिड्यूल एरिया में आदिवासी विकास समिति का गठन असंवैधानिक है. इस समिति के गठन होने से पारंपरिक व्यवस्था पर प्रहार होगा. श्री मुंडा ने वर्तमान राजनीतिक हालात समेत राज्य के ज्वलंत मुद्दों पर प्रभात खबर के वरीय संवाददाता सतीश कुमार के साथ विस्तार से अपनी बातें रखी. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश.
Qएक-डेढ़ साल में लाेकसभा आैर झारखंड विधानसभा का चुनाव होना है. संगठन स्तर पर कैसी तैयारी है?
राष्ट्रीय आैर प्रांतीय स्तर पर तैयारी चल रही है. केंद्र स्तर पर भाजपा की सरकार ने कई काम किये हैं. मुझे लगता है कि 2019 के चुनाव में लोगों का समर्थन भी अवश्य मिलेगा.
Qविपक्षी पार्टियां गोलबंद हो रही हैं? इसका क्या असर पड़ेगा?
विपक्ष का गोलबंद होना स्वाभाविक है. वह अपनी बातों को रखने का प्रयत्न करेगा. संघर्ष होते रहते हैं. झारखंड में कुछ विषय हैं, जिसको सरकार को समझने का प्रयत्न करना चाहिए. स्थानीय व प्रांतीय स्तर पर जो सरकार होती है, वह जनता के ज्यादा निकट मानी जाती है. इसमें संवादहीनता नहीं होनी चाहिए. मुझे लगता है कि संवादहीनता की स्थिति ज्यादा बन रही है.
Qअापने संवादहीनता का जिक्र किया. किसके बीच संवादहीनता है? स्पष्ट करेंगे?
संवाद कई चीजों का समाधान होता है. संवाद में ताकत होती है. सरकार व जनता के बीच संवाद नीतियों के माध्यम से होती है. नीति ऐसी बननी चाहिए, जो जनता के लिए सुग्राही हो. फिलहाल जनता, सरकार आैर पार्टी के बीच संवादहीनता दिख रही है. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है. इस पर ध्यान देना आवश्यक है.
Qआदिवासी, एससी व पिछड़ा वर्ग के प्रति सरकार का नजरिया कैसा होना चाहिए?
आदिवासी, एससी व पिछड़ा वर्ग के प्रति सरकार का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए. लेकिन राज्य सरकार ने इन वर्ग के मेधावी विद्यार्थियों के खर्च में कटौती कर दी है, जो न्यायोचित नहीं है. अगर इनका स्तर नहीं सुधारेंगे, तो खर्च करना मात्र औपचारिकता रह जायेगी. युवा चाहे ट्राइबल हो, एससी हो या पिछड़ा हो, सरकार का पहला उद्देश्य होना चाहिए कि अपने राज्य के अंदर मानव संसाधन को गुणवत्ता युक्त संसाधन में तब्दील करे, ताकि दुनिया के किसी क्षेत्र में वह जाना चाहे, तो सरकार उसके साथ खड़ी रहे. सरकार को इसे आर्थिक बोझ के रूप में नहीं देखना चाहिए.
Qक्या आपको लगता है कि हाल के दिनों में आदिवासियों की नाराजगी सरकार व संगठन के प्रति बढ़ी है?
आदिवासी के बड़े वर्ग में असंतोष व असमंजस की स्थिति है. सीएनटी एक्ट व भू राजस्व के मामले को लेकर लोगों में बहुत असमंजस की स्थिति रही. राष्ट्रीय स्तर पर मैंने भी अपनी बातें रखी. इसके बाद सरकार ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट को वापस लिया. इसके लिए लोगों को काफी जद्दोजहद व संघर्ष करना पड़ा. राष्ट्रीय नेतृत्व ने सही समय पर उचित कदम उठाया और समाधान निकाला.
Qक्या लगता है कि अभी भी स्थानीय नीति को लेकर लोगों में आक्रोश है?
मुझे लगता है कि स्थानीय नीति को लेकर सरकार काे और होमवर्क कर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए. ऐसी नीति बननी चाहिए, जिसमें लोगों का विश्वास हो. वे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें. यह फिलिंग राज्य के सभी वर्गों में नहीं बन पा रही है.
Qक्या आपको लगता है कि आदिवासियों के बीच में भाजपा के खिलाफ माहौल बना है?
आदिवासी व आदिवासियत एक चरित्र है. अगर चरित्र को समझने के पहले कोई निर्णय लेते हैं, तो उसका रिएक्शन होता है. अभी सरकार का एक फैसला गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है. सरकार ने शिड्यूल एरिया में आदिवासी विकास समिति का गठन कर दिया है, जो असंवैधानिक है. जनजातीय क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था काे सशक्त करने के बजाय इसे ध्वस्त करने की कोशिश हो रही है. अगर संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध सरकार बिना समझे कदम बढ़ायेगी, तो संकट उत्पन्न होगा. आदिवासी विकास समिति के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें विकास के क्रियान्वयन का अधिकार दिया जायेगा. हमें यह समझना होगा कि अधिसूचित क्षेत्रों में क्या प्रावधान है. इन गांव में ट्रेडिशनल हेड मैन होते हैं. वे ग्राम के अध्यक्ष होते हैं. इनके अलावा अलग-अलग समितियां भी काम करती हैं. शिड्यूल एरिया में पारंपरिक व्यवस्था को देखते हुए संविधान में संशोधन किये गये हैं. इसमें कहा गया है कि संवैधानिक व पारंपरिक व्यवस्था का गठजोड़ होना चाहिए. ऐसे में हम अगर अलग व्यवस्था खड़ा करेंगे, तो पारंपरिक व्यवस्था पर प्रहार होगा. संवैधानिक दृष्टि से देखा जाये, ताे समिति बना कर सरकार किसी काे पैसा नहीं दे सकती है. हालांकि इसके लिए आधारभूत संरचना खड़ी की जा सकती है. ग्राम समिति को पैसा देकर काम कराने का प्रावधान ऑडिटेड मनी में नहीं है.
Qराज्य सरकार के साढ़े तीन साल पूरे हो गये? अब डेढ़ साल का कार्यकाल बचा है. इसमें सरकार की क्या प्राथमिकता होनी चाहिए. क्या चुनाैतियां हैं?
सरकार को समझ बढ़ाने की आवश्यकता है. इसके अभाव में कठिनाई पैदा होती है. अगर एक नजर में देखें, तो एक बड़ा वर्ग अपने आप को अलग-थलग पा रहा है. आजादी के समय देश में एक नीति बनी थी. हमें उस नीति पर विचार- विमर्श करना चाहिए. उस नीति के अनुसार चीजों को देखना चाहिए. जैसे जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन में एक पंचशील नीति बनायी गयी थी. इसमें कहा गया है कि मूल्यांकन यह मत करें कि कितनी राशि का निवेश हुआ है. मूल्यांकन यह करें कि इसका कितना लाभ मिला. आपने मरीज को दवा दी. इसमें पैसा खर्च हुआ, यह एक विषय है. मरीज कितना ठीक हुआ, यह दूसरा विषय है. मूल्यांकन करते समय यह देखना चाहिए कि जो दवा मरीज को दी गयी थी, वह उपयोगी साबित हो रही है कि नहीं? आजादी के बाद बहुत काम हुए. सरकार को इस बात का मूल्यांकन करना चाहिए कि जिस उद्देश्य से काम किये गये, उसका कितना लाभ मिला. संविधान में भी मूल्यांकन को लेकर विशेष व्यवस्था बनायी जाये. इसके तहत प्रत्येक वर्ष की रिपोर्ट सरकार से राष्ट्रपति तक पहुंचनी है, ताकि पंचशील की मूल नीति के तहत हम खर्च का नहीं, लाभ का ब्योरा दें.
Qपत्थलगड़ी को लेकर कुछ क्षेत्रों में समानांतर सरकार चलाने का प्रयास हो रहा है. इसे आप कैसे देखते हैं?
आदिवासियों में दो-तीन तरह की पत्थलगड़ी की व्यवस्था है. जब किसी ट्राइबल की स्वाभाविक मृत्यु होती है, तो उसके शव काे जमीन के भीतर दबाया जाता है. यहां पर की गयी पत्थलगड़ी को तेनदिरी कहते हैं. अगर अस्वाभाविक मृत्यु है, ताे एेसी पत्थलगड़ी काे विददिरी कहते हैं. यह पत्थलगड़ी मृत्यु के उपरांत का संस्कार है. एक सीमाना पत्थलगड़ी होती है. अगर पत्थर नहीं दिखा तो उस गांव में पेड़ को मान लेते हैं कि यही प्वाइंट है. एक गांव से दूसरे गांव जब कोई शगुन लेकर जाता है, तो उस गांव में ग्राम देवी-देवता से अनुमति लेता है. इसलिए गांव की पत्थलगड़ी होती है. पहले जमीन नाप कर नहीं, मौजा नाप कर पत्थलगड़ी होती थी. हड़गड़ी वंश को चिह्नित करने के लिए होता है. वर्तमान में जो पत्थलगड़ी हो रही है, इसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. पत्थलगड़ी में कुछ लोग सक्रिय हैं. अपने ढंग से बात करने का प्रयत्न कर रहे हैं. लेकिन पारंपरिक लोग सोचते हैं कि हमारे गांव की पत्थलगड़ी हो रही है. सरकार को यह देखना चाहिए कि यह मामला पुलिस प्रशासन का है, राजस्व प्रशासन का है या फिर सामान्य प्रशासन का है. इस मामले को गांव वाले किस रूप में देख रहे हैं, यह बात जानना बहुत जरूरी है. अगर हम जाने बगैर कार्रवाई करते हैं, तो मामला उलट जाता है. झारखंड में इसी स्थिति का दृश्य बन रहा है. जहां तक मौजा सीमाना पत्थलगड़ी का मामला है, इसमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन वर्तमान में हाे रही पत्थलगड़ी को समझना जरूरी है. प्रशासन को देखना चाहिए कि औद्योगिक विकास के लिए जो लैंड बैंक बनाया जा रहा है, बगैर ग्राम सभा की अनुमति के इसके लिए जमीन ली जा सकती है क्या? खूंटकट्टी राइट को लेकर ज्यादा समस्या है. इसमें मानकी मुंडा को ही डॉक्यूमेंटेशन का अधिकार है. जमीन का मालिकाना हक भी इन्हीं के पास होता है. गांव के लोगों को लग रहा है कि अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो लैंड बैंक के लिए हमारी जमीन छीन ली जायेगी. ऐसे में सब अपना-अपना मौजा व क्षेत्र बचाने में लगे हैं. इन्हें डर है कि किसी उद्योग के लिए हमारी जमीन छीन ली जायेगी. तब न तो हमारी जमीन बचेगी, न जंगल और न ही गांव. इस दहशत के माहौल को सरकार को समझना चाहिए. कहां संवादहीनता हो रही है. किस नोटिफिकेशन के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है.
Qहाल में हाे रही पत्थलगड़ी का आखिर समाधान क्या दिखता है? सरकार करे ताे क्या करे?
पत्थलगड़ी के पीछे संवादहीनता बड़ा कारण है. सरकार को राजस्व प्रशासन, पुलिस प्रशासन व सामान्य प्रशासन में फर्क रख कर कदम उठाना चाहिए. देखिए, भगवान बिरसा मुंडा ने लड़ाई लड़ी. पुलिस प्रशासन तब आया, जब उन्होंने प्रदर्शन किया. पहले तो राजस्व प्रशासन की ही लड़ाई थी. इसको लेकर कानून बनाया गया और इनके अधिकार को संरक्षित किया गया तो लड़ाई खत्म हो गयी. 1908 में सीएनटी एक्ट बनाना पड़ा. इसका प्रयास होना चाहिए कि राजस्व प्रशासन के मामले को पहले निबटायें. इस मामले को देखने के लिए संयम व संवाद की आवश्यकता है. ट्राइबल का एथनिक कैरेक्टर जमीन से जुड़ा हुआ है. वह जमीन के बाहर नहीं जी सकता है. हमने अपने समय में इसको लेकर स्पष्ट नीति बना कर काम किया. इसकी वजह से उन दिनों में बहुत सारी समस्याएं का समाधान स्वत: अपने स्तर पर हो गया.
Qआदिवासियों का असंतोष नहीं खत्म हुआ, तो आने वाले चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
देखिए, चुनाव के अपने रंग होते हैं. लेकिन सिटीजन के हैपिनेस इंडैक्स हैं, इसे बरकरार रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. हैपिनेस इंडैक्स में जो पैरामीटर है, उस पर काम करना चाहिए. अगर इस पर सरकार काम नहीं कर पा रही है, तो उसका परिणाम प्रतिकूल पड़ेगा.