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किताबों के इस संसार में ज्ञान का भंडार
रांची : राज्य की 32 जनजातियों के उद्भव व विकास की कहानी के बारे में जानना हो, प्रेमचंद की दुर्लभ किताबें पढ़नी हो या फिर किसी विषय से संबंधित शोध को पूरा करने के लिए रेफरेंस बुक्स की जरूरत हो, तो इसके लिए शहर की लाइब्रेरियां अापकी मदद को हमेशा तैयार हैं. यहां मौजूद तमाम […]
रांची : राज्य की 32 जनजातियों के उद्भव व विकास की कहानी के बारे में जानना हो, प्रेमचंद की दुर्लभ किताबें पढ़नी हो या फिर किसी विषय से संबंधित शोध को पूरा करने के लिए रेफरेंस बुक्स की जरूरत हो, तो इसके लिए शहर की लाइब्रेरियां अापकी मदद को हमेशा तैयार हैं. यहां मौजूद तमाम लाइब्रेरियां अपने साथ 40 साल से अधिक का अनुभव समेटे हुए हैं.
शायद ही कोई ऐसी लाइब्रेरी है, जहां 30 हजार से अधिक की संख्या में किताबें मौजूद न हों. यूनिवर्सिटी से आप रिसर्च स्कॉलर हैं, तो मोरहाबादी की सेंट्रल लाइब्रेरी, धर्म-अध्यात्म मेें रुचि है तो रामकृष्ण मिशन लाइब्रेरी व राज्य की सरकारी सेवा में हैं तो स्कीपा (श्रीकृष्ण लोक प्रशासन संस्थान) लाइब्रेरी में जा सकते हैं. यहां की लाइब्रेरियों में आप जेएच हटन की साल 1931 में प्रकाशित सेंसस ऑफ इंडिया, लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया जैसे दस्तावेज देख सकते हैं.
टीआरआइ पुस्तकालय
जनजातीय समुदायों पर रिसर्च के लिए ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआरआइ) मोरहाबादी की स्थापना एकीकृत बिहार में 1953 में की गयी. इस इंस्टीट्यूट में मौजूद पुस्तकालय देश के बेहतरीन पुस्तकालयों में से एक है. 3500 वर्गफीट में फैले इस पुस्तकालय में जनजातीय समुदाय पर रिसर्च के लिए बेहतरीन किताबें हैं. वर्तमान में झारखंड सरकार के कल्याण विभाग द्वारा इसे संचालित किया जा रहा है. जानकार बताते हैं कि इस पुस्तकालय को प्रो केएन सहाय ने तीन अलमारियों में भरी किताबें प्रदान की हैं. इसमें हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी किताबें भी शामिल हैं. इस पुस्तकालय में 32 जनजातियों से संबंधित 25 हजार से अधिक किताबें हैं.
यहां स्त्री विमर्श पर आधारित तकरीबन 250 किताबें हैं. इनमें महिला अधिकार, स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाएं, ग्रामीण समाज में महिलाएं, ऊंची जाति की हिंदू महिलाएं, इस्लाम में महिलाएं, जनजातीय महिलाओं में संघर्ष, औरत एक समाजशास्त्रीय अध्ययन, वीमेन इन एंसिएंट इंडिया जैसी किताबें शामिल हैं. इसके अतिरिक्त यहां जेएच हटन की 1931 में प्रकाशित सेंसस ऑफ इंडिया और अंग्रेजी राज के गजट भी हैं. यह राज्य का एकमात्र पुस्तकालय है, जहां 32 जनजातियों पर किताबें उपलब्ध हैं. पहले यह बिहार ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट था. अब यह डॉ रामदयाल मुंडा ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीट्यूट के नाम से जाना जाता है.
केंद्रीय पुस्तकालय
रांची विश्वविद्यालय का यह केंद्रीय पुस्तकालय है. इस विश्वविद्यालय के तहत आनेवाले डिपार्टमेंट में पढ़ने वाले विद्यार्थी, शोधार्थी, स्टाफ व शिक्षक इसके सदस्य होते हैं. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, यहां वर्तमान में 4000 से अधिक छात्र सदस्य हैं, जबकि 700 से अधिक छात्र-छात्राएं रोजाना यहां पढ़ने आते हैं. इसके लिए 100 रुपये का शुल्क लगता है. यहां के सदस्य विद्यार्थियों को दो कार्ड यानी दो किताबें मिलती हैं, जबकि टीचर, स्टाफ व स्कॉलर्स को तीन कार्ड यानी तीन किताबें ले जाने की अनुमति मिलती है.
गौरतलब हो कि पिछले साल इस पुस्तकालय को अपग्रेड किया गया था. केंद्रीय पुस्तकालय वर्ष 2007 में ही यूजीसी के इंफोर्मेशन एंड पुस्तकालय नेटवर्क सेंटर, अहमदाबाद से जुड़ा हुआ है. इस सेंटर से जुड़ने के बाद रांची के छात्र देश के सभी विश्वविद्यालयों के पुस्तकालय की जानकारी ले रहे हैं. यहां लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, बिहार और झारखंड का गजेटियर, गीता प्रेस से प्रकाशित वेद और कई महत्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध हैं. यहां लॉ की किताबों का भी वृहद संग्रह है. यहां प्रतिदिन 18 अखबार और 40 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं भी आते हैं.
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