रांची : यौन शोषण मामले में आइओ ने लिखी समानांतर केस डायरी, किया चार्जशीट
रांची : जामताड़ा की महिला पुलिसकर्मी यौन शोषण मामले की जांच में व्यापक स्तर पर गड़बड़ी की बात सामने आ रही है. वह यह है कि नारायणपुर थाना प्रभारी सह मामले के आइओ अजय कुमार सिंह ने न सिर्फ समानांतर केस डायरी लिखी है बल्कि इसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य गायब कर दिये और चार्जशीट कर […]
रांची : जामताड़ा की महिला पुलिसकर्मी यौन शोषण मामले की जांच में व्यापक स्तर पर गड़बड़ी की बात सामने आ रही है. वह यह है कि नारायणपुर थाना प्रभारी सह मामले के आइओ अजय कुमार सिंह ने न सिर्फ समानांतर केस डायरी लिखी है बल्कि इसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य गायब कर दिये और चार्जशीट कर दिया.
जब मामले की समीक्षा आइजी दुमका रेंज सुमन गुप्ता के स्तर से हुई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आये. आइओ शंकर प्रसाद मांझी ने इस कांड की अंतिम मूल दैनिकी 30 मई 2018 को पारा-48 तक आइजी कार्यालय में जमा कराया था. लेकिन बिना मूल दैनिकी प्राप्त किये अजय कुमार सिंह ने समानांतर केस डायरी लिखना शुरू कर दिया. वहीं पारा-49 से डायरी लिखने की जगह पारा-56 से डायरी लिखा. और बीच का पारा-49 से 55 तक का मैटर गायब कर दिया.
वहीं अजय कुमार सिंह ने केस के पूर्व आइओ एएसआइ श्रीकांत यादव का पारा-60 व पारा-75 में अंकित किया. यह अनुसंधान का अनूठा केस है जिसमें अनुसंधानक को गवाह के तौर पर और फिर गवाह के बयान को धारा-161 के तहत अंकित किया गया. लेकिन पूरी डायरी में अाइजी के सुपरविजन और निर्देशों का कहीं जिक्र तक नहीं किया गया. बाद में स्टेशन डायरी में उक्त बातों का उल्लेख किया.
मामला नारायणपुर थाना कांड संख्या 250/17 के अनुसंधान में गड़बड़ी का
31 मई को एसपी ने आदेश निर्गत करते हुए निर्देश दिया कि एसआइ शंकर प्रसाद मांझी का तबादला पुलिस केंद्र जामताड़ा हो जाने की वजह से नारायणपुर के थाना प्रभारी को कांड का अनुसंधान का भार स्वयं ग्रहण करने व साक्षियों का बयान अंकित करने सहित सभी कार्रवाई पूर्ण करें. लेकिन उक्त आदेश का पत्र एसी के किस शाखा से जारी किया गया यह साफ नहीं है.
नारायणपुर थाना प्रभारी अजय कुमार सिंह ने केस का प्रभार ग्रहण करने का उल्लेख स्टेशन डायरी में नहीं किया. न ही केस के मूल दैनिकी पर प्रभार ग्रहण किये बिना नियम विरुद्ध तरीके से मूल केस दैनिकी लिखना शुरू कर दिया.
जबकि कांड के पर्यवेक्षण के लिए जब आइजी लटैया गांव गयी थीं तब भी अनुसंधान के तौर पर शंकर प्रसाद मांझी ही सामने आये थे. अजय कुमार सिंह द्वारा अनुसंधानक होने की बात आइजी को न तो खुद बतायी गयी और न ही एसपी के स्तर से ही दी गयी. केस का मूल दैनिकी आइजी कार्यालय में था.
जिस भोला मंडल के घर में छापेमारी की बात कही गयी है उसका उल्लेख न तो नारायणपुर थाने के स्टेशन डायरी में है और न ही उस तिथि को हुई छापेमारी के बाद साइबर अपराध से जुड़े कांड संख्या 241/17 में है.
केस डायरी के पारा-61 में अनुसंधानक ने उल्लेख किया है कि एसपी के आदेशानुसार गोपनीय प्रवाचक से बात कर छापेमारी दल में शामिल पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों का बयान लेने के लिए सूचना देकर बुलाने का अनुरोध किया गया.
पारा-62 में सभी कर्मियों के एसपी जामताड़ा के आवासीय कार्यालय पर उपस्थित होने की सूचना पर अनुसंधानक ने 22.10 बजे थाने से प्रस्थान करने का उल्लेख किया गया है. लेकिन स्टेशन डायरी सनहा संख्या 27 में इस कांड के अनुसंधान में प्रस्थान कर बयान लेने का उल्लेख नहीं है. न ही किससे कितने बजे बयान लिया गया इसका ही जिक्र है.
यहां पर यह भी सवाल उठता है कि कि जब आइजी ने दो जून को मौके वारदात पर जाकर पर्यवेक्षण की सूचना विधिवत दी थी, तो फिर आनन-फानन में एक जून की रात सभी का बयान लेने की जरूरत क्यों पड़ी. जबकि एसपी के स्तर से कभी भी मौके वारदात पर जाकर मामले का अनुसंधान नहीं किया गया. रंजीत मंडल द्वारा एसपी के स्तर से गवाहों पर दबाव बनाने की बात पहले ही सामने आ चुकी है.
आइजी सुमन गुप्ता अगले दिन दो जून को कांड का पर्यवेक्षण करने स्वयं नारायणपुर थाना क्षेत्र के लटैया गयीं. उस वक्त एसपी जया रॉय, तत्कालीन एसडीपीओ पूज्य प्रकाश, नारायणपुर इंस्पेक्टर हरेंद्र कुमार राय, इंस्पेक्टर सुनील कुमार चौधरी, नारायणपुर के निलंबित थानेदार सुरेंद्र प्रसाद, पूर्व अनुसंधानक एएसआइ श्रीकांत यादव, उस समय केस के अनुसंधानक रहे शंकर प्रसाद मांझी के अलावा वर्तमान नारायणपुर थाना प्रभारी अजय कुमार सिंह मौजूद थे. इसके बाद आइजी ने सुपरविजन नोट व निर्देश किये. लेकिन केस डायरी में इसका उल्लेख नहीं किया गया.
पुरुष पुलिसकर्मी ने महिला पुलिसकर्मी की जेब की ली थी तलाशी
छापेमारी के दौरान पैसे चोरी किये जाने की बात पर डीएसपी सुमित कुमार के निर्देश पर दारोगा रोहित महतो ने एक महिला पुलिसकर्मी के पॉकेट की तलाशी ली थी. आइजी ने इस पर घोर आपत्ति जताते हुए संबंधित पुलिसकर्मियों को विभाग में रहने के औचित्य पर सवाल खड़े किया है.