भाजपा नाराज, कहा कानूनी दावं पेंच के सहारे कंपनियों को मदद पहुंचाया जा रहा

रांचीः झारखंड सरकार की ओर से बालू घाट की नीलामी को रद्द नहीं करने पर एक बार फिर विरोध के स्वर उठने लगे हैं. भाजपा ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जताते हुए टेंडर को रद्द कर सीबीआइ जांच कराने का आग्रह किया है. पार्टी का आरोप है कि बालू घाट की नीलामी में बहुत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 26, 2014 6:40 AM

रांचीः झारखंड सरकार की ओर से बालू घाट की नीलामी को रद्द नहीं करने पर एक बार फिर विरोध के स्वर उठने लगे हैं. भाजपा ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जताते हुए टेंडर को रद्द कर सीबीआइ जांच कराने का आग्रह किया है. पार्टी का आरोप है कि बालू घाट की नीलामी में बहुत बड़ी डील हुई है.

सरकार ने पहले मामले को लटकाया. अब कानूनी दावं पेंच में उलझा कर कंपनियों को मदद पहुंचा रही है. बालू घाट की नीलामी को लेकर विधानसभा में विपक्ष ने जम कर हंगामा किया था. शनिवार को हुई कैबिनेट की बैठक में बालू घाट की नीलामी को रद्द नहीं करने का फैसला लिया. ऐसे में एक बार फिर बालू घाट की नीलामी का मामला तूल पकड़ने लगा है.

टेंडर रद्द कर सीबीआइ जांच करायें : सीपी सिंह

भाजपा विधायक सीपी सिंह ने कहा कि बालू घाट की नीलामी में बहुत बड़ी डील हुई है. इस मुद्दे को लेकर पार्टी ने विधानसभा में भी अपना विरोध जताया था. पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर भी उतरे थे. इसके बावजूद सरकार की ओर से टेंडर रद्द नहीं किया गया. सरकार ने साजिश के तहत यह कार्रवाई की है. पूरे मामले की सीबीआइ जांच करायी जानी चाहिए.

अटार्नी जनरल की राय के बाद हुआ फैसला : अन्नपूर्णा

जल संसाधन मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि बालू घाट नीलामी मामले में अटार्नी जनरल की राय के बाद फैसला लिया गया. हालांकि सरकार ने बालू घाटों का अधिकार पंचायतों को देने का फैसला किया है. बालू उठाव से मिलने वाली 80 प्रतिशत राशि पंचायतों के खाते में और 20 प्रतिशत राशि सरकार के खाते में जायेगी. सरकार विचार कर रही है कि बालू की दर में असमानता नहीं हो.

सरकार की ओर से चूक हुई है: गिरिनाथ

प्रदेश राजद अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह ने कहा कि बालू घाट की नीलामी के टेंडर को रद्द करने में सरकार से चुक हुई है. सरकार को पहले ही टेंडर रद्द कर देना चाहिए था, लेकिन सरकार की ओर से सिर्फ टेंडर पर रोक लगा कर छोड़ दिया गया. अटार्नी जनरल की राय के बाद परिस्थिति बदल गयी है. अब टेंडर को रद्द करना आसान नहीं है. कानूनी दांव पेंच में कंपनियों का पल्ला भारी पड़ रहा है.

Next Article

Exit mobile version