रांची : जरूरत पड़ी, तो सुप्रीम कोर्ट जायेंगे मदरसा शिक्षक : संघ

रांची : राज्य के 186 सहायता प्राप्त मदरसा शिक्षक व कर्मचारी संघ की बैठक मदरसा इस्लामियां रांची में हुई. अध्यक्षता सैयद फजलूल होदा ने की.इसमें कहा गया कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यकाल में मदरसा व संस्कृत स्कूलों के कर्मचारियों को भी अल्पसंख्यक स्कूलों के कर्मचारियों की तरह पेंशन समेत दूसरे लाभ देने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2018 2:28 AM
रांची : राज्य के 186 सहायता प्राप्त मदरसा शिक्षक व कर्मचारी संघ की बैठक मदरसा इस्लामियां रांची में हुई. अध्यक्षता सैयद फजलूल होदा ने की.इसमें कहा गया कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यकाल में मदरसा व संस्कृत स्कूलों के कर्मचारियों को भी अल्पसंख्यक स्कूलों के कर्मचारियों की तरह पेंशन समेत दूसरे लाभ देने के लिए अधिसूचना जारी की गयी थी, जिसे वर्तमान सरकार ने 19 जुलाई की राज्य मंत्रिमंडल बैठक में अस्वीकार कर दिया. इस पर शिक्षकों ने नाराजगी जतायी. कहा कि यह भाजपा सरकार का भेदभाव आधारित निर्णय है.
मौलाना हम्माद कासमी ने कहा कि सरकार ने यह बता दिया है कि वह गरीब और पिछड़े लोगों की नहीं, बल्कि अडानी, अंबानी और ऐसे ही काॅरपोरेट घरानों की सरकार है. हमारा मामला अदालत में है और हमें पूरी उम्मीद है कि हमें न्याय मिलेगा. एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद फजलूल होदा ने शिक्षकों से कहा कि वे अपने कर्तव्यों की अदायगी में किसी प्रकार की कोताही न करें.
जरूरत पड़ी तो सरकार के इस बेबुनियाद निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जायेंगे. वैसे हमें पूरी उम्मीद है कि हाइकोर्ट से ही न्याय मिल जायेगा. बैठक में मौलाना मो रिजवान कासमी, मौलाना निजामुद्दीन, मौलाना नसीर, मौलाना अरशदुल कादरी, मास्टर अनवर कौनैन, मौलाना कमरूल्फरीद, मौलाना गुलाम दस्तगीर, हसीबुद्दीन, मास्टर फारूक, मौलाना शमशाद, मास्टर अतीक आदि ने शिरकत की.
पेंशनी हमारा अधिकार : ऑल झारखंड मदरसा व संस्कृत शिक्षाकर्मी समन्वय समिति के महासचिव हामिद गाजी ने कहा कि इस फैसले से न केवल मदरसों में आक्रोश है, बल्कि पूरे झारखंड के मुसलमान नाराज हैं.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में पेंशन का एक मामला झारखंड हाइकोर्ट में है. इसका फैसला आने के बाद हम आगे की कार्रवाई करेंगे. यदि हाइकोर्ट से न्याय नहीं मिला, तो हम सुप्रीम कोर्ट जायेंगे. उन्होंने कहा कि पेंशन हमारा अधिकार है. सरकार को मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है. मदरसों की जांच के नाम पर लगभग डेढ़ वर्षों से शिक्षकों व कर्मचारियों का वेतन रोक कर रखा गया है.
यदि कोई मदरसा अर्हता पर खरा नहीं उतर रहा है, तो सरकार इसके लिए राशि क्यों नहीं प्रदान करती, ताकि सबका साथ सबका विकास का नारा सच साबित हो सके? भवन और कमरे के नाम पर मदरसों को खत्म करने का प्रयत्न क्यों किया जा रहा है?

Next Article

Exit mobile version