झारखंड में 34 फीसदी पुरुष मानते हैं, पत्नियों पर होने वाली ”घरेलू हिंसा” जायज
।। राहुल गुरु ।। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को मिलाकर लगभग 31 ऐसी योजनाएं हैं, जो केवल और केवल महिलाओं के विकास व उत्थान को समर्पित हैं. झारखंड जैसे राज्य में एक तरफ तो महिलाओं के कल्याण के लिए तमाम उपाय किये जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसी राज्य में महिलाएं घरेलू […]
।। राहुल गुरु ।।
केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को मिलाकर लगभग 31 ऐसी योजनाएं हैं, जो केवल और केवल महिलाओं के विकास व उत्थान को समर्पित हैं. झारखंड जैसे राज्य में एक तरफ तो महिलाओं के कल्याण के लिए तमाम उपाय किये जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसी राज्य में महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार सबसे ज्यादा हो रही हैं.
यहां उनकी पिटाई को जायज माना जाता है. इसके लिए समाज कई वाजिब कारण भी गिनाता है. ऐसा हम नहीं बल्कि झारखंड को फोकस कर किये गये सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट कह रही है. यह रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 की है. इस रिपोर्ट को हाल ही में जारी किया गया है. यह रिपोर्ट राज्य में महिलाओं की घरेलू हिंसा को लेकर क्या स्थिति है, बता रही है.
34 फीसदी पुरुष मानते हैं, पत्नियों पर होने वाली घरेलू हिंसा जायज
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (झारखंड) के मुताबिक झारखंड में 34 फीसदी पुरुष मानते हैं कि कुछ बातों के लिए पत्नियों पर होने वाली घरेलू हिंसा जायज है. इसके लिए वे कई तरह के कारण भी देते हैं. इस रिपोर्ट की सबसे रोचक बात यह है कि घरेलू हिंसा, मार-पिटाई को महिलाएं भी सही मानती हैं.
आंकड़ों के मुताबिक राज्य की 30 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जिनका तर्क है कि पति द्वारा की जाने वाली हिंसा जायज है और वे उन्हें स्वीकार है. 12 वर्षों तक स्कूली शिक्षा ले चुकी 19 फीसदी महिलाएं व 28 फीसदी पुरुष भी मानते हैं कि कुछ स्थितियों में पति द्वारा पत्नी को पीटा जाना सही है.
तर्क कैसे-कैसे
– 20 फीसदी महिलाएं और 34 फीसदी पुरुष के अनुसार अगर पत्नी अपने सास-ससुर का सम्मान नहीं करती, तो उन्हें पीटना जायज.
– 15 फीसदी महिलाएं व 20 फीसदी पुरुष मानते हैं कि पति के साथ बहस करने पर उनको पत्नी को पीटने का हक है.
– 33 महिलाएं मानती है कि घर या बच्चों का ध्यान रखने पर उनकी पिटायी सही.
– 19 फीसदी पुरुष मानते हैं कि उनकी जीवन संगिनी अगर उनके प्रति वफादार नहीं है तो उनकी पिटाई करना सही.
– 21 फीसदी पुरुषों का मानना है कि अगर पत्नी संबंध बनाने के लिए मना करती है तो उनको गुस्सा करने, आर्थिक अधिकार छीनने, जबरदस्ती संबंध बनाने या किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाने का अधिकार है.
– 40 फीसदी पुरुषों के मुताबिक पत्नी किसी भी परिस्थिति में शारीरिक संबंध बनाने से मना नहीं कर सकती हैं.
15-49 उम्र की 30% महिलाओं ने किया हिंसा का सामना
आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में 15-49 आयुवर्ग की 30 फीसदी महिलाओं ने शारीरिक हिंसा, सात फीसदी ने यौन हिंसा का सामना किया है. कुल 31 फीसदी ने शारीरिक या यौनिक हिंसा का सामना किया है. 15 साल की उम्र में जिन्होंने शारीरिक हिंसा का सामना किया था उनमें विवाहित महिलाओं के मामले में सबसे अधिक उनके पति द्वारा हिंसा की गयी थी.
रिपोर्ट में उन परिस्थितियों के बारे भी बताया गया है, जिनकी वजह से पुरुषों ने हिंसा का रास्ता चुना. 3 फीसदी ने गर्भावस्था के दौरान शारीरिक हिंसा का सामना किया है. वहीं 31 फीसदी ने कहा कि पति द्वारा झापड़ मारा गया, 7-14 फीसदी ने माना कि उनके धक्का दिया गया या किसी चीज को उन पर फेंक कर मारा गया, हाथ मरोड़ा गया, बाल खींचे गये, मुक्का मारा गया, पैर से मारा गया आदि.
केवल दो फीसदी शादीशुदा महिलाओं ने उठाये हिंसा के प्रति कदम
रिपोर्ट की गंभीर बात यह है कि केवल दो फीसदी ही शादीशुदा महिला ऐसी हैं, जिन्होंने अपने ऊपर किये गये हिंसा के खिलाफ कदम उठाया है. खास बात यह है कि शहरी इलाकों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को पति द्वारा दोगुनी हिंसा का सामना करना पड़ा है. जो महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं यानी जो कम से कम 12 साल तक स्कूल गई हैं उनके साथ हिंसा की दर कम देखी गयी. ऐसी पढ़ी लिखी महिलाओं की संख्या 19 फीसदी ही है.
रिपोर्ट में ऐसी 60 फीसदी महिलाओं का जिक्र हैं, जिन्होंने यह स्वीकारा की उन्होंने पिता को मां को पीटते देखा है. और आज उनके पति भी उन्हें मारते हैं. जिनके पति अक्सर शराब के नशे में रहते हैं, ऐसी 61 फीसदी महिलाओं ने स्वीकारा कि उन्हें पति पीटते हैं.
74 फीसदी महिलाओं ने हिंसा की जानकारी नहीं दी
इस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट का काला पक्ष यह भी है कि जितनी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा जैसी बात होती है, उनमें से 74 फीसदी महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठाये जाने की बजाय चुप रहना ज्यादा पसंद करती हैं. केवल 16 फीसदी महिलाओं ने इसके खिलाफ किसी से मदद मांगी है.
जबकि घरेलू हिंसा से होने वाले चोट के आंकड़े बताते हैं कि 24 फीसदी महिलाओं में हिंसा के बाद कटने व खरोंच की चोटें मिली. सात फीसदी को आंख की चोट, डिसलोकेशन,थोड़ा जलने जैसी चोटों का सामना करना पड़ा. पांच फीसदी महिलाओं को पति की हिंसा की वजह से गहरे घाव,हड्डी टूटने,दांत टूटने और गंभीर चोटें आयी.
कानून बनाने की नहीं, सोच बदलने की है जरूरत
जेंडर पर काम करने वाली संस्थान ब्रेकथ्रू के एडवोकेशी डाइरेक्टर ऊर्वशी गांधी के मुताबिक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट के ये आंकड़ें चौंकाने वाले नहीं है. इस आंकड़ें में उन्हीं महिलाओं की बात है, जिन्होंने अपने साथ होने वाली हिंसा का रिपोर्ट कराया है. कई महिलाएं तो ऐसी भी हैं, जिन्होंने अपने साथ होने वाली हिंसा को रिपोर्ट नहीं कराया.
यहां सोचने वाली बात है कि ऐसा क्यों हो रहा है. हम महिला सुरक्षा को लेकर कानून बनाते हें, लेकिन मुद्दा कानून बनाने का नहीं सोच बदलने का है. हर पुरुष को चाहिए कि वह महिला एसेट न समझ कर इंसान समझे. जिस दिन ऐसा हो जायेगा, घरेलू हिंसा की समस्या स्वत: समाप्त हो जायेगी.