नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाला : झारखंड विधानसभा के कई कर्मचारियों और अफसरों की बरखास्तगी की सिफारिश

रांची : झारखंड विधानसभा के कई कर्मचारियों व अधिकारियों की बरखास्तगी हो सकती है. जस्टिस (सेवानिवृत्त) विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षतावाले आयोग ने यह अनुशंसा अपनी जांच रिपोर्ट में की है. जस्टिस विक्रमादित्य ने सात हजार पेज की जांच रिपोर्ट मंगलवार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी. आयाेग काे विधानसभा में नियुक्ति-प्राेन्नति में गड़बड़ी की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2018 7:37 AM
रांची : झारखंड विधानसभा के कई कर्मचारियों व अधिकारियों की बरखास्तगी हो सकती है. जस्टिस (सेवानिवृत्त) विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षतावाले आयोग ने यह अनुशंसा अपनी जांच रिपोर्ट में की है.
जस्टिस विक्रमादित्य ने सात हजार पेज की जांच रिपोर्ट मंगलवार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी. आयाेग काे विधानसभा में नियुक्ति-प्राेन्नति में गड़बड़ी की जांच की जिम्मेवारी दी गयी थी. आराेप है कि विधानसभा में बड़ी संख्या में नेताआें-अफसराें के करीबियाें-रिश्तेदाराें काे नियुक्त कर लिया गया या प्राेन्नति दी गयी थी.
क्या कहा जवाब में
सूत्राें के मुताबिक आयोग द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट में कुल सात हजार पेज हैं. इनमें से तीन हजार पेज सिर्फ अधिकारियों व कर्मचारियों को दिये गये कारण बताअो नोटिस व उसके जवाब हैं. नोटिस के जवाब में कई कर्मचारियाें-अधिकारियाें ने कहा है कि अधिकारी या नेता का रिश्तेदार होना गलत नहीं है.
नौकरी लेने में उनकी (नेताआें-अफसराें की) कोई भूमिका नहीं है, जबकि विधानसभा के अधिकारियों ने अपने जवाब में कहा है कि उनकी गलत करने की मंशा नहीं थी. हो सकता है, कहीं कोई भूल हो गयी हो. जांच आयोग ने रिपोर्ट में सारे पक्षों का ख्याल रखा है. जांच के कानूनी पहलू का भी पूरा ख्याल रखा है.
प्रभात खबर ने उठाया था मामला
झारखंड विधानसभा में राज्य गठन के बाद हुई नियुक्तियों – प्रोन्नतियों के साथ ही राज्यपाल के आदेश में हेराफेरी कर वेतन निर्धारण करने का आरोप है. प्रभात खबर ने इस मामले को सबसे पहले उजागर किया था. इसके बाद राष्ट्रपति शासन में इस मामले पर जांच कराने का निर्णय लिया गया. उस वक्त सीपी सिंह झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष थे. राज्यपाल ने सबसे पहले जस्टिस लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया.
हालांकि जांच के लिए दस्तावेज आदि उपलब्ध कराने में हुई परेशानियों के मद्देनजर जस्टिस प्रसाद ने आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में दूसरी बार एक सदस्यीय आयोग का गठन किया गया.सरकार ने इस आयोग को विशेष अधिकार दिये.

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