रांची : आदिवासियों से जुड़े कानूनों को समझने की है जरूरत : भगत

रांची : ट्राइबल स्टडी सेंटर, आरोग्य भवन में महाराज मदरा मुंडा व्याख्यानमाला के तहत ‘पांचवीं अनुसूची और जनजातीय विकास’ विषय पर द्वितीय व्याख्यान हुआ़ इसमें मुख्य अतिथि पद्मश्री अशोक भगत ने कहा आदिवासियों ने अंग्रेजों से स्वायत्तता की लड़ाई लड़ी थी़ इसी दिशा में पेसा कानून भी बना है़ कई पदाधिकारियों और राजनेताओं में भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 5, 2018 12:09 AM
रांची : ट्राइबल स्टडी सेंटर, आरोग्य भवन में महाराज मदरा मुंडा व्याख्यानमाला के तहत ‘पांचवीं अनुसूची और जनजातीय विकास’ विषय पर द्वितीय व्याख्यान हुआ़ इसमें मुख्य अतिथि पद्मश्री अशोक भगत ने कहा आदिवासियों ने अंग्रेजों से स्वायत्तता की लड़ाई लड़ी थी़ इसी दिशा में पेसा कानून भी बना है़
कई पदाधिकारियों और राजनेताओं में भी पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून जैसी बातों की समझ नहीं होती़ जब आदिवासी अपने हक-अधिकार से वंचित होते हैं, तो कई बार कुछ लोग उनके आक्रोश को गलत दिशा भी देते हैं. यह संघर्ष का विषय नहीं है़ हमारे गांव पारंपरिक व्यवस्था पर चलें और इसे मान्यता दी जाये़
जनजातीय विकास व पांचवीं अनुसूची एक-दूसरे के पूरक: मुख्य वक्ता विनोबा भावे विवि के पूर्व वीसी, बीआइटी मेसरा में प्राध्यापक डॉ रवींद्र कुमार भगत ने कहा कि हमारे समाज के लोगों के आंदोलनों ने अंग्रेजों को भी हमारी व्यवस्था स्वीकार करने के लिए बाध्य किया़ सीएनटी व एसपीटी एक्ट जैसे कानून बने़ पांचवीं अनुसूची का बीज 1935 की संविधान सभा की बैठक में पड़ा और वर्जित, आंशिक वर्जित क्षेत्र बनाये गये़
विधान मंडल या संसद में बने कानून पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में सीधे लागू नहीं होते़ हमारे लोग इन बातों को अच्छी तरह समझ नहीं पाते, वहीं सरकार भी इसे समानांतर व्यवस्था की तरह देखती है़ जनजातीय समुदाय का विकास निरंकुशता से नहीं हो सकता़ उनका विकास और पांचवीं अनुसूची एक-दूसरे के पूरक हैं.
सही से लागू हुई पांचवीं अनुसूची तो मिलेगा फायदा
गुमला के विधायक शिवशंकर उरांव ने कहा कि इस पांचवीं अनुसूची ने जनजातियों को एक सुरक्षा कवच प्रदान किया है़ जरूरत इसके सही क्रियान्यवन की है़ यदि इसे ईमानदारी से लागू किया जाये, तो आदिवासी समाज को बड़ा लाभ मिलेगा़
उन्होंने कहा कि टीएसी का गठन जनजातियों के सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर किया गया है़ कार्य संचालन के लिए एक अलग सचिवालय बनाने का प्रस्ताव भी है़ पांचवीं अनुसूची के बारे में जन प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों, विद्यार्थियों व अन्य को भी जानने की आवश्यकता है़ डॉ नारायण भगत ने कहा कि आज तक राज्य में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई नियमानुसार शुरू नहीं हो पायी है़
आदिवासी छात्र संघ के संयोजक डॉ जलेश्वर भगत ने कहा कि पांचवी अनुसूची के तहत आनेवाला पेसा कानून अब तक लागू नहीं किया गया है़ इस कानून में जनजातियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान हैं. ट्राइबल स्टडी सेंटर के निदेशक डॉ प्रदीप मुंडा ने कहा कि पांचवीं अनुसूची को समझने की जरूरत है़ कार्यक्रम में शकुंतला मिश्रा, कांके की मुखिया ज्योति निशा नाग, बोड़ेया की मुखिया जया भगत, संदीप उरांव, सुनील तिग्गा व अन्य मौजूद थे़

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