रांची : पोषाहार उपलब्ध नहीं कराना गैरकानूनी, स्थिति सुधारें

रांची : राज्य की गर्भवती व धात्री महिलाअों सहित छह माह से छह वर्ष तक के बच्चों को पूरक पोषाहार न मिलने का मुद्दा प्रभात खबर प्रमुखता से उठाता रहा है. अभी 28 जुलाई को भी राज्य भर की विस्तृत खबर प्रकाशित की गयी थी. उधर केंद्रीय महिला विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 5, 2018 12:52 AM
रांची : राज्य की गर्भवती व धात्री महिलाअों सहित छह माह से छह वर्ष तक के बच्चों को पूरक पोषाहार न मिलने का मुद्दा प्रभात खबर प्रमुखता से उठाता रहा है.
अभी 28 जुलाई को भी राज्य भर की विस्तृत खबर प्रकाशित की गयी थी. उधर केंद्रीय महिला विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी एक माह पहले (तीन जुलाई को) मुख्यमंत्री रघुवर दास को इस संबंध में पत्र लिखा था. उन्होंने राज्य में पोषाहार नहीं दिये जाने को लेकर चिंता जतायी थी. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के प्रावधानों का हवाला देते हुए इस कृत्य को गैर कानूनी कहा था.
मेनका ने लिखा था कि पूरक पोषाहार उपलब्ध नहीं कराना हजारों-लाखों बच्चों को कुपोषण की अोर धकेलना है. श्रीमती गांधी ने पोषाहार के टेंडर में विलंब संबंधी तथ्यों का उल्लेख करते हुए इस स्थिति को अस्वीकार्य बताया था. सीएम से अाग्रह किया था कि स्थिति सुधारें तथा यह भी कहा था कि किसी समस्या के लिए राज्य की संबंधित मंत्री सीधे उनसे बात करें.
गौरतलब है कि झारखंड के सभी जिलों में पूरक पोषाहार सहित तीन से छह वर्षीय बच्चों को अंडा देने की योजना धराशायी है. जिलों में एक से लेकर तीन माह से पोषाहार न मिलने की शिकायत है. बच्चों को अंडा भी समय पर व पूरा नहीं मिल रहा तथा आंगनबाड़ी को सड़े अंडे मिल रहे हैं.
साल भर में चार निदेशक व चार सचिव
समाज कल्याण विभाग में पूरक पोषाहार के टेंडर सहित विभिन्न (मेडिसिन किट, तौल मशीन व अन्य) खरीद प्रक्रिया लंबित है. इसके लिए बार-बार हुआ ट्रांसफर-पोस्टिंग भी जिम्मेवार है. गत एक वर्ष में समाज कल्याण निदेशालय ने पांच (मौजूदा सहित) निदेशक तथा चार विभागीय सचिव देख लिये.
निदेशक के रूप में पहले छवि रंजन, फिर चार दिनों के लिए अबू इमरान, फिर करीब पांच माह के लिए राजीव रंजन और अब मनोज कुमार. उसी तरह पूर्व सचिव एमएस भाटिया के बाद विनय चौबे, फिर हिमानी पांडेय व अब अमिताभ कौशल.
निदेशकों व सचिवों को जब तक निदेशालय व विभाग के कार्यों की पूरी समझ होती है, तब तक वह चलता हो रहे हैं. बिना समझे करीब 500 करोड़ रुपये के पोषाहार वाले टेंडर में कोई हाथ लगाना नहीं चाहता है.

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