निर्मल के बलिदान से झारखंड राज्य बनने के रास्ता हुआ साफ
शैलेंद्र महतो झारखंड अपनी नींव में अनगिनत शहीदाें के लहू काे संजाेए हुए है. असंख्य ख्यात-विख्यात, अज्ञात-बलिदानियाें की मिट्टी का संबल लिए हुए है. झारखंड एक एेसी धरती का नाम है, जहां के वीर सपूत, सुरमा अपने प्राणाें से भी ज्यादा अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति आैर अपनी सभ्यता से प्यार करते हैं. इस प्यार में […]
शैलेंद्र महतो
झारखंड अपनी नींव में अनगिनत शहीदाें के लहू काे संजाेए हुए है. असंख्य ख्यात-विख्यात, अज्ञात-बलिदानियाें की मिट्टी का संबल लिए हुए है.
झारखंड एक एेसी धरती का नाम है, जहां के वीर सपूत, सुरमा अपने प्राणाें से भी ज्यादा अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति आैर अपनी सभ्यता से प्यार करते हैं. इस प्यार में बलिदान की हद तक की दीवानगी है. कितने बाजू, कितने सर दुश्मन ने नापे-गिने आैर हलाल किये, किंतु हर बार दुश्मन ने बाजी हारी. आंदाेलनकारियाें ने हर वक्त सिर पर कफन बांध कर अपनी छाती काे आगे कर गाेलियाें की बाैछाराें से छलनी कराया, किंतु हर बार स्वाभिमान, गर्व आैर गौरव की बाजी जीती. इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण आज भी उपेक्षित हैं.
झारखंड की गाैरव गाथा, झारखंड के शहीदाें ने अपने लहू से लिखी है. इसी अध्याय की एक कड़ी झामुमो के तत्कालीन अध्यक्ष निर्मल महताे थे, जिन्हाेंने अपने बलिदान से झारखंड राज्य बनने का रास्ता साफ किया. झारखंड राज्य गठन के बाद झारखंड के प्रमुख राजनीतिज्ञाें आैर बुद्धिजीवियाें ने शहीद निर्मल स्मृति 2008 स्मारिका में निर्मल महताे की शहादत के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किये.
झामुमाे के अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री शिबू साेरेन ने कहा था निर्मल महताे, अध्यक्ष झारखंड मुक्ति माेर्चा के सबल एवं सफल नेतृत्व में अलग झारखंड राज्य प्राप्ति के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई है. आठ अगस्त 1987 काे दिन में 11.45 बजे उनकी शहादत पर झारखंड राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप 15 नवंबर 2000 काे झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ.
इतिहास में अद्वितीय हाेगी निर्मल की शहादत : रांची विवि के पूर्व कुलपति रहे डॉ रामदयाल मुंडा ने कहा था शहीद ताे अनेक हाेते हैं, किंतु उसके परिणाम स्वरूप उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में आंदाेलन कितनी दूर तक अागे जाता है, ये ही उस शहीद का गुणात्मक मूल्य हाेता है.
इस अर्थ में निर्मल महताे की शहादत झारखंड के इतिहास में अद्वितीय हाेगी. जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व प्राध्यापक डॉ विशेश्वर प्रसाद केसरी ने लिखा था निर्मल महताे को बहुत दिनाें पहले, जुलूस के आगे चलते देखा था, दाेनाें हाथाें में नंगी तलवारें लेकर, टाटा की लाैहनगरी में निर्मल हृदय, वीर, साहसी वह सपूत था, झारखंड का बिरसा की तरह, सिदाे-कान्हू की तरह, विश्वनाथ, गणपत, शेख भिखारी की तरह.
प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक अनुज कुमार सिन्हा ने लिखा था यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि अगर झारखंड का यह युवा नेता निर्मल महताे शहीद नहीं हाेता, ताे शायद झारखंड राज्य अभी भी नहीं बना हाेता. झारखंड आंदाेलन में निर्णायक माेड़ तब आया, जब झारखंड विराेधियाें द्वारा आठ अगस्त 1987 काे निर्मल महताे की हत्या कर दी गयी. निर्मल महताे की हत्या ने अब तक चल रहे झारखंड आंदाेलन के सभी राजनीतिक दलाें, छात्र-युवा संगठनाें काे एकजुट कर एक मंच पर ला खड़ा किया आैर आंदाेलन काे एक अभूतपूर्व गति, बल, स्फूर्ति आैर सामर्थ प्रदान किया. झारखंड के सवाल को लेकर राष्ट्रीय दलाें में सर्वप्रथम भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आगरा में संपन्न हुई. आठ अप्रैल 1988 में छाेटानागपुर संताल परगना काे मिला कर वनांचल राज्य बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया.
जब कांग्रेस सरकार को वार्ता के लिए होना पड़ा तैयार : निर्मल महताे की हत्या से उपजी लहर ने झारखंडी जनता एवं छात्र युवा शक्ति काे एेसा आंदाेलित किया कि कांग्रेस सरकार यानी राजीव गांधी सरकार काे बाध्य हाेकर अंतत: झारखंड आंदाेलनकारियाें के साथ वार्ता के लिए तैयार हाेना पड़ा. वार्ताआें के कई दाैर के बाद केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह ने 23 अगस्त 1989 झारखंड विषयक समिति का गठन किया. 30 मार्च 1992 काे केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री एवं गृहमंत्री एमएम जैकब ने झारखंड विषयक समिति की रिपाेर्ट संसद के दाेनाें सदनाें में पेश की.
बिहार विधानसभा के आम चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल आैर सीपीएम काे छाेड़ कर कांग्रेस पार्टी सहित समता पार्टी, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी आदि दलाें ने अपने-अपने चुनावी घाेषणा पत्र में झारखंड राज्य का समर्थन किया. नौ अगस्त 1995 काे झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद का गठन किया गया. सन 1996, 1998 आैर 1999 लाेकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्ववाली एनडीए सरकार ने वनांचल राज्य बनाने का वायदा किया. अंतत: निर्मल महताे की शहादत रंग लायी आैर महान बिरसा मुंडा के उलगुलान आबुआ दिशुम आबुआ राज की आवाज 14 नवंबर 2000 की आधी रात काे झारखंड राज्य के गठन में प्रतिष्ठित हुई.
झारखंड आंदाेलन ने अपने लक्ष्य प्राप्ति की राह में राज्य गठन के रूप में सिर्फ बिहार राज्य से एक छाेटी उपलब्धि हासिल की है. झारखंड राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र में जाे अभी तक पश्चिम बंगाल, आेड़िशा आैर छत्तीसगढ़ राज्याें के कब्जे में है, उनमें झारखंडी संस्कृति-समुदायाें की बाहुलता है. झारखंड राज्य बनने के बाद अभी भीआंतरिक उपनिवेशवाद झेल रहा है. झारखंडी अस्मिता पर झारंखंडी जनता की मुक्ति की आकांक्षा की अभिव्यक्ति थी, अभी झारखंड झारखंड पर झारखंडी जनता का असरदार नियंत्रण कायम हाेने के लिए उसकाे लंबे संघर्ष से गुजरना हाेगा.
-लेखक पूर्व सांसद सह झारखंड आंदाेलनकारी हैं.