असहमति में भी शालीनता अनिवार्य

डॉ आनंद भूषण पुण्यतिथि पर विशेष : हमें राष्ट्र के प्रतीकों व प्रतिनिधियों का सम्मान करना चाहिए 12 अगस्त पिता की पुण्यतिथि का दिन. इन दिनों मैं हर वर्ष अपने भीतर स्मृतियों की तहों में एक हलचल पाता रहता हूं. पिता को याद करने से ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें कैसे याद किया जाये. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2018 8:41 AM
डॉ आनंद भूषण
पुण्यतिथि पर विशेष : हमें राष्ट्र के प्रतीकों व प्रतिनिधियों का सम्मान करना चाहिए
12 अगस्त पिता की पुण्यतिथि का दिन. इन दिनों मैं हर वर्ष अपने भीतर स्मृतियों की तहों में एक हलचल पाता रहता हूं. पिता को याद करने से ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें कैसे याद किया जाये. तब से कितना कुछ बदल गया है, बदल रहा है, पर बदलती शय में कितना मिला और कितना बिछड़ गया, यह तो सोचना ही पड़ेगा.
आज इस संदर्भ में यह विचार करना मुझे उचित प्रतीत होता है कि हमें राष्ट्र के प्रतीकों और प्रतिनिधियों का सम्मान करना चाहिए. संविधान ने हमें अधिकार दिये हैं, तो उसी ने कर्तव्य की महती अपेक्षा भी रखी है. हम अक्सर कर्तव्य भूल कर अपने नागरिक दायित्व के निर्वहन में नाकाम सिद्ध होते हैं. हम राष्ट्र के प्रतिनिधियों के नाम बिना आदरार्थक संबोधन के आज धड़ल्ले से लेते हैं और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उसे सही ठहराते हैं.
मुझे याद है कि घर में ये चीजें सिखायी जाती थीं कि बिना जी, माननीय संबोधन के प्रतिनिधियों का नाम लेना अनुचित है. गांधी जी, सरदार पटेल जी, चाचा नेहरू, राजेंद्र बाबू, जयप्रकाश जी या माननीय का संबोधन देना हमारी पीढ़ी के स्वभाव में था. रही बात अभिव्यक्ति की आजादी की, तो वह भी इस अशालीनता से मूल्यहीन होकर सिर्फ तमाशा बन कर रह जाती है. राष्ट्र जाति-धर्म से ऊपर की अवधारणा है. हमें हर विशेष उपाधि को भूल कर इस सत्य को समझना होगा कि राष्ट्र से ऊपर कोई नहीं. ये सद्भाव और सम्मान हम परिवार में ही पाते हैं, समझते हैं.
हमारे पिताजी ने ऐसा वातावरण दिया, जहां से हमने राष्ट्र एवं उसके प्रतीकों, प्रतिनिधियों को सम्मान की दृष्टि से देखा, समझा और पुकारा. मुझे हमेशा लगता है कि परिवार और परिवेश की परवरिश से ऐसी सीखें सहज ही हमें मिलती हैं. विशेषकर परिवार से इतने लोगों के साथ का व्यवहार और समाज, राष्ट्र के प्रतीकों एवं प्रतिनिधियों का सम्मान ये हम घर के ही वातावरण में सहज ढंग से सीख जाते हैं. घर में बड़ों से, पिता से यह अदब सीखा और जो उनसे सीखा, उसमें अपना अनुभव जोड़ कर बच्चों की तरफ बढ़ा दिया. देखता हूं इस शालीनता को हमारे बच्चे अपने बच्चों में डाल रहे हैं, तो मन संतोष से भर जाता है.
(लेखक राज्यपाल के शैक्षणिक सलाहकार हैं)

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