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रांची : जयपाल सिंह मुंडा किसी महानायक से कम नहीं हैं. उनकी जीवनी पर भी फिल्म बननी चाहिए. यह दुर्भाग्य है कि आज युवा उनके बारे में नहीं जानते. अभी भी उनके जीवन अौर कार्यों के कई अनछुए पहलू के बारे में अध्ययन करना बाकी है. यह बातें शनिवार को झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने […]
रांची : जयपाल सिंह मुंडा किसी महानायक से कम नहीं हैं. उनकी जीवनी पर भी फिल्म बननी चाहिए. यह दुर्भाग्य है कि आज युवा उनके बारे में नहीं जानते. अभी भी उनके जीवन अौर कार्यों के कई अनछुए पहलू के बारे में अध्ययन करना बाकी है. यह बातें शनिवार को झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने कही.
वह प्रेस क्लब में लेखक व पत्रकार संतोष किड़ो की पुस्तक द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ जयपाल सिंह मुंडा के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. बाबूलाल मरांडी ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा अपने दौर के मेधावी विद्यार्थी थे, वह हॉकी के बढ़िया खिलाड़ी थे अौर उनका राजनीतिक जीवन अौर दर्शन भी बहुत प्रेरक था. वह अलग झारखंड राज्य के प्रणेता थे. राज्य बनने के बाद जिस तरह उन्हें विस्मृत किया गया वह दुर्भाग्यपूर्ण है.
पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा सही मायने में झारखंड आंदोलन के प्रणेता थे. जब वह बीकानेर महाराजा के यहां कार्यरत थे, उसी समय उन्हें आदिवासी महासभा का नेतृत्व करने का आग्रह किया गया.
जयपाल सिंह मुंडा ने 1940 में रामगढ़ में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान सुभाष चंद्र बोस से भी अलग झारखंड के लिए समर्थन मांगा था. उन्होंने संविधान सभा की बैठकों में भी आदिवासियों की पहचान और उनके आरक्षण की वकालत की. राजनीति में उन्हें ठगी का शिकार होना पड़ा.
इससे पूर्व जयंत जयपाल ने भी अपने पिता जयपाल सिंह मुंडा के जीवन से जुड़े विभिन्न पहुलअों की चर्चा की. उन्होंने बताया कि बचपन में उन्हें कभी यह मालूम नहीं पड़ा कि उनके पिता इतने फेमस आदमी हैं.
जब उनका देहांत हुआ अौर उन्हें दिल्ली से रांची लाया गया, तो पूरे एयरपोर्ट पर लोगों की बहुत भीड़ थी. बुद्धिजीवी गिरिधारी राम गोंझू ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा की पहली पत्नी तारा मजूमदार ने उनसे तलाक ले लिया था, ऐसा तब हुआ था जब वह झारखंड आंदोलन की अगुआई करने लगे. तारा कांग्रेस के एक बड़े नेता की नतिनी थी.
डॉ करमा उरांव ने कहा कि संतोष किड़ो ने अपनी पुस्तक के जरिये धुंधले आकाश में छिपे एक व्यक्ति को सामने लाने का काम किया है. जयपाल सिंह अौर उस समय के नेताअों को देखने से समझ में आता है कि अलग राज्य का स्वरूप कैसा होना चाहिए.
प्रभाकर तिर्की ने कहा कि यह पुस्तक इतिहास पर एक महत्वपूर्ण बहस की शुरुआत है. जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान सभा में जो भाषण दिया, उसमें जो गहराई है, उसे समझने की जरूरत है.
साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि जयपाल सिंह को अभी भी समझना बाकी है. रवींद्रनाथ टैगोर अौर जयपाल सिंह मुंडा जैसे लोग पश्चिम की तरफ देखते थे, पर उनके अंधभक्त नहीं थे. मंगल सिंह मुंडा, वासवी किड़ो, दयामनी बरला सहित अन्य ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया.
राजनीतिक दर्शन पर आधारित है पुस्तक
लेखक संतोष किड़ो ने कहा कि यह पुस्तक जयपाल सिंह मुंडा के पुत्र जयंत जयपाल से कई लंबे साक्षात्कार के बाद लिखी गयी. शोध करने में तकरीबन एक साल लगा. इसमें जयपाल सिंह मुंडा के जीवन से संबंधित विभिन्न पहलुअों पर प्रकाश डाला गया है, पर मुख्य रूप से उनके राजनीतिक दर्शन पर लिखा गया है. यह एेसा विषय है, जिस पर अभी भी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है.