रांची : मानवाधिकार समिति ने चिरुडीह गोलीकांड में पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट पर उठाये सवाल
कई बिंदुओं पर निष्पक्ष जांच की मांग की रांची : हजारीबाग जिले के चर्चित बड़कागांव चिरुडीह गोली कांड में पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट पर मामले के शिकायतकर्ता मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने सवाल खड़े किये हैं. समिति ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अपना पक्ष भेजा है. इसमें कहा गया है कि एनटीपीसी द्वारा गांव वालों […]
कई बिंदुओं पर निष्पक्ष जांच की मांग की
रांची : हजारीबाग जिले के चर्चित बड़कागांव चिरुडीह गोली कांड में पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट पर मामले के शिकायतकर्ता मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने सवाल खड़े किये हैं. समिति ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अपना पक्ष भेजा है.
इसमें कहा गया है कि एनटीपीसी द्वारा गांव वालों की जमीन उनकी रजामंदी से ली गयी थी या जबरदस्ती, यह जांच का विषय है. पुलिस मुख्यालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एनटीपीसी ने सुरक्षा एवं विधि-व्यवस्था के लिए समुचित बल व दंडाधिकारी को प्रतिनियुक्त करने का अनुरोध पत्र दिया था.
पत्र के आधार पर 15 सितंबर 2016 से दंडाधिकारी के आदेश से उक्त स्थल और आसपास में धारा 144 लगाते हुए पर्याप्त संख्या में पुलिस फोर्स मुहैया कराया गया. जबकि एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा 30 सितंबर 2016 को थाना प्रभारी सहित अन्य पुलिस अधिकारियों को पत्र दिया गया था. ऐसे में पुलिस मुख्यालय किस पत्र के आधार पर 15 सितंबर 2016 में शिकायत किये जाने की बात कह रही है. इसकी भी जांच होनी चाहिए.
एएसपी की बात और मुख्यालय की रिपोर्ट में अंतर
पुलिस मुख्यालय ने खुद की रिपोर्ट में कहा है कि 30 सितंबर 2016 तक आंदोलनकारियों ने खनन कार्य बंद रखा. जबकि तत्कालीन एएसपी कुलदीप कुमार ने अपने बयान में कहा है कि आंदोलनकारियों द्वारा मशीन जाने का रास्ता अवरुद्ध किया गया था. ऐसे में पुलिस के बयान ही अलग-अलग आैर विरोधाभासी हैं. कुलदीप ने यह भी कहा है कि भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने पहले टीयर गैस, रबर गोली व मिर्ची बम का प्रयोग किया. भीड़ द्वारा पुलिस पर फायरिंग की गयी. इसके जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. ऐसे में सवाल उठता है कि घटनास्थल से पुलिस ने कोई बुलेट बरामद किया? जबकि घटना के बाद से पुलिस कई दिनों तक मौके पर मौजूद रही थी. इन सब बातों की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
एएसपी व दंडाधिकारी का बयान अलग
तत्कालीन दंडाधिकारी कुमुद कुमार झा ने अपनी रिपोर्ट में जनता की ओर से फायरिंग या पुलिस की ओर से फायरिंग की बात नहीं कही है. जबकि एएसपी कह रहे हैं कि उनकी व उनके साथियों की जान खतरे में थी, इसलिए फायरिंग करनी पड़ी. वहीं दंडाधिकारी कह रहे हैं कि पुलिस बल द्वारा हल्का बल प्रयोग किया गया. दोनों के बयानों में विरोधाभास झलक रहा है. जबकि असलियत है कि पुलिस ने घरों में घुसकर फायरिंग की और लाठीचार्ज कर निर्दोष ग्रामीणों, औरतों व बच्चों को बुरी तरह मारा-पीटा.