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वाजपेयी नहीं होते, तो झारखंड राज्य भी नहीं बनता

अनुज कुमार सिन्हा अटल जी ने राज्य बनने के पहले कई बार झारखंड का दाैरा किया था अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे. भारतीय राजनीति के ऐसे नेता, जिन्हें हर दल के लाेग प्यार करते थे, सभी के चहेते थे. अदभुत वक्ता. बेदाग छवि. सभी काे मिला कर, साथ लेकर चलने का गुण. ऐसे नेता, जिनके […]

अनुज कुमार सिन्हा
अटल जी ने राज्य बनने के पहले कई बार झारखंड का दाैरा किया था
अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे. भारतीय राजनीति के ऐसे नेता, जिन्हें हर दल के लाेग प्यार करते थे, सभी के चहेते थे. अदभुत वक्ता. बेदाग छवि. सभी काे मिला कर, साथ लेकर चलने का गुण. ऐसे नेता, जिनके बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था-यह युवक एक न एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा. नेहरू की भविष्यवाणी सच हुई.
1996 में वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. जब बने, ताे अपना वादा भी निभाया. यह वादा था झारखंड अलग राज्य देने का. (उन दिनाें भाजपा के नेता झारखंड की जगह वनांचल कहते थे). इसलिए झारखंड ताे वाजपेयी का खास ऋणी है. इसमें काेई दाे राय नहीं कि वाजपेयी काे झारखंड क्षेत्र से खास लगाव था. संघ में रहते हुए उन्हाेंने राज्य बनने के पहले कई बार झारखंड का दाैरा किया था. वनवासी कल्याण केंद्र के कार्यक्रम में भी शामिल हाेने वे 80 के दशक में गारू (अब लातेहार जिला में) भी आये थे.
आज अगर झारखंड अलग राज्य है, ताे इसका श्रेय वाजपेयी सरकार काे ही जाता है. वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी जब-जब दक्षिण बिहार (अब का झारखंड क्षेत्र) आते थे, वनांचल (झारखंड) देने की बात करते थे.
यह सही है कि भाजपा 1988 से पहले अलग झारखंड राज्य के समर्थन में नहीं थी. इस क्षेत्र में काम करनेवाले भाजपा के नेता अपने केंद्रीय नेताआें से झारखंड (वनांचल) की मांग का समर्थन करने के लिए कहते थे, लेकिन काेई गाैर नहीं करता था. 1987 में निर्मल महताे की हत्या के बाद इस क्षेत्र में झारखंड की मांग तेज हुई थी. बड़ा आंदाेलन हुआ था. इसके बाद ही भाजपा ने अपनी नीति बदली थी. 8 अप्रैल 1988 काे आगरा में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पहली बार भाजपा ने वनांचल राज्य का समर्थन किया था.
आवाज उठाने वालाें में इंदर सिंह नामधारी, समरेश सिंह जैसे नेता आगे थे. उसके बाद से भाजपा इसमें पीछे नहीं रही. तीन महीने बाद जमशेदपुर में 2-3 जुलाई काे रीगल मैदान में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई आैर खुल कर वनांचल राज्य का समर्थन किया गया. इसमें वाजपेयी माैजूद थे. तत्कालीन अध्यक्ष आडवाणी भी थे.
उसके बाद 1991 के चुनाव के दाैरान वाजपेयी 29 मार्च काे रांची आये थे. माेरहाबादी मैदान में विशाल जनसभा की थी. इस सभा में वाजपेयी ने घाेषणा की थी कि लाेकसभा चुनाव में वनांचल अलग राज्य भाजपा का मुख्य मुद्दा हाेगा. वाजपेयी ने उसी दिन कहा था कि आर्थिक विकास के लिए छाेटेे राज्याें का भाजपा समर्थन करती है. इसके बाद जब भी वाजपेयी झारखंड आये (खास कर चुनाव के दाैरान), वनांचल के समर्थन में ही बाेले.
11 सितंबर 1999 काे रांची के बिरसा स्टेडियम में वाजपेयी ने विशाल जनसभा काे संबाेधित किया था. सरकार गिर जाने के बाद वाजपेयी तब कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे. उन्हाेंने कहा था-हमारी सरकार ही वनांचल देगी. जब तक वनांचल नहीं बनेगा, न हम चैन से बैठेंगे आैर न बैठने देंगे. आप हमें सांसद दें, हम आपकाे वनांचल देंगे. वाजपेयी ने झारखंड के लाेगाें से समर्थन मांगते हुए कहा था कि विराेध के बावजूद हमने संसद में वनांचल विधेयक पेश किया था.
अगर सरकार नहीं गिरती, ताे वनांचल राज्य बन गया हाेता. वाजपेयी के वादे का असर दिखा था आैर 1999 के चुनाव में झारखंड में 14 में से 11 सीटाें पर भाजपा के सांसद चुने गये. सरकार भाजपा की बनी आैर तीसरी बार प्रधानमंत्री बने वाजपेयी. उसके बाद उन्हाेंने वनांचल (झारखंड) राज्य बनाने के लिए जाे वादा किया था, उसे पूरा किया. अगले साल ही झारखंड राज्य बन गया. हालांकि 1999 के पहले भी 1996 आैर 1998 में भाजपा ने वनांचल अलग राज्य काे मुद्दा बनाया था.
इसका असर पड़ा था. 1996 आैर 1998 दाेनाें बार इस क्षेत्र से 12-12 सांसद चुने गये थे. झारखंड के लाेगाें ने अलग राज्य के समर्थन में अपना फैसला सुनाया था, लेकिन वाजपेयी की सरकार दाेनाें बार चल नहीं सकी थी आैर राज्य बन नहीं पाया था.
वर्ष 2000 में जिस दिन अलग झारखंड राज्य का विधेयक पेश किया जाना था, उस दिन भी काफी नाटक हुआ था. विराेध हुआ था. उत्तराखंड आैर छत्तीसगढ़ का विधेयक पेश हाे गया था आैर झारखंड के विधेयक काे लटका दिया गया था.
आभा महताे समेत कई सांसदाें ने विधेयक पेश नहीं करने का विराेध किया था. अंतत: आडवाणी के हस्तक्षेप के बाद वाजपेयी ने कैबिनेट की विशेष बैठक बुलायी आैर विधेयक पेश किया. अगर उस दिन वाजपेयी पीछे हट जाते, ताे शायद अलग झारखंड राज्य बन नहीं पाता.

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