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अटल बिहारी वाजपेयी के झारखंड में आखिरी शब्द : हिंदुत्व बनाम भारतीयता की बहस निरर्थक

सुनील चौधरी रांची : राउरे मन के जोहार… यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रांची के मोरहाबादी में आयोजित रैली में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था. 25, 26 और 27 नवंबर 2004 को भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक होटल अशोक रांची में हुई थी. राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में अंतिम सत्र को […]

सुनील चौधरी

रांची : राउरे मन के जोहार… यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रांची के मोरहाबादी में आयोजित रैली में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था. 25, 26 और 27 नवंबर 2004 को भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक होटल अशोक रांची में हुई थी. राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए श्री वाजपेयी ने कहा था कि हिंदुत्व बनाम भारतीयता की बहस निरर्थक है. इन दोनों विषयों में किसी प्रकार का अंतर्विरोध नहीं है.

उन्होंने कहा था कि हिंदुत्व जीवन दर्शन है, यह चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता. श्री वाजपेयी ने कहा था कि हिंदुस्तान को अपनी सांस्कृतिक धरोहर बचाने की जरूरत है, नहीं तो आज देश पश्चिम की काॅपी बनकर रह जायेगा.

इसके पूर्व 25 नवंबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में एक रैली आयोजित की गयी थी. इस रैली में तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (तब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में), पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी (तब भाजपा में ही थे), वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास, सांसद कड़िया मुंडा, पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, तब भाजपा के झारखंड प्रभारी राजनाथ सिंह समेत अन्य कई नेता रैली में शामिल हुए थे.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्यों का गठन किया था. रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि जनता चाहे तो और भी छोटे-छोटे राज्य बन सकते हैं. उन्होंने तत्कालीन सरकार की तारीफ करते हुए कहा था कि झारखंड की प्रगति को देख कर विश्वास होता है कुछ वर्षों में ही इसकी गणना विकसित राज्यों में होगी. यहां अपार प्राकृतिक संसाधन हैं, मेहनत करने वाले लोग हैं. कोई कारण नहीं कि झारखंड प्रगति में पीछे रह जाये.

हथियार और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते

अटल ने आतंकवाद और नक्सलवाद के मुद्दे पर कहा था कि आतंकवाद की कभी जीत नहीं होगी. मुट्ठी भर आतंकवादियों के सामने देश नहीं झुकेगा. उन्होंने पूछा था कि आतंकवाद का मतलब क्या है? क्या चाहते हैं ?

हुकूमत चाहते हैं? अगर हां तो चुनाव लड़ कर जनता का समर्थन हासिल कीजिए.उन्होंने कहा था कि हम 50 साल तक हुकूमत के लिए लड़ते रहे, लेकिन हमने तो कभी उग्रवाद का सहारा नहीं लिया. तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार पर हमला करते हुए अटल ने कहा था नयी सरकार आयी है. आतंकवाद बढ़ रहा है. वे हथियार के साथ वार्ता करने की शर्त लगा रहे हैं. हथियार और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते. नक्सलवाद पर उन्होंने कहा था कि छिटपुट हिंसक घटनाओं से क्रांति नहीं आती. शासन व समाज व्यवस्था नहीं बदलती. इसमें परिवर्तन तभी होगा जब लोग आपको पसंद करें और आपको चुन कर भेजें.

झारखंड पर श्री वाजपेयी ने कहा था कि वनवासियों को वनों में खेती करने का हक हमने दिया था. बड़ा प्रदेश होने से शासन ठीक नहीं होता. हमने छोटा राज्य झारखंड बनाया. जो वादा किया था. पूरा किया. जनता चाहेगी तो और भी छोटे राज्य बनेंगे.

मुसलमान किसी को वोट दें, उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं

सुप्रतीम बनर्जी

24 अप्रैल 1996. यानी लोकसभा चुनाव से महज तीन रोज पहले. ये वो तारीख थी, जब अटल जी चुनाव प्रचार के सिलसिले में जमशेदपुर आये थे. शहर के गोपाल मैदान में उनकी चुनावी सभा थी और इसके बाद उन्हें तुरंत चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली लौटना था. प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी, जिनके भरोसे भारतीय जनता पार्टी उन दिनों चुनावी वैतरणी पार करने का सपना देख रही थी, वो ऐसे किसी मौके पर कितना व्यस्त हो सकते हैं, ये शायद किसी को बताने की जरूरत नहीं है.

उन दिनों मैं जमशेदपुर में प्रभात खबर की टीम का हिस्सा था और मुझे पत्रकारिता में आये हुए जुम्मा-जुम्मा चार, साढ़े-चार साल हुए थे. काम को लेकर मुझमें जोश की कोई कमी नहीं थी.

लेकिन शायद मेरे नये होने की वजह से मेरे संपादक (अनुज कुमार सिन्हा) और सीनियर्स (विनोद शरण) को मुझसे बहुत ज्यादा की उम्मीद नहीं थी. मगर मैं किसी भी नये लड़के की तरह उन दिनों हमेशा ही कुछ ‘बड़ा’ करना चाहता था. और चुनाव से ऐन पहले अटल जी जैसी किसी शख्सियत का इंटरव्यू कर पाने से बड़ी बात और क्या हो सकती थी?

मगर, एक छोटे से शहर का मामूली पत्रकार होते हुए तब ना तो इंटरव्यू के लिए कोई ‘व्यू रचना’ मुमकिन थी और ना ही उनका एप्वाइंटमेंट मिलना था.

मगर, चांस लेने पर कोई रोक नहीं थी. मैंने चांस लिया और चुनावी सभा के बाद वापसी में अपनी मोपेड अटल जी की कॉनवॉय के पीछे लगा दी. वो सोनारी एयरपोर्ट से दिल्ली के लिए उड़ान भरने से पहले एयरपोर्ट के लाउंज में अपनी थकान मिटा रहे थे. पुलिस वालों से लड़ता-भिड़ता मैं बड़ी मुश्किल से उनके कमरे तक पहुंचा.

मेरे मन में इंटरव्यू के लिए अटल जी के तैयार होने और मना करने को लेकर जबरदस्त संशय था. मैंने उनसे बातचीत की गुजारिश की और बड़प्पन दिखाते हुए अटल जी तमाम थकान और व्यवस्तता के बावजूद मुझ जैसे नये-नवेले पत्रकार से बातचीत को फौरन तैयार हो गये. उन दिनों जैन बंधुओं का हवाला कांड कांग्रेस समेत तकरीबन सभी सियासी दलों के गले की फांस बना था. गरज ये कि शायद ही कोई ऐसी पार्टी या नेता रहा हो, जिसका नाम इन जैन बंधुओं की डायरी में ना हो. लिहाजा, मैंने भी बातचीत की शुरुआत इसी मुद्दे को लेकर की.

बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मदनलाल खुराना तक के नाम डायरी में आने को लेकर उनसे कई तीखे सवाल पूछ डाले. लेकिन बेहद हाजिर जवाब, वाकपटुता और सौम्य अटल जी ने मेरे सभी सवालों का जवाब पूरी तसल्ली से दिया. बगैर लाग लपेट के कह डाला कि सरकार के इशारे पर सीबीआइ किस तरह इस मामले में चुन-चुन कर विरोधियों को निशाना बनाने में लगी है. मुसलमानों पर उन्होंने बेझिझक कहा कि वो चाहे किसी भी पार्टी को वोट दें, इससे उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं.

सच तो ये है कि इसके बाद मैं ना मालूम कितनी बड़ी-बड़ी हस्तियों से मिला. कितनी बातें हुईं और हो रही हैं. लेकिन अटल जी जैसी शख्सियत से हुई वो मुख्तसर सी बातचीत आज भी मेरी यादों में उतनी ही ताजा है.

(लेखक प्रभात खबर के संवाददाता थे, वर्तमान में टीवीटीएन में डिप्टी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)

अटल जी के सान्निध्य में हर कोई हो जाता था सहज

अजय मारू

अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुआयामी था. उनके सान्निध्य में हर कोई सहज हो जाता था. इनके संबंध में लिखना मेरे जैसे लोगों के लिए दुरूह काम है.

मुझे वाजपेयी जी के विभिन्न स्वरूपों को काफी नजदीक से देखने का मौका मिला. उन्हें एक स्नेही पारिवारिक अभिभावक के रूप में देखा. राजनीति में उन्हीं को प्रेरणास्रोत मान कर प्रवेश किया था. जब सांसद बना, तो वाजपेयी जी मेरे मार्गदर्शक थे. यह भी एक सुखद संयोग था कि सांसद के रूप में मेरे प्रथम दो वर्षों के दौरान श्री वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. यह सर्वविदित है कि मेरे पिता स्व सीताराम मारू के साथ श्री वाजपेयी की व्यक्तिगत घनिष्ठता थी.

भारतीय जनसंघ के दिनों में वाजपेयी जी का जब भी रांची आना होता था, मेरे घर आते ही थे. घंटों पिताजी से बातें होती और हम सब भाइयों से कुछ न कुछ पूछते रहते थे. बात 1976 की है. जब रांची एक्सप्रेस दैनिक हुआ और 1977 के आमसभा चुनाव में जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनी. वर्ष 1978 में हमने प्रिंटिंग के लिए सेकेंड हैंड रोटरी मशीन खरीदी. इसके उद्घाटन के लिए वाजपेयी जी से आग्रह किया था. बतौर विदेश मंत्री वाजपेयी जी आग्रह को स्वीकार करते हुए सेकेंड हैंड मशीन का उद्घाटन करने रांची आये थे.

लेखक राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं

अटल जी के भाषण के समय बदला रहता था नजारा

रामटहल चौधरी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मृदुभाषी, मिलनसार, चरित्रवान व्यक्ति थे. इनके भाषण के समय सदन का नजारा ही बदला-बदला रहता था. जब उनका भाषण होता था तो सत्तारुढ़ दल के साथ-साथ विपक्षी दल के सांसद भी उन्हें सुनने के लिए मौजूद रहते थे.

भाजपा आज जिस मुकाम पर खड़ी है, इसका सारा श्रेय अटल जी को जाता है. एक बार अटल जी को पेट्रोल-डीजल की कीमत एक रुपये बढ़ानी थी. उन्होंने सभी सांसदों को इस पर अनुमति लेने को लेकर बुलाया था. पूछे जाने पर कहा था कि वे देश की सभी बड़ी सड़कों को गांव, देहात से जोड़ना चाहते हैं. साथ ही बड़ी नदियों को जोड़ कर गांव-गांव तक पानी पहुंचाना चाहते हैं. मैंने अटल जी के नेतृत्व में ही 1967 में भाजपा ज्वाइन किया था. उस वक्त वीमेंस कॉलेज रांची के समीप भाजपा का झोपड़ीनुमा कार्यालय हुआ करता था.

मेरे आग्रह पर ओरमांझी के लोगों से मिलने को लेकर अटल जी ने मई माह की कड़कड़ाती धूप में आधे घंटे तक इंतजार किया था. मैं आज भी अटल जी के व्यवहार व व्यक्तित्व से प्रभावित हूं. झारखंड अलग राज्य अटल जी की ही देन है.

लेखक रांची लोकसभा से सांसद हैं

जब भींगते हुए डेढ़ घंटे तक भाषण देते रहे अटल जी

संजय सेठ

27 अगस्त 1981 को अटल बिहारी वाजपेयी रांची आये हुए थे. मैं उनके पास पहुंचा. मैंने अटल जी की सभा रांची में कराने की इच्छा व्यक्त की. इस पर श्री वाजपेयी मान गये. मैंने कहा, जल्दबाजी में सब कुछ हो रहा है, फिर भी वाजपेयी जी को सुनने सब आयेंगे. 30 अगस्त को शाम चार बजे से अब्दुल बारी पार्क मैदान में सभा हुई.

सभा में अप्रत्याशित भीड़ पहुंची. उन्हें भाषण देते हुए आधा घंटे बीता ही था कि बारिश शुरू हो गयी. लेकिन कोई अपनी जगह से नहीं हिला. वाजपेयी जी भी भींग कर भाषण देने लगे. उन्होंने लोगों से कहा कि जब तक आप भींगेंगे, मैं भी भींगूंगा. जब तक आप सुनेंगे, तब तक मै बोलता रहूंगा.

झोपड़ी में खाया

अटल जी लोहरदगा, गुमला, पालकोट, कोलेबिरा होते हुए ओड़िशा जा रहे थे. पालकोट के पास शाम सात बजे उनकी गाड़ी रुकी. वह सामने की झोपड़ी में गये. कहे कि हमको खिलाअोगे. वहीं झोपड़ी में रोटी और आलू का भुजिया खाया. फिर गृह स्वामी का पैर भी छुए. कहा कि आप अन्नदाता हैं.

लेखक झारखंड राज्य खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष हैं

अटल जी के पदचिह्नों पर चल कर खिल रहा है कमल : रघुवर दास

रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सोच थी कि एक ऐसा भारत बने जहां लोग बेघर, बिना दवा, बिना पानी के नहीं हों. उन्हीं की सोच को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्य कर रहे हैं. अटल जी एक-एक कार्यकर्ता के आदर्श थे, हैं और रहेंगे.

उनके साथ बिताये पल को याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1980 में मुंबई सम्मेलन में जब वह गये थे, तो उन्होंने अपने संबोधन में कहा था सूरज उगेगा और कमल खिलेगा. जो आज सच साबित हो रहा है. वह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं.

उन्होंने जो भविष्यवाणी की थी अंधेरा छंटेगा कमल खिलेगा, आज उन्हीं के पदचिह्नों पर चल कर पूरे देश में कमल खिल रहा है. पोखरण परीक्षण करने की हिम्मत जो अटल जी ने की थी. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की शक्ति का एहसास कराया था. जबकि अमेरिका ने आर्थिक पाबंदी लगायी थी, लेकिन उन्होंने देशहित में किया. वह कहते हैं जियेंगे और मरेंगे देश के लिए. उनकी जीवनी क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण राष्ट्र सेवा में अर्पित रहा है.

इसलिए वह दल की सीमा में नहीं हैं. देश के सर्वमान्य नेता हैं. जमशेदपुर में आम बागान की घटना को याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वह घुटने के ऑपरेशन के बाद यहां आये थे. उन्होंने आग्रह किया कि बैठ कर भाषण दें, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और खड़ा होकर ही भाषण दिया. इसके बाद वह 1995 में चुनाव प्रचार करने आये थे. जमशेदपुर सर्किट हाउस में उन्होंने साथ चाय पी और लंबी वार्ता हुई थी.

उनके सान्निध्य में रह कर कई चीजों को जानने व समझने का मौका मिला. अटल जी भारतीय राजनीति में शिखर पुरुष हैं व आदमकद व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं. मुख्यमंत्री श्री दास ने कहा कि अटल जी एक ऐसे युग पुरुष हैं, जो तीन राज्यों के जन्मदाता हैं. वर्ष 2004 में पहली कार्यसमिति के लिए जब निवेदन करने वह अटल जी के पास गये तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया था.

चुनाव प्रचार के दौरान भी वह अटल जी के साथ कई बार रहे. मेरे चुनाव प्रचार में भी वह आये थे. जिसका साक्षी रहा है आम बागान. अटल जी जन-जन के जन नायक रहे. वह भाषा, जाति, देश-विदेश के संकुचित भाव से ऊपर उठ कर हमेशा खड़े रहते थे. भगवान करोड़ों लोगों की भावना को अवश्य सुनेंगे. वह राजनीति में रहते हुए अपराजय वक्ता, संवेदनशील कवि बन गये थे. उनकी कविता में संवेदनशीलता थी.

जब झारखंड अलग राज्य बना, तो जनता खुशी से झूम उठी थी. यहां की जनता को उन पर पूरा भरोसा था. उन्होंने देश को तीन-तीन राज्य दिया, जो बड़ी बात है. अटल बिहारी वाजपेयी के निधन की खबर मिलते ही मुख्यमंत्री रघुवर दास गुरुवार को शाम में दिल्ली रवाना हो गये.

युग द्रष्टा थे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी

शैलेंद्र महतो

मेरे बाल्यकाल से अटल बिहारी वाजपेयी जैसा व्यक्तित्व मेरे मनाेमस्तिष्क काे प्रभावित करता रहा है. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने राष्ट्रसेवा के निमित फकीरी की साधना सिद्ध की. निज माेक्ष की स्वार्थ भावना काे अलग रखकर राष्ट्रनिष्ठा, राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्राेद्धार के लिए उन्हाेंने अाजीवन वैराग्य की राजनीतिक संन्यास मार्ग का अवलंबन किया. यह भारत की कराेड़ाें जनता काे आह्लादित एवं प्रेरित करता रहा है. अटल जी के इस व्यक्तित्व काे मैं नमन करता हूं.

मैं 1989 में प्रथम बार झारखंड मुक्ति माेर्चा से सांसद बन कर लाेकसभा में पहुंचा, ताे अटल जी काे सामने से देखने का अवसर प्राप्त हुआ. लाेकसभा में जब अटल जी से भेंट हाेती थी, ताे हम सभी सांसद नतमस्तक हाेते थे.

1996 में मैं भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ था, ताे वे स्वयं रांची आये आैर एक विशाल जन सभा काे संबाेधित किया. समय था 12वीं लाेकसभा का चुनाव. जमशेदपुर लाेकसभा से पार्टी टिकट के बारे में जब अटलजी से बात की थी, ताे उन्हाेंने पूछा था कि आपकी पत्नी कितनी पढ़ी लिखी है?

मैंने उन्हें जवाब दिया कि वह ताे राजनीति शास्त्र में स्नातक (अॉनर्स) हैं. तब वाजपेयी जी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि बहुत अच्छा. जब मैं राजनीति के भीष्म पितामाह की तरह विराट व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अटलजी की तरफ देखता हूं, ताे अनायास ही उनके प्रति श्रद्धा एवं भक्ति का भाव उमड़ पड़ता है. जब वाजपेयी जी काे देश का नेतृत्व करने का दायित्व मिला, ताे मात्र 13 महीने के छाेटे से कार्यकाल में उन्हाेंने विश्व काे संकल्प एवं कुशलता से लाेहा मनवाया.

अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996, 1998 आैर 1999 की लाेकसभा में जाेर देकर कहा था कि तुम मुझे वाेट दाे, मैं तुम्हें झारखंड दूंगा. केंद्र में जैसे ही भाजपा की सरकार आयी, उन्होंने कहा कि हम वनांचल राज्य का मार्ग प्रशस्त करेंगे. यह भी साफ किया कि हमारा झारखंड नाम से काेई विराेध नहीं है. वाजपेयी जी के इस आह्वान से झारखंड के मतदाताआें ने लाेकसभा चुनाव में भाजपा काे आंख बंद कर समर्थन किया, जिसमें 14 लाेकसभा सीट में से 11 सीटाें पर भाजपा की जीत हुई.

13वीं लाेकसभा 1999 में अटलजी के नेतृत्व में पुन: उनकी सरकार बनी आैर वर्षाें से विकास, प्रगति के निमित प्रशासनिक दृष्टि से एक अलग झारखंड राज्य की मांग काे स्वीकार कर उस पर मुहर लगा दी. आइये हम उनके जीवन से शिक्षा लेकर संकल्प लें, शपथ लें आैर अटलजी के शब्दाें में ही भारत माता के सामने आ रही चुनाैतियाें काे साहस, बल एवं धैर्य के साथ मुकाबला करने का आह्वान करता हूं-

हार नहीं मानूंगा

रार नहीं ठानूंगा

काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

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