EXCLUSIVE : झारखंड की सेहत बिगाड़ रहे बिना डॉक्टर के तीन मेडिकल कॉलेज, स्टाफ भी नदारद
मिथिलेश झा @ रांची आयुर्वेद आैर योग चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें नयी-नयी योजनाएं बना रही हैं. झारखंड भी इसमें पीछे नहीं है. अभी हाल ही में स्वास्थ्य विभाग की प्रधान सचिव निधि खरे ने एलान किया कि राज्य में चार नये फार्मेसी कॉलेज खोले जायेंगे. इसके विपरीत वर्षों पुरानी […]
मिथिलेश झा @ रांची
आयुर्वेद आैर योग चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें नयी-नयी योजनाएं बना रही हैं. झारखंड भी इसमें पीछे नहीं है. अभी हाल ही में स्वास्थ्य विभाग की प्रधान सचिव निधि खरे ने एलान किया कि राज्य में चार नये फार्मेसी कॉलेज खोले जायेंगे. इसके विपरीत वर्षों पुरानी कई परियोजनाएं अब तक धरातल पर नहीं उतरीं. आयुष विभाग के अधीन राज्य के अलग-अलग जिलों में पांच नये मेडिकल कॉलेज खोले गये. इनमें से तीन में कोई स्टाफ (टीचिंग या नन-टीचिंग) नहीं है.
झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद आयुष विभाग के अधीन स्थापित तीन (आयुर्वेदिक, फार्मेसी और यूनानी) मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों की स्थापना की गयी, लेकिन इसका लाभ अभी तक राज्य के मरीजों को नहीं मिला. इन मेडिकल कॉलेजों में कोई फैकल्टी नहीं है, कोई डॉक्टर नहीं है. एक मेडिकल कॉलेज का तो कोई अता-पता तक नहीं है.
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जाहिर है,मरीजों के इलाज आैर इन चिकित्सा पद्धति की पढ़ार्इ के लिए झारखंड में जिन यूनानी, फाॅर्मेसी, आैर आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलजों आैर अस्पतालों की स्थापना के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर दिये गये, उन कॉलेजों से अभी तक एक भी वैद्य, हकीम या फार्मासिस्ट तैयार नहीं हुए.
भारत की पुरातन चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए चाईबासा में 100 बेड का आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल बनना था. 14 साल पहले इस भवन का निर्माण शुरू हुआ, जो अब तक अधूरा है. अब तो इसका निर्माण कार्य बंद भी हो चुका है.
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गिरिडीह के यूनानी मेडिकल कॉलेज का भव्य भवन बनकर तैयार हो गया, लेकिन वहां किसी मरीज ने आज तक इलाज नहीं कराया. इस भवन में कौशल विकास केंद्र चल रहा है. वहीं, गुमला में आयुर्वेदिक फार्मेसी कॉलेज बनना था. आयुष विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कुछ दिनों तक यहां काम हुआ था, लेकिन बाद में इस कॉलेज का क्या हुआ, कुछ नहीं मालूम. इस कॉलेज के लिए आये उपकरण कहां गये, उसके बारे में भी किसी के पास कोई जानकारी नहीं है.
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आयुष निदेशालय के दस्तावेजोंमें राज्य में उसके पांच मेडिकल कॉलेज हैं. इसमें तीन मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं, जहां कोई कर्मचारी नहीं है. विभाग में कार्यरत कर्मचारी नियत समय पर रिटायर हो रहे हैं. कुछ का निधन हो गया. रिटायरमेंट आैर कर्मचारियों के निधन से विभाग में कर्मचारियों की संख्या लगातार घटती जा रही है, लेकिन उनकी जगह पर नयी तकनीकी समस्या और स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण नियुक्ति नहीं हो रही.
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आयुष निदेशालय के प्रमुख डॉ अब्दुल अहमद नुमान कहते हैं कि आयुष विभाग के बार-बार के अनुरोध पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत 418 से ज्यादा आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति हुई, लेकिन इन्हें आयुष विभाग से दूर रखा गया है. ये लोग एलोपैथी की दवाएं लिखते हैं. बच्चों की स्क्रीनिंग करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि झारखंड के अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी पर कोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया, तो आयुष विभाग के लिए नियुक्त किये गये इन 418 डॉक्टरों को राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के तहत नियुक्त डॉक्टर बता दिया गया.
पद सृजित हुए, नियुक्ति कभी नहीं हुई
झारखंड राज्य जब अस्तित्व में आया, तो बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 के अंतर्गत झारखंड के हिस्से में 261 आयुष चिकित्सक आये. इसमें 174 आयुर्वेदिक चिकित्सा पदाधिकारी, 62 होमियोपैथिक चिकित्सा पदाधिकारी और 23 यूनानी चिकित्सा पदाधिकारी थे. 25 मार्च, 2006 को झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने 137 पदों का सृजन किया. इसमें 63 आयुर्वेदिक चिकित्सा पदाधिकारी, 44 होमियोपैथिक चिकित्सा पदाधिकारी और 16 यूनानी चिकित्सा पदाधिकारी के पद कार्यरत थे. 25 नवंबर, 2008 को एक बार फिर सरकार ने आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक और यूनानी चिकित्सा पदाधिकारियों के क्रमश: 60, 60 और 30 पद यानी कुल 150 पद सृजित किये. इस तरह झारखंड में आयुर्वेदिक, होमियोपैथी और यूनानी के डॉक्टरों के कुल 548 पद हो गये. चिकित्सकों के पद तो सृजित हो गये, लेकिन इन पदों को कभी भरा नहीं गया. नियमावली के अभाव में नियुक्ति से जुड़ी फाइल कभी झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जेपीएससी), तो कभी सचिवालय आती-जाती रही. नियुक्ति कभी नहीं हुर्इ. दूसरी तरफ, चिकित्सक और कर्मचारी रिटायर होते गये.
वर्ष 2016-17 से कम रह गया है बजट
सालाना बजट के लिए बनायी गयी योजना आैर गैर-योजना मद के खर्च में भी आयुष विभाग तेजी से पिछड़ता गया. सालाना बजट के लिए विभाग की आेर से बनायी गयी योजना के अनुसार, वर्ष 2016-17 में शहरी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उसे 2 करोड़ 11 लाख 22 हजार 557 रुपये की राशि स्वीकृत की गयी थी, जिसे वर्ष 2017-18 में बढ़ाकर 4 करोड़ 37 लाख 9 हजार रुपये कर दिया गया. इसी साल इसका रिवाइज्ड अनुमान बढ़कर 4 करोड़ 74 लाख 39 हजार 210 रुपये हो गया, लेकिन वर्ष 2018-19 के लिए राज्य सरकार ने आयुष के लिए जो बजट अनुमान पेश किया, उसमें यह राशि घटकर मात्र 1 करोड़ 82 लाख 55 हजार रुपये रह गयी है, जो वर्ष 2016-17 की तुलना में करीब 28 लाख 67 हजार रुपये कम है.
वेतन मद में होने वाला खर्च भी घटा
योजना के अनुसार, वेतन मद में भी अब वर्ष 2016-17 की तुलना में कम खर्च रह गया है. वर्ष 2016-17 में वेतन मद में 37 लाख 6 हजार 680 रुपये खर्च होते थे, जो वर्ष 2017-18 में करीब 38 लाख 39 हजार और इसका रिवाइज्ड अनुमान बढ़कर करीब 53 लाख 39 हजार हो गया. वर्ष 2018-19 में यह राशि घटकर करीब 35 लाख 17 हजार रुपये रह गयी. विभागीय बजट के अनुसार, आयुष मेडिकल काउंसिल और ड्रग कंट्रोलर जैसे महत्वपूर्ण कार्यालय का व्यय वित्तीय वर्ष 2016-17 में करीब तीन लाख रुपये था, जो वर्ष 2018-19 में घटकर करीब एक लाख रुपये रह गया. इस तरह आयुष संभवत: झारखंड का एकमात्र विभाग होगा, जिसका बजट बढ़ने की बजाय घटा है. विभाग की उपेक्षा का आलम यह है कि वर्ष 2016-17 और 2017-18 में आयुष के आधारभूत संरचनाओं के निर्माण पर बजट में कोई प्रावधान ही नहीं किया गया. हालांकि, वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में इस मद में करीब 13 करोड़ 38 लाख 95 हजार रुपये खर्च का प्रावधान किया गया है.
आयुष निदेशक को उम्मीद : जल्द प्रशस्त होगा नियुक्ति प्रक्रिया का मार्ग
इस मामले में आयुष निदेशक डॉ अब्दुल अहमद नुमान कहते हैं कि झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद आयुष विभाग के लिए नियमावली नहीं बनी. इसी की वजह से नियुक्तियां नहीं हुईं. उन्होंने कहा कि वरीय अधिकारियों के साथ होने वाली हर बैठक में वह इस मुद्दे को उठाते हैं. लेकिन, नियमावली के अभाव में इस दिशा में कोई प्रगति अब तक नहीं हुई. कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रधान सचिव निधि खरे इस दिशा में गंभीर हैं और उन्होंने नियमावली को अंतिम रूप देने की दिशा में पहल की है. डॉ नुमान ने उम्मीद जतायी कि जल्द ही नियमावली तैयार हो जायेगी और आयुष विभाग में नियुक्तियों का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा.