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विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाला : बिहार में हटाये गये 7 कर्मियों को छोड़ झारखंड विस के किसी कर्मी की नौकरी नहीं जायेगी

संजय रांची : विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच करनेवाले जस्टिस विक्रमादित्य जांच आयोग ने बिहार विधानसभा से हटाये गये उन सात लोगों को बरखास्त करने की अनुशंसा की है, जिन्हें बाद में झारखंड विधानसभा में बैकडोर से बहाल किया गया था. इसके अलावा किसी अन्य कर्मी की नौकरी पर कोई खतरा नहीं है. रिपोर्ट की […]

संजय
रांची : विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच करनेवाले जस्टिस विक्रमादित्य जांच आयोग ने बिहार विधानसभा से हटाये गये उन सात लोगों को बरखास्त करने की अनुशंसा की है, जिन्हें बाद में झारखंड विधानसभा में बैकडोर से बहाल किया गया था.
इसके अलावा किसी अन्य कर्मी की नौकरी पर कोई खतरा नहीं है. रिपोर्ट की अनुशंसा में सिर्फ गलत तरीके से पदोन्नत (प्रोमोट) किये गये कर्मियों को डिमोट करने की बात है. सूत्रों के अनुसार, आयोग ने इस मामले में नेचुरल जस्टिस का ख्याल रखा है तथा माना है कि इस प्रक्रिया में उन लोगों की गलती नहीं, जो चाहे किसी भी तरह से बहाल हुए तथा वहां कार्यरत हैं. वहीं इस मामले में दोषी पाये गये पूर्व विधानसभा अध्यक्षों इंदर सिंह नामधारी, आलमगीर अालम व शशांक शेखर भोक्ता सहित कुछ विधानसभा कर्मियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने संबंधी अनुशंसा की बात पहले ही सार्वजनिक होचुकी है.
बिहार का जाति प्रमाण पत्र झारखंड में : झारखंड गठन के बाद वर्ष 2003 में ही झारखंड सरकार ने यह आदेश निकाला कि जाति संबंधी आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को मिलेेगा, जिनके पास झारखंड सरकार द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र हो. पर झारखंड विधानसभा में बिहार से जारी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर कई लोग नियुक्त व प्रोन्नत हुए.
स्टेनोग्राफर व निजी सहायक की नियुक्ति में भी धांधली हुई. इसमें अनुभव के आधार पर प्राथमिकता की गलत व्याख्या की गयी. दरअसल प्राथमिकता का अर्थ यह होना चाहिए था कि यदि लिखित व अन्य परीक्षा में दो अभ्यर्थियों को एक समान अंक या ग्रेड मिल जाये, तो इसमें अनुभववाले को प्राथमिकता दी जायेगी. पर झारखंड विधानसभा में कई अभ्यर्थियों के तथाकथित अनुभव को आधार बनाते हुए 10-10 अंक दे दिये गये. इससे लिखित परीक्षा व साक्षात्कार में मिले अंक बेमानी हो गये. गौरतलब है कि नियुक्ति पाये ऐसे लोगों ने परीक्षा के बाद जहां-तहां से अनुभव प्रमाण पत्र जुगाड़ कर जमा किया था.
नामधारी का मानवीय आधार वाला जवाब : नियुक्ति व प्रोन्नति घोटाले के आरोपी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी को पूछताछ के लिए बुलाया गया था. उनसे जब नियुक्ति में गड़बड़ी का कारण पूछा गया तो वह मानवीय आधार पर ऐसा करने की रट लगाये रहे.
वहीं प्रोन्नति में गड़बड़ी पर उनका जवाब था कि ऐसे लोग बहुत दिन से काम कर रहे थे, इसलिए उन्हें प्रोन्नति दी गयी. सूत्रों के अनुसार, आयोग ने इस जवाब को गैरजिम्मेदाराना माना है. ऐसे कई मामले पिक एंड चूज माने गये हैं. जांच आयोग को विधानसभा नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले से संबंधित जांच के बाद 30 सवालों के जवाब राजभवन को देने थे. इनमें से 30वां सवाल इसी पिक एंड चूज को लेकर था. पूछा गया कि क्या इस मामले में ऐसा हुआ है? जांच आयोग ने कई उदाहरण देते हुए इसका जवाब हां में दिया है.
राजभवन सचिवालय से हुई पूछताछ : आयोग ने राजभवन सचिवालय से भी इस संबंध में पूछताछ की. पूछा कि क्या राजभवन इस तरह काट-छांट की गयी फाइल पर अनुमोदन देता है? इस पर राजभवन के अधिकारी भी असमंजस में आ गये. इसके बाद राजभवनवाली मूल संचिका खोजी गयी, तो वह बिल्कुल फ्रेश थी तथा उसमें सिर्फ 75 पदों पर ही अनुमोदन दिया गया था. इससे यह साफ हो गया कि अमरनाथ झा ने अपने स्तर पर या फिर किसी के इशारे पर 75 पद को 150 पद कर दिया था. अमरनाथ झा ने एक अौर गड़बड़ी की थी.
विधानसभा कर्मियों को भत्ता देने संबंधी फाइल में अवर सचिव तक को यह लाभ देने की बात थी. श्री झा ने उक्त संचिका में लिखे उप सचिव तक को सचिव तक कर दिया. इससे भत्ता लेने वाले विधानसभा कर्मियों की संख्या बड़ी हो गयी.
आरएस शर्मा का जवाब : दरअसल नियुक्तियों के लिए पद सृजन का अधिकार विधानसभा को नहीं बल्कि सरकार को है. इस मामले में भी विधानसभा से चूक हुई. इस संबंध में राज्यपाल के तत्कालीन प्रधान सचिव आरएस शर्मा से आयोग ने जानना चाहा कि क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी?
इस पर श्री शर्मा का जवाब था कि उन्हें लगा कि राज्यपाल (तत्कालीन) रमा जॉयस हाइकोर्ट (पंजाब व हरियाणा) के मुख्य न्यायाधीश रह चुके थे, वह नियम-कायदे जानते होंगे तथा उन्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं है. हालांकि आयोग को यह जवाब स्वीकार्य नहीं था. यह भी माना गया कि झारखंड नया राज्य था, हो सकता है सरकार व संबंधित अधिकारियों को इस बात की पक्की जानकारी न रही हो कि विधानसभा खुद पद सृजन नहीं कर सकती.
एजी ने भी की थी आपत्ति : इससे पहले प्रधान महालेखाकार (एजी) ने भी विधानसभा में हुई नियुक्तियों और पद सृजन के मामलों की जांच की थी. एजी ने जांच के क्रम में पाया कि विधानसभा में पद सृजन के लिए प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी है. सरकार की सहमति भी नहीं ली गयी है.
साथ ही पद सृजन का औचित्य भी नहीं बताया गया है. विधानसभा सचिवालय से मिले दस्तावेज के आधार पर एजी ने राज्य विभाजन के बाद झारखंड विधानसभा को मिले पदों और वर्तमान कर्मचारियों की संख्या का आंकड़ा भी तैयार किया था.
विक्रमादित्य आयोग की अनुशंसा
गलत तरीके से प्रोन्नत किये गये लोग डिमोट हों
पूर्व विधानसभा अध्यक्षों व कुछ कर्मियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हो
जांच आयोग ने नेचुरल जस्टिस का ख्याल रखा है
जांच आयोग ने माना है कि इस प्रक्रिया में उन लोगों की गलती नहीं, जो चाहे किसी भी तरह से बहाल हुए तथा वहां कार्यरत हैं
बड़े साजिशकर्ता अमरनाथ झा
सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट के तथ्य बताते हैं कि इस घोटाले में खास कर नियुक्ति संबंधी अनियमितता मामले में विधानसभा के पूर्व प्रभारी सचिव अमरनाथ झा (1.7.2001 से 6.10.2004) बड़े साजिशकर्ता रहे हैं. इस शख्स ने वह काम किया है, जिसका साहस कम लोग कर सकते हैं.
दरअसल विधानसभा ने सहायकों के 75 पद का सृजन कर इससे संबंधित फाइल अनुमोदन के लिए राजभवन भेजी थी. राजभवन से अनुमोदन के बाद जब यह फाइल विधानसभा लौटी, तो श्री झा ने करीब तीन महीने तक यह फाइल अपने पास दबाये रखी.
आयोग ने अपनी जांच के दौरान जब यह फाइल मंगायी, तो इस पर 13 जगह काट-छांट देखी. यही नहीं, यह भी पाया गया कि मूल फाइल में जिन 75 पदों पर अनुमोदन मिला था, उसे 75+75 कर दिया गया था. इसी आधार पर 150 पदों के लिए गजट का प्रकाशन भी हो गया.

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