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कोयला का स्टॉक खत्म, बिहार, झारखंड, बंगाल से लेकर दिल्‍ली तक गुल हो सकती है बिजली

कोलकाता : एनटीपीसी की 4200 मेगावाट क्षमतावाले पूर्वी भारत में स्थित प्लांट को कोयले की सप्लाई करनेवाले खदान का स्टॉक लगभग खत्म हो गया है.इससे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल समेत पूरे उत्तर भारत में होनेवाली बिजली की आपूर्ति बाधित हो सकती है. भूमि अधिग्रहण से जुड़े विवादों के कारण इस खदान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2018 6:22 AM
कोलकाता : एनटीपीसी की 4200 मेगावाट क्षमतावाले पूर्वी भारत में स्थित प्लांट को कोयले की सप्लाई करनेवाले खदान का स्टॉक लगभग खत्म हो गया है.इससे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल समेत पूरे उत्तर भारत में होनेवाली बिजली की आपूर्ति बाधित हो सकती है. भूमि अधिग्रहण से जुड़े विवादों के कारण इस खदान के विस्तार में देर हो रही है. इसकी वजह से इलाके में स्थित दो अहम पावर प्लांट के उत्पादन में भारी गिरावट आयी है. साथ ही इनके स्टॉक्स भी खाली हो रहे हैं. केंद्र सरकार इस मुद्दे को सुलझाने के लिए स्थानीय प्रशासन के संपर्क में है.
एनटीपीसी के एक वरीय एग्जीक्यूटिव ने बताया कि झारखंड के राजमहल माइंस से कोल इंडिया औसतन 55 हजार टन कोयले की आपूर्ति करती है. अब यह घटकर 40 हजार टन हो गयी है. बारिश के दिनों में यह और घट जाती है. इस कारण पावर प्लांट के जमा स्टॉक में कमी आ रही है. एनटीपीसी के फरक्का थर्मल पावर प्लांट में स्टॉक घटकर चार हजार टन आ गया है जो करीब दो महीने पहले ढाई लाख टन था.
कहलगांव थर्मल पावर स्टेशन में भी स्टॉक घटकर 45 हजार टन आ गया है, जो दो महीने पहले पांच लाख टन था. इन सभी वजहों से एनटीपीसी को अपने फरक्का और कहलगांव पावर प्लांट के उत्पादन स्तर को घटाकर क्रमश: 60 फीसदी और 80 फीसदी करने पर मजबूर होना पड़ा है जो पहले 90 फीसदी था. मामला अब केंद्र सरकार तक पहुंच चुका है और मंत्रालय लगातार स्थिति पर नजर रखे हुए है.
कोल इंडिया के एग्जीक्यूटिव के मुताबिक राजमहल माइंस के मौजूदा भंडार लगभग खाली हो गये हैं और उत्पादन स्तर को बरकरार रखने के लिए खदान के विस्तार की जरूरत है. हालांकि राजमहल माइंस से सटे दो गांव, बंसबीहा और तालझारी में भूमि अधिग्रहण लंबी प्रक्रिया में बदल चुकी है.
स्थानीय प्रशासन ने भूमि अधिग्रहण के लिए दो वर्ष पहले नोटिस जारी किया था, लेकिन लंबी बातचीत के बाद ग्रामीण पिछले कुछ महीनों में जमीन छोड़ने को राजी हुए हैं. करीब 160 हेक्टेयर में फैले इस इलाके में अधिक आबादी नहीं है. फिर भी इलाके की ज्यादातर जमीन विवादों में फंस गयी है क्योंकि एक ही प्लॉट के लिए करीब 40-50 लोग मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं.
कई प्लॉट ऐसे हैं जहां राज्य सरकार उसके सही मालिक की पहचान नहीं कर पा रही है जिसे मुआवजे की राशि ट्रांसफर की जानी है. राज्य सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयास पहले काफी धीरे थे लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप के बाद इसमें तेजी आयी है.
एनटीपीसी के अधिकारी के अनुसार अगर राजमहल में बारिश न हुई तो फरक्का प्लांट 60 फीसदी और काहलगांव प्लांट 80 फीसदी उत्पादन क्षमता के साथ काम करते रहेंगे लेकिन अगल कोल इंडिया की तरफ से आपूर्ति में और कमी आयी तो उन्हें अपनी यूनिट को बंद करने या अपनी क्षमता को और कम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

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