रांची यूनिवर्सिटी में धूमधाम से मनायी गयी वारंग क्षिति के जनक लाको बोदरा की 99वीं जयंती
रांची : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की ओर से सोमवार को ‘हो’ भाषा की लिपि ‘वारंग क्षिति’ के जनक और आदिवासी दार्शनिक कोल गुरु लाको बोदरा की 99वीं जयंती मनायी गयी. जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के […]
रांची : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की ओर से सोमवार को ‘हो’ भाषा की लिपि ‘वारंग क्षिति’ के जनक और आदिवासी दार्शनिक कोल गुरु लाको बोदरा की 99वीं जयंती मनायी गयी. जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा मौजूद रहे.
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इस मौके पर डॉ सत्यनारायण मुंडा ने कहा कि ‘हो’ समाज के लिए प्रेरणास्रोत रहे लाको बोदरा की पुस्तकों का प्रचार-प्रसार होनी चाहिए. ‘हो’ जाति के लोगों की संस्कृति और संस्कारों पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन हो, ताकि दूसरे लोग भी उन्हें जान सकें. रांची विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ कामिनी कुमार ने लाको बोदरा के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि भाषा साहित्य को और अधिक समृद्ध करने के लिए अन्य भाषा-भाषी लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि किसी खास भाषा वर्ग द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में दूसरी भाषाओं के लोगों को भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए. साथ ही आपस में अनुवाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे लोग एक-दूसरे को जान और समझ सकें. उन्होंने विभागाध्यक्ष को गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर के मौके पर गांधी जी पर आधारित स्लोगन लिखवाने का भी निर्देश दिया.
हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो डॉ विंध्यवासिनी नंदन पांडेय ने लाको बोदरा के साथ बिताए पलों को साझा करते हुए कहा कि कोल गुरु लाको बोदरा ‘हो’ भाषा के महाप्राण हैं. प्रध्यापक डॉ उमेश नंद तिवारी ने कहा कि लाको बोदरा जैसा व्यक्तित्व समाज के लिए एक मिसाल के रूप में सदियों याद किया जाता है. ऐसे लोग हर भाषा में बिरले ही पाये जाते हैं.
उन्होंने कहा कि लाको बोदरा ने जिस समय ‘हो’ भाषा के लिए काम किया, उस समय संसाधनों की कमी थी. ऐसे में उनके कार्योँ का प्रचार-प्रसार होना चाहिए. उन्होंने कहा कि लाको बोदरा कभी किसी का आलोचना नहीं किये, यही उनकी सबसे बड़ी महानता को उजागर करती है. प्राध्यापक डॉ हरि उरांव ने लाको बोदरा के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए युवाओं से उनसे सीखने की अपील की. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ त्रिवेणी नाथ साहु ने कहा कि हरेक व्यक्ति को एक-दूसरे की भाषा का सम्मान करना चाहिए. अन्य भाषाओं द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में बगैर किसी भेदभाव के समान रूप से भाग लेना चाहिए.
इस मौके पर ‘हो’ भाषा के साहित्यकार कमल लोचन कोड़ा की दो पुस्तकों यथा ‘हो लोककथा’और ‘लड़ाका हो’ (लोकगीत) का लोकार्पण किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉ सरस्वती गागराई तथा धन्यवाद ज्ञापन जयकिशोर मंगल ने किया. मौके पर काफी संख्या में भाषाविद, साहित्यकार, शोधकर्ता और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे.