बोले वेंकैया नायडू : राष्ट्र का निर्माण जन आकांक्षाओं से ही, भारत चाहता है कि पूरा विश्व शांति के साथ रहे

रांची : राष्ट्र का निर्माण जन आकांक्षाओं से ही होता है. भारत में संवाद और विमर्श की सदियों पुरानी परंपरा रही है. ज्ञान की प्रामाणिकता सफल संवाद की ही परिणति है. कृष्ण और अर्जुन के संवाद ही गीता की रचना का बीज है. यह ध्यान देने योग्य है कि प्राचीन समय से इस तरह के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2018 9:43 PM

रांची : राष्ट्र का निर्माण जन आकांक्षाओं से ही होता है. भारत में संवाद और विमर्श की सदियों पुरानी परंपरा रही है. ज्ञान की प्रामाणिकता सफल संवाद की ही परिणति है. कृष्ण और अर्जुन के संवाद ही गीता की रचना का बीज है. यह ध्यान देने योग्य है कि प्राचीन समय से इस तरह के विचारों में महिलाओं ने भी भाग लिया था. रांची के खेलगांव में प्रज्ञा प्रवाह के अंतर्गत लोकमंथन के कार्यक्रम का उदघाट्न करते हुए भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने यह बात कही.

उन्होंने कहा कि लोक मंथन से हम अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को ही फिर से स्थापित कर रहे हैं. आज की परिस्थिति में विचार का आदान प्रदान होना जरूरी है. मैंने भारत दर्शन प्रदर्शनी को देखा है और युवा भी इसे देखें. 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम में सभी देशभक्तों ने भाग लिया. अंग्रेजों को लगता था कि भारत कभी एक नहीं हो सकेगा. आज समाज को खुद अपना इतिहास बोध करने की जरूरत है.

उन्‍होंने कहा कि भाषा, इतिहास, संस्कृति, लोक गीत आदि का आत्म मंथन हो. ऐसे प्रदर्शनी भारत के हर शहर में होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर हम भारतीयता को महत्व देने की बात कहते हैं तो हमे अपने बारे में जानना जरूरी है. इसलिए मंथन का होना जरूरी है. हमें अपनी संस्कृति को लोगों के सामने रखना जरूरी है. आजादी के बाद जो शिक्षा दिया गया उसमे भारत को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है. इसलिए फिर से इस मानसिकता से बाहर निकल कर हमें मंथन करने की जरूरत है.

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने माता पिता को हमेशा याद रखना है. दूसरा अपनी जन्मभूमि को याद रखना चाहिए. आप कितना भी ऊंचा पहुंचे लेकिन जन्मभूमि को न भूलें. तीसरा अपनी मातृभाषा को हमेशा याद रखना चाहिए और उसे प्रोत्साहन देना चाहिए. मातृभाषा इंसान की आंख होती है. भाषा और भावना एक साथ चलती है. अपनी भाषा में ही भावना को बेहतर प्रस्तुत कर सकते हैं.

उपराष्ट्रपति ने कहा कि लैटिन अमेरिका में लोग अपनी मातृभाषा नहीं जानते. क्योंकि स्पेनिशों ने वहां की भाषा बदल दी. और, सबसे महत्वपूर्ण हमें अपने राष्ट्र को हमेशा याद रखना चाहिए. हम अलग-अलग हैं लेकिन सब एक हैं. भारत एक भारत ही है. अलग-अलग भाषा अलग-अलग पंथ है पर, है अपना देश. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा की जब शरीर के किसी भाग में चोट लगती है तो पूरा शरीर दर्द करता है. उसी तरह देश भी है.

देश और गुरु का सदैव सम्‍मान करें

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इनके अलावा अपने गुरु को भी याद रखना बहुत जरूरी है. गुरु ज्ञान देता है. इसलिए मां, मातृभूमि, मातृभाषा, देश और गुरु हमेशा याद रखें. यह मंथन भारत को देखने का एक मात्र साधन है. विवेकानंद के भाषण में उन्होंने कहा कि जब भी भारत का सही इतिहास लिखा जायेगा तो भारत सच मे विश्वगुरु बन जायेगा.

गांधी जी का मानना था कि वे भी संस्कृति से परिचित होना चाहते थे. मैं नहीं चाहता कि मेरा घर दीवारों से घेर लिया जाए. शंकराचार्य से विवेकानंद तक कई विचारक हुए जिन्होंने सामाजिक सौहार्द्र के लिए समाज को प्रेरित किया है. आत्मबोध ही हमारा गौरव है. सामाजिकता का अंकुर हर क्षेत्र में फूटना चाहिए.

धर्मनिरपेक्षता हर भारतीय के डीएनए में

नायडू ने कहा कि आज लोकमंथन एक संस्कार है. सार्थक समाज का निर्माण होगा. भारत एक महान देश है. हमारी संस्कृति महान है. भारत हमेशा से अपने संस्कार के लिए जाना गया है. दुनिया भर से बच्चे यहां शिक्षा लेने आते थे. भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है. यही हमारी संस्कृति है. मुझे यकीन है कि भारत नंबर वन बनेगा. धर्मनिरपेक्षता हर भारतीय के डीएनए में है.

उन्‍होंने कहा कि भारत चाहता है कि पूरा विश्व शांति के साथ रहे. संस्कृति एक जीवन पद्वति है. अपनी रोटी बांट कर खाना भारत की संस्कृति है. अंतिम व्यक्ति तक सरकार पहुंचे. यहां के युवाओं के कौशल को बढ़ाकर उनको पहले पायदान पर लाने की जरूरत है. ये तीन दिन सकारात्मक चर्चा होगी. तभी मंथन से अमृत निकल सकेगा. लोग अपने संकुचित मानसिकता से बाहर आये यही हमारा सुझाव है.

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