रांची : "हमें नफरत नहीं थी, अंग्रेजों की कौमी सूरत से, हमें नफरत थी, उनके अंदाजे हुकूमत से. अगर अपनों की हुकूमत रहबर हो नहीं सकती". अकबर इलाहाबादी की इन लाइनों के माध्यम से पद्मश्री डॉ सुभाष कश्यप ने पांचवीं अनुसूची पर अपने व्याख्यान को अंतिम रूप दिया. अपने व्याख्यान में उन्होंने पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासियों को क्या अधिकार मिले हैं. ? इन विशेष अधिकारों पर सरकार कितनी गंभीर है, जमीनी स्तर पर इसकी सच्चाई क्या है ?. पद्मश्री डॉ सुभाष कश्यप ने पांचवीं अनुसूची पर आदिवासियों के अधिकार की चर्चा की.
कागज पर बना कानून दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कानून है
इस व्याख्यान में डॉ सुभाष कश्यप ने आदिवासियों को विशेष क्या – क्या अधिकार हैं. संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने के अधिकार क्या हैं. डॉ सुभाष कश्यप ने कहा, हमारे देश में जो कानून कागज पर बनें हैं वह दूसरे देशों से सर्वश्रेष्ठ हैं बस उन्हें जमीनी स्तर पर ठीक से लागू करने की आवश्यकता है. पेसा कानून पर राज्य सरकारों के रवैये पर निराशा जताते हुए कहा, केंद्र ने इस पेसा का मॉडल नियम बनाया, लेकिन राज्य सरकारों ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया.
सरकार या ग्रामसभा कोई भी निरंकुश हो तो सही नहीं है
डॉ कश्यप ने कहा, केंद्र सरकार हो राज्य सरकार या ग्रामसभा अगर कोई भी निरंकुश हो जाता है तो संविधान की धाराओं के अनुकूल नहीं है. हम सब भारत के नागरिक है , हम सब एक हैं. ग्रामसभा का सपना महात्मा गांधी ने देखा था. उनकी परिकल्पना थी कि वह संविधान में ग्रामसभा को केंद्र में रखें. डॉ कश्यप ने कहा, आदिवासियों को अधिकार मिले हैं जिनकी चर्चा आज हम यहां कर रहे हैं उससे लगता है आदिवासियों को बहुत सारे अधिकार प्राप्त हैं लेकिन ऐसा नहीं है यह अधिकार उन्हें सिर्फ कागजों पर मिले हैं. आदिवासियों के हालात में आज भी सुधार नहीं आया. डॉ कश्यप ने कुलदीप माथूर की रिसर्च का हवाला देते हुए कहा, आदिवासियों की जमीन पर अधिग्रहण , खनन समेत कई ऐसे कदम सरकार के द्वारा उठाये जा रहे हैं जो उनके हित में नहीं. पंचायती राज्य मंत्रालय ने पेसा कानून को लागू करने में कई समस्याएं बतायी है केंद्र सरकार ने मॉडल नियम बनाकर भेजा हैं लेकिन उस पर राज्यों की तरफ से कोई जवाब नहीं आया .
राज्यपाल के विशेष अधिकारों का भी जिक्र
इस व्याख्यान में डॉ कश्यप ने राज्यपाल के विशेष अधिकारों का भी जिक्र किया कि किस तरह वह आदिवासियों के लिए कई नये फैसले ले सकते हैं. नये कानून बना सकते हैं. राज्यपाल को इन सारी शक्तियों के पीछे की परिकल्पना पर उन्होंने कहा, राज्यपाल को शक्ति देने के पीछे कारण था कि वह आदिवासियों के बात सुनेंगे लेकिन कई जगहों पर ऐसा नही है. कई राज्यों में तो हालात यहां तक है कि राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली रिपोर्ट भी राज्य सरकार बनाती है.
कानून बनाना बाबुओं का काम है
एक तरफ आदिवासियों के हित में नियम बन रहे हैं दूसरी तरफ कॉरपोरेट घराने इसे ही विकास में बाधक बताते हैं. कानून बनाना बाबुओं का काम है. पेसा पर अबतक कोई फैसला नहीं हुआ कई अधिकार आपतक नहीं पहुंच रहे इसके लिए आपको आंदोलन करना चाहिए. अगर सुधार लाना चाहते हैं तो सत्ता आम लोगों के हाथ में होनी चाहिए. आदिवासियों के हित में बात हो लेकिन कोई आदिवासी अगर इसका गलत लाभ ले तो उस पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.
एक नेता की पत्नी ने अपने नाम पर 700 एकड़ जंगल की जमीन कर ली. यह तो गलत है. इस पर भी विरोध होना चाहिए. मेरा सुझाव है कि लोकसभा और विधानसभा के निर्वाचक मंडल और प्रसासनिक इकाई को एक कर दिया जाए. गांव के स्तर पर जो काम हो सकता है वह ऐसे नहीं हो सकेगा जैसे प्रयास किया जा रहा है.
पत्थलगड़ी आंदोलन को मैनेज किया गया समस्याएं जस की तस है
पांचवीं अनुसूची और आदिवासियों को मिले विशेष अधिकार की चर्चा करते – करते डॉ कश्यप ने पत्थलगड़ी पर भी अपनी बात रखी. पत्थगड़ी आंदोलन को मैनेज किया गया उसकी समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया.
पत्थलगड़ी आंदोलन के बारे में कहना चाहूंगा कि हम सब भारत के नागरिक हैं हमें समान अधिकार हैं. सत्ता का अधिकार लोगों के हाथ में है. सारे भारत के लोगों के पास सर्वभौम अधिकार हैं . अगर वह कहते हैं कि हमें राज्स और केंद्र की परवाह नहीं करनी तो गलत है क्योंकि भारत के सभी नागरिक एक समाज है. अगर कोई खुद को भारत से अलग और आजाद बताता है तो इसे राष्ट्रद्रोह ही माना जायेगा.
आदिवासियों को उनके अधिकार की जानकारी नहीं – राज्यपाल
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू भी शामिल रही. कार्यक्रम में द्रोपदी मुर्मू ने कहा, डॉ सुभाष कश्यप ने लंबे समय तक संविधान पर शोध किया है. वह संविधान की बारिकियों को समझते हैं. 32 प्रकार के आदिवासी है. जनसंख्या के प्रतिशत की बात करें तो 22.6 प्रतिशत आदिवासी है. लेकिन आदिवासियों को उनके अधिकार की जानकारी नहीं है. राज्य में जनजातिय कार्य मंत्रालय का निर्माण किया गया है. जिसकी घोषणा सरकार 15 नवंबर को कर सकती है.
सवाल – जवाब के दौरान हुआ हंगामा
इस व्याख्यान में शामिल लोगों को भी अपने सवाल रखने का अवसर मिला .कार्यक्रम में शामिल कई समाजिक कार्यकर्ता और खूंटी जिले से आये लोगो ने भी सवाल पूछे. ध्यान रहे कि इन इलाकों में पत्थलगड़ी एक बड़ी समस्या रही है. इन सवालों में आदिवासियों के अधिकार और संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत विशेष क्या हैं इस पर विशेष ध्यान दिया गया.
कार्यक्रम में प्रभाकर कुजूर ने आदिवासियों के हितों को थोड़ा और स्पष्ट करने और पांचवीं अनुसूची पर विस्तार से चर्चा करने की मांग की. उन्होंने पूछा पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत पार्ट और शिड्यूल में क्या फर्क है. उन्होंने डॉ कश्यप को संबोधित करते हुए कहा, आप बातों का आप यहां जिक्र नहीं कर रहे. आदिवासी अपने लिये नीति बना सकते हैं ,अपना अधिकार समझते हैं इसके लिए उन्हें बाहर से आये किसी व्यक्ति की जरूरत नहीं है.