यूनिसेफ, सेंट्रल यूनिवर्सिटी और प्रभात खबर की पहल : झारखंड चिल्ड्रेंस फिल्म फेस्टिवल-2018 का हुआ आगाज
रांची : केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड में सोमवार को दो दिवसीय झारखंड चिल्ड्रेंस फिल्म फेस्टिवल-2018 का आगाज हुआ. फेस्टिवल का उदघाटन सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो नंद कुमार यादव इंदू, चिल्ड्रेंस फिल्म सोसाइटी इंडिया के राजेश गोहिल, यूनिसेफ के कम्युनिकेशन ऑफिसर मोईरा दावा, वरिष्ठ पत्रकार विनय भूषण व फिल्मकार बाटुल मुख्तियार ने संयुक्त रूप से किया. […]
रांची : केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड में सोमवार को दो दिवसीय झारखंड चिल्ड्रेंस फिल्म फेस्टिवल-2018 का आगाज हुआ. फेस्टिवल का उदघाटन सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो नंद कुमार यादव इंदू, चिल्ड्रेंस फिल्म सोसाइटी इंडिया के राजेश गोहिल, यूनिसेफ के कम्युनिकेशन ऑफिसर मोईरा दावा, वरिष्ठ पत्रकार विनय भूषण व फिल्मकार बाटुल मुख्तियार ने संयुक्त रूप से किया.
दो दिनों तक चलने वाले इस फेस्टिवल में कई बाल फिल्में दिखायी जायेंगी. साथ ही बाल फिल्मों को लेकर यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और यूनिसेफ के बाल पत्रकारों के लिए व्याख्यान व कार्यशाला होगी. इस फेस्टिवल का आयोजन यूनिसेफ, प्रभात खबर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड व चिल्ड्रेंस फिल्म सोसाइटी इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है.
फिल्म फेस्टिवल को गांव स्तर पर पहुंचाना है लक्ष्य
चिल्ड्रेंस फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया के राजेश गोहिल ने बताया कि सोसाइटी का गठन 1955 में हुआ. अभी तक 15 अलग भाषाओं में 260 बाल फिल्मों का निर्माण किया गया है.
सोसाइटी का उद्देश्य है कि इस तरह के फिल्म फेस्टिवल को गांव स्तर पर ले जायें और वैसे बच्चे जो थियेटर में नहीं आ सकते हैं, उन्हें यह बाल फिल्में दिखायें. उन्होंने कहा कि ऑडियो विजुअल और अन्य माध्यम से नेत्रहीन व मूक बधिर बच्चों को भी बाल फिल्मों का लाभ मिले, इसपर काम किया जायेगा.
विदेशी कार्टून देख बड़े हो रहे हमारे बच्चे
इससे पहले सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के हेड डॉ देवव्रत सिंह ने स्वागत भाषण में कहा कि हमारे देश में बच्चों के मुद्दे पर फिल्में नहीं के बराबर बनती है. भारतीय मीडिया जगत में भी बच्चों के लिए कुछ नहीं होता है. इस कारण हमारे बच्चे विदेशी कार्टून देखकर बड़े हो रहे हैं. और विदेशी कंटेंट के माध्यम से इनके जेहन को बदला जा रहा है. यूनिसेफ की मोइरा दावा ने बच्चों के अधिकार व उनकी आवाज को दूसरों तक पहुंचाने के लिए यूनिसेफ द्वारा किये जा रहे प्रयास की जानकारी दी.
विश्व बाल दिवस सेलिब्रेट करने के लिए 20 नवंबर को नीले रंग का कपड़ा पहनने या फिर घरों के सजावट में नीले रंग का प्रयोग करने की अपील की. प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार विनय भूषण ने कहा कि हमारे देश में हिंदी के अलावा दूसरी भाषाओं में बच्चों की फिल्म बनती है, लेकिन हम उन्हें इसके बारे में नहीं बताते हैं.
स्मार्टफोन के इस क्रांतिकारी युग में हमारे बच्चे एडल्ट प्रोडक्ट कंज्यूम कर रहे हैं. उनके अंदर रुचि परिष्कृत करने की जवाबदेही हमारे ऊपर है. बच्चों को संवेदनशील व जवाबदेह बनाने के लिए फिल्म के निर्माण की जरूरत है. फिल्मकार बाटुल मुखियार ने कहा : मुझे बच्चों की फिल्म बनाना बेहद पसंद है. बच्चों की फिल्म में रियलिटी व रियलिज्म को पकड़ कर चलना पड़ता है.
बिहार-झारखंड में फिल्म सोसाइटी का गठन हो
सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति नंदकुमार यादव इंदू ने कहा कि बिहार या झारखंड की किसी भी विश्वविद्यालय में इस तरह का कार्यक्रम पहली बार हुआ है.
यह कार्यक्रम आनेवाले समय में यहां फिल्म प्रोडक्शन का बीज साबित हो, इसके लिए प्रयास जरूरी है. कुलपति ने बिहार-झारखंड में एक फिल्म सोसाइटी का गठन करने का भी सुझाव दिया. उदघाटन सत्र का संचालन निशांत व प्रतिभा और धन्यवाद ज्ञापन झारखंड चिल्ड्रेंस फिल्म फेस्टिवल के समन्वयक डॉ सुदर्शन यादव ने किया.
बाल फिल्म काफल दिखायी गयी
उदघाटन सत्र में बाल फिल्म काफल दिखायी गयी. फिल्म निर्माता बाटुल मुख्तियार की यह फिल्म की कहानी उत्तराखंड के गढ़वाल के एक सुदूर गांव पर आधारित है.
मकर और कमरू नामक दो छोटे भाइयों के स्कूल जाने, उनकी शरारतें, शहर गये उनके पिता के कई सालों तक गांव नहीं आने और फिर उसके गांव वापस आने के बाद पगली दादी व काफल के जैम के इर्द-गिर्द घूमती इस फिल्म को सबने बेहद पसंद किया. कार्यक्रम में ओरमांझी, नगड़ी, कांके व इटकी के विद्यार्थी शामिल हुए. फिल्मकार श्री प्रकाश ने फिल्म निर्माण की बारीकियां बतायी.
फिल्म काफल में बच्चों की भूमिका काफी अच्छी लगी. फिल्म में रिटायर्ड फौजी चाचा का भी किरदार बहुत अच्छा था, जो बात-बात पर कहते थे कि किसी को सुधारना हो, तो उसे फौज में भेज दो.
-माहताब आलम
फिल्म फेस्टिवल में शामिल होकर अच्छा लग रहा है. यह हमारे राज्य के लिए गौरव की बात है. फिल्म में धुआं लगाकर घर से मधुमखियों का शहद निकालने का दृश्य बहुत पसंद आया.
-अरुण उरांव
पहले दिन फिल्म काफल दिखायी गयी है. इस फिल्म में एक-दूसरे की मदद करने की सीख मिली. घूमरा और पगली दादी का किरदार बहुत अच्छा था. यह फेस्टिवल बच्चों के लिए मार्गदर्शक बनेगा.
-प्रीति कुमारी
फिल्म में मकर, उसके छोटे भाई कमरू व उसके दोस्तों का काम बहुत पसंद आया. गांव, जंगल और पहाड़ के दृश्य बेहद खूबसूरत थे. इस तरह की फिल्में देखने का मौका, उन्हें हमेशा मिलना चाहिये.
-ममता कुमारी