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jharkhand@18: छात्र नेता मनोज बोले, मैं नेतागिरी करने नहीं, नौकरी के लिए यहां आया

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह 10 वीं कड़ी है. इस […]

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह 10 वीं कड़ी है. इस कड़ी में पढ़ें पंकज कुमार पाठक की छात्र नेता मनोज कुमार से बातचीत.उनसे यह समझने की कोशिश की गयी है कि झारखंड में रोजगार की बड़ी समस्या क्यों हैं ?

झारखंड गठन से पहले छात्र क्या सोचते थे और आज कहां हैं ?. पारा शिक्षकों ने झारखंड स्थापना दिवस के दिन हंगामा किया. कुछ पारा शिक्षक गिरफ्तार किये गये, कड़ी कार्रवाई हुई. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने अपील की है कि पारा शिक्षक वापस काम पर लौट जाएं. सरकार की सख्ती और सत्ताधारी पार्टी की नरमी चर्चा का विषय बनी है.

हम इस सीरीज में अबतक दस कहानियां आप तक पहुंचा चुके हैं. हमारी कोशिश है कि इन सवालों के जवाब आपके साथ मिलकर ढूंढ़ सकें. इन सवालों का जवाब हमें कौन दे सकता था ? हमने तलाश शुरू की, क्योंकि हम आपको झारखंड अलग होने की कहानी सुना कर चुप नहीं बैठना चाहते थे.

प्रभात खबर डॉट कॉम ने झारखंड के अलग- अलग क्षेत्र के लोगों से बात की है, ज्यादातर युवा कहानियां. इसी कड़ी में हमने बात की है छात्र नेता मनोज कुमार से. इस पूरी बातचीत में हमने झारखंड के युवाओं की बात समझने की कोशिश की. वह सरकारी नौकरी का सपना देखते हुए क्या सोचते हैं.? जो छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तरफ मुड़ जाते हैं, उनके सामने कैसी समस्या आती है ?. हमने छात्र नेता मनोज को इसलिए भी चुना क्योंकि वह कहते हैं, मैं किसी पार्टी से नहीं जुड़ा इसलिए किसी खास पार्टी की बात नहीं रखूंगा अपने अनुभव सामने रखूंगा, उन लाखों छात्रों की बात रखूंगा, जो मेरे साथ सड़क से लेकर जेल की दहलीज तक खड़े रहे.

हम सभी मानेंगे कि झारखंड में आज भी ज्यादातर युवा सरकारी नौकरी का सपना देखते हैं. झारखंड में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. सरकार कौशल विकास और मुद्रा योजना के जरिये लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में लगी है, लेकिन सरकारी नौकरियां का हाल क्या है.

झारखंड गठन के बाद उम्मीद जगी

मैं गीरिडीह राजधनवार का रहने वाला हूं. मैंने पढ़ाई वहीं से की. सरकारी नौकरी का सपना लेकर मैं रांची आ गया. मैंने बीपीएससी की परीक्षा भी दी, लेकिन लगा उत्तर बिहार के छात्र ज्यादा मेहनती हैं. जब झारखंड अलग हुआ तो उम्मीद जगी की मेरी सरकारी नौकरी होगी. मैं चार बार जेपीएससी की पीटी परीक्षा में सफल हुआ. मुख्य परीक्षा में बैठा और इंटरव्यू तक भी पहुंचा, लेकिन जेपीएससी में भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप लगते रहे. कई मामलों की सीबीआई जांच कर रही है. घरवालों का सपना था कि मैं सरकारी अधिकारी बनूंगा. मेरे मां- पिता ने इसी सपने के साथ मुझे घर से दूर भेजा था. मैं गांव से हूं मुझे भी लगता था कि नौकरी मिली तो गांव के कई बच्चे खुश होंगे और सरकारी नौकरी की कोशिश करेंगे. मैं अपने अबतक के सफर में अपने घरवालों का सपना तो पूरा नहीं कर सका, लेकिन उन्हें जरूर खो दिया. अब मेरे मां- बाबा दुनिया में नहीं हैंं. मुझे दुख होता है कि मैं उनका सपना पूरा नहीं कर सका.

मैं नेतागिरी करने के लिए नहीं नौकरी करने आया था

मैं जब अपने गांव से निकला था तो मेरा सपना था कि मैं सरकारी नौकरी करूंगा, लेकिन अपनी समस्या उठाता गया और लोग जुड़ गये. झारखंड भले अलग हो गया, लेकिन अब भी कई चीजें हैंं जिनसे आजादी चाहिए. सरकारी नौकरी के लिए आवेदन से लेकर नियुक्ति तक की पूरी प्रक्रिया आसानी से नहीं होती. इसमें कोई ना कोई परेशानी होती है. कई बार मामला कोर्ट तक चला जाता है और वर्षों लटका रहता है. कई नीतियां ऐसी हैं जिस पर विरोध के बाद दोबारा विचार होता है, उसे बदला जाता है. हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति में सब्सिडियरी को भी रखा गया. उसमें ऐसे विषय भी रखे गये, जो हमारी शिक्षा प्रणाली से अलग थे. स्थानीय नीति बनी. एक राज्य में दो स्थानीय नीति बनी. 13 और 11 जिलों को अलग- अलग देखा गया. ये सारे फैसले आंदोलन के बाद बदले गये. यह बताता है कि आपके पहले की नीति सही नहीं थी. इन सारे फैसलों से नुकसान छात्रों का होता है.

सरकारी नौकरी नहीं मिली, तो कैसे चल रहा है आपका गुजारा ?

मनोज कुमार छात्र नेता हैं, छात्रों के लिए लड़ते रहे हैं, लेकिन उनका घर कैसे चलता है ? मनोज के पास पैसे कहां से आते हैं. इस सवाल पर मनोज कहते हैं मेरी पत्नी और एक छोटा सा बच्चा है. मैं कई जगहों पर ट्यूशन पढ़ाता हूं. वहां से पैसे मिलते हैं. इनसे ही मेरा गुजारा होता है. कई नौकरियों के लिए मैं आवेदन नहीं कर सकता. मेरी उम्र निकल चुकी है. क्या आप अपने बच्चे को सरकारी नौकरी करने देंगे ?. इस सवाल पर मनोज कहते हैं, आज के जो हालात हैं उसे देखते हुए तो मैं ना ही कहूंगा.

इन सारी समस्याओं से मिलकर हम सभी को लड़ना है, अगर युवाओं के सपने पूरे नहीं होंगे तो झारखंड कैसे आगे बढ़ेगा. मेरी पहचान के कई लोग हैंं जो सरकारी नौकरी की तैयारी करते-करते हार कर गांव लौट गये. हम सभी को मिलकर आगे बढ़ना होगा. क्रिकेट में किसी एक खिलाड़ी के अच्छा खेलने से जीत नहीं मिलती, सबको मिलकर प्रयास करना होता है. वैसे ही झारखंड के हर वर्ग, धर्म, संप्रदाय के लोगों को मिलकर कोशिश करनी होगी. झारखंड दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा संपन्न है. हमारे पास क्या नहीं है ? हम इतने सक्षम हैंं कि दूसरों का भी सपना पूरा कर सकते हैं.

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