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रांची : इजराइल दौरे के बाद ब्रांड एंबेसडर बनने को तैयार हैं सूबे के किसान

झारखंड सरकार ने एक्सपोजर विजिट के तहत करीब तीन दर्जन किसानों को इजराइल का दौरा कराया है. वहां कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, गव्य पालन की नयी तकनीक बतायी गयी है. वहां से लौटने के बाद सभी किसान राज्य के ब्रांड एंबेसडर बनने को तैयार हैं. इजराइल से लौटे किसान मांडर के गुड़गुड़जाड़ी गांव के गंदूरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 29, 2018 7:14 AM
झारखंड सरकार ने एक्सपोजर विजिट के तहत करीब तीन दर्जन किसानों को इजराइल का दौरा कराया है. वहां कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, गव्य पालन की नयी तकनीक बतायी गयी है. वहां से लौटने के बाद सभी किसान राज्य के ब्रांड एंबेसडर बनने को तैयार हैं.
इजराइल से लौटे किसान मांडर के गुड़गुड़जाड़ी गांव के गंदूरा उरांव बताते हैं कि पिछले 15 सालों से खेती-बारी कर रहे हैं. खेती के क्षेत्र में बेहतर कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. कहते हैं कि इजराइल में जो देखा, उसे झारखंड में जमीनी स्तर पर उतारना सपने जैसा है. इसके बाद भी हमारा हौसला कम नहीं है. इजराइल में फल और सब्जियां खराब नहीं होती हैं, क्योंकि वहां भंडारण की उचित व्यवस्था है, जहां किसान अपने उत्पाद रखते हैं.
बुढ़मू प्रखंड के हेसलपिरी पंचायत के बेड़वारी गांव के रामेश्वर महतो दो साल से जैविक खेती को बढ़ावा देने में लगे हैं. पहले रामेश्वर भी परंपरागत व रासायनिक खाद के सहारे खेती करते थे, लेकिन जबसे आर्ट ऑफ लिविंग की कार्यशाला से जैविक खेती की जानकारी मिली, उसके बाद उन्होंने जैविक खेती को ही अपना आधार बना लिया.
इसका असर भी दिखा और आज रामेश्वर जैविक खेती के सहारे 50 से 55 फीसदी तक अपने खेतों के उत्पादन में बढ़ोतरी कर रहे हैं. रामेश्वर अपनी 38 डिसमिल जमीन में तरबूज, 67 डिसमिल जमीन में खरबूज, 15 डिसमिल जमीन में खीरा एवं 15 डिसमिल जमीन में कद्दू और टमाटर की खेती करते हैं.
1560 एकड़ जमीन देने को तैयार हैं ग्रामीण
रांची : पलामू के हुसैनाबाद प्रखंड के ग्रामीण 1560 एकड़ जमीन नेशनल थर्मल पावर प्लांट (एनटीपीसी) व अन्य उद्योगों के लिए देने को तैयार हैं.
जमीन देने संबंधी प्रस्ताव ग्रामसभा से पारित करा कर ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री को भी इसकी सूचना पहले ही दे दी है. पहले उपायुक्त पलामू को इसकी सूचना दी गयी. हुसैनाबाद के कुल 10 गांवों नदियाइन, डुमरहाथा, बरवाडीह, बनियाडीह, बराही, शिवबगहा, पोखराही, ददरा, बड़ेपुर व बुधुवा के लोग मानते हैं कि इस इलाके में उद्योग लगने से रोजी-रोजगार को बढ़ावा मिलेगा.
इन गांवों से संबद्ध वीर कुंवर सिंह कृषक सहकारी समिति लि. के अध्यक्ष प्रियरंजन सिंह के अनुसार, इससे पहले 20 अक्तूबर 2013 को डुमरहाथा पंचायत में ग्राम सभा आयोजित कर 60 एकड़ जमीन मेगा फूड पार्क के लिए भी देने संबंधी प्रस्ताव पारित हुआ था. दरअसल, हुसैनाबाद के इन गांवों में विकास व रोजगार की ललक है. प्रियरंजन के अनुसार, इस इलाके से हर रोज पांच हजार लीटर दूध बिहार भेजा जाता है. ग्रामीण बहुत दिनों से यह मांग करते रहे हैं कि झारखंड सरकार यहां दुग्ध शीतक केंद्र (मिल्क चिलिंग प्लांट) की स्थापना करे.
एग्री एक्सपोर्ट पर काम करने की जरूरत
सरकार ने नवंबर 2002 में झारखंड के लिए एग्रीकल्चरल एक्सपोर्ट जोन की मंजूरी दी थी. इसके बाद 15 दिसंबर 2003 को राज्य सरकार ने केंद्र के एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट ऑथोरिटी के साथ करार किया. रांची, हजारीबाग व लोहरदगा जिले के 10 प्रखंडों को जोन गठन के लिए चिह्नित किया था, जो फल-सब्जी उत्पादन में अग्रणी हैं. इस जोन में उत्पादित फल-सब्जियों व मेडिसिनल प्लांट का निर्यात देश-विदेश में होना था. जोन में फूड प्रोसेसिंग इकाई भी बननी थी.
मार्केट नेटवर्क बढ़ाने की जरूरत
राज्य में कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार का बेहतर नेटवर्क भी नहीं है. इससे सूबे के किसानों को काफी परेशानी होती है़ मालूम हो कि राज्य सरकार ने सूबे के पांच मुख्य शहरों में आंध्रप्रदेश के रयातू मॉडल पर बाजार बनाने का निर्णय लिया था. इसके लिए 50 लाख रुपये का बजटीय प्रावधान भी किया गया था, लेकिन रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, बोकारो व धनबाद में बनने वाले बाजार आज तक नहीं बने. नाबार्ड के अनुसार राज्य के सिर्फ तीन हजार गांव ही मेन मार्केट यार्ड व दो सौ अतिरिक्त गांव सब मार्केट यार्ड से जुड़े हैं.
कोल्ड स्टोरेज बढ़ाने की जरूरत
राज्य भर में सिर्फ 35 कोल्ड स्टोरेज हैं. हैरत यह है कि इसमें भी राज्य सरकार का एकमात्र कोल्ड स्टोरेज है. हालांकि, चालू वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार ने सभी जिलों में कोल्ड स्टोरेज बनाने की योजना तैयार की है, लेकिन अब तक इसमें 14 को ही स्वीकृति मिल पायी है. एेसे में कोल्ड स्टोरेज नहीं होने से किसानों को अपना उत्पाद रखने में काफी परेशानी होती है. अधिक उत्पादन होने पर उसे फेंक देना पड़ता है.
फलों व सब्जियों का उत्पादन (हजार मीट्रिक टन में)
नाम 2015-16 2016-17
आम 393.66 438.54
कटहल 117.46 124.77
पपीता 106.69 109.88
अमरूद 80.04 88.83
नींबू प्रजातियां 47.73 53.96
लीची 40.00 47.80
बेल 35.58 36.21
केला 33.27 31.62
बेर 2.82 10.40
आंवला 1.30 1.41
अनार 0.03 0.009
सब्जियों का उत्पादन
आलू 627.00 668.65
भिंडी 452.12 401.46
मटर (हरा) 192.21 341.88
नाम 2015-16 2016-17
बंधगोभी 475.99 322.46
प्याज 254.62 292.58
फूलगोभी 258.64 292.17
बैगन 219.65 240.99
टमाटर 230.19 231.45
बिन-सेम 154.55 226.71
हरी मिर्च 144.84 180.64
मूली 11.73 39.84
शिमला मिर्च 17.34 32.54
कोंहड़ा 3.6 18.56
खीरा 25.69 18.55
कद्दू 13.96 13.33
करैला 12.31 13.19
गाजर 6.96 11.64
(स्त्रोत : कृषि मंत्रालय भारत सरकार)

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