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बोले मशहूर लेखक रस्किन बांड- पैरेंट्स बच्चों के हाथ में गैजेट्स के साथ किताब भी दें

आज के बच्चों में बुक्स एडिक्शन से पहले इंटरनेट एडिक्शन होती है. इंटरनेट एडिक्शन ज्यादातर बच्चों को बर्बाद कर देती है. यह उनके शरीर ही नहीं उनकी सोचने की क्षमता को भी प्रभावित कर देती है, पर बुक्स एडिक्शन बच्चों को प्रोडक्टिव बनाती है. पढ़ना एक अच्छी लत है. यह लत हर बच्चे में होनी […]

आज के बच्चों में बुक्स एडिक्शन से पहले इंटरनेट एडिक्शन होती है. इंटरनेट एडिक्शन ज्यादातर बच्चों को बर्बाद कर देती है. यह उनके शरीर ही नहीं उनकी सोचने की क्षमता को भी प्रभावित कर देती है, पर बुक्स एडिक्शन बच्चों को प्रोडक्टिव बनाती है. पढ़ना एक अच्छी लत है. यह लत हर बच्चे में होनी चाहिए. ये बातें टाटा स्टील : झारखंड लिटरेरी मीट 2018 में शिरकत करने आये 500 से अधिक पुस्तक, लघु कहानियां लिख चुके मशहूर लेखक रस्किन बांड ने राहुल गुरु से विशेष बातचीत में कही. प्रस्तुत है बातचीत का प्रमुख अंश.

आपकी ज्यादातर कहानियां बाल मन की होती है. लेखनी के लिए यही क्यों?

– ऐसा नहीं है कि मैंने सामान्य लोगों के लिए नहीं लिखा. अपने शुरुआती दिनों में सभी के लिए लिखता था. 1956 से ‘रूम ऑन द रूफ’ से बच्चों के लिए लिखना प्रारंभ किया. एक व्यक्ति के पूरे जीवनकाल में बचपना ही ऐसा दौर होता है, जो सबसे प्योर अथवा पवित्र होता है. इस दौर में एक व्यक्ति कहीं से छद्य नहीं होता. न मन से और न कर्म से. इस दौर में वो जो कुछ करता है, उसके लिए वह विचार नहीं करता. बच्चों पर और बच्चों के लिए लिखने की कई वजहें हैं. इसमें पहली वजह तो इसकी(बचपन) प्योरिटी और दूसरी कि मैं खुद को इसमें पाता हूं. मैंने 20 वर्ष की उम्र से लिखना शुरू किया. 50 से अधिक वर्ष लेखनी में गुजारे, लेकिन बच्चों के नॉवेल्स में खुद को तलाशना अच्छा लगा.

कहानियों में खुद की तलाश क्यों?

– रस्किन बांड के नॉवेल्स और कहानियों में आप बचपन के दौर को पायेंगे. मेरी कहानियों के कैरेक्टर रियल हैं. ये वही कैरेक्टर हैं, जिनके साथ मैंने बचपना बिताया. मेरी चाइल्डहुड आम बच्चों की तरह नहीं रही है. आठ साल की उम्र में जब था तब माता-पिता अलग हो गये. मैं पिता के साथ गया. अगले दो साल बाद 10 साल की उम्र में पिता खो दिया. ऐसे में मेरा बचपन संघर्षों में रहा. यही वजह रही कि मैं अपनी कहानियों के चरित्र के साथ-साथ घूमता हूं और उनके साथ खुद को पाता हूं.

बच्चे किताबों से ज्यादा टैब व इंटरनेट में होते हैं. आप क्या सोचते हैं?

– बच्चों के साथ ऐसा होना समय की जरूरत है. जहां तक रही बात बच्चों में रीडिंग हैबिट की कमी, तो ऐसा हर दौर में रहा है. जब मैं स्कूल में था तब मेरे लगभग 30 बच्चों की क्लास में दो-तीन ही ऐसे होते थे, जो किताबों का जिक्र किया करते थे. मेरा मानना है कि यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि जब वे बच्चे के एक हाथ में गैजेट्स दे रहे हों, तो दूसरे हाथ में किताब भी दें. ऐसा बच्चों को ही क्यों बड़ों को भी करना चाहिए. आपको क्रिएटिव होना है तो बच्चों के राइम्स पढ़ें. इसमें एक लय होती है. नर्सरी राइम आपको लय सिखाती है. कल्पना करना सिखाती है. पैरेंट्स को चाहिए कि वे किताबें पढ़ने के लिए बच्चों को प्रेरित करें. उन्हें यह समझायें कि आप जो पसंद करते हैं, वही पढ़ें.

युवा लेखकों की संख्या बढ़ रही है़ क्या राइटिंग में संभावनाएं हैं?

– देखिए, आज के युवा राइर्ट्स जो लिख रहे हैं वह अच्छी बात है. लेकिन इस क्षेत्र में ग्लैमर की तलाश नहीं करें. आप जिस भी भाषा में लिखें, उस भाषा की इज्जत करें. इस सेक्टर में संभावना की बात करें, तो आप अच्छा लिखें. पढ़ने वाले आपको खुद तलाश कर पढ़ लेंगे. जिस दिन आपको यह लगने लगेगा कि इस रास्ते आप पॉपुलर होंगे, लेखनी उसी दिन से बिगड़ने लगेगी. बिना हार माने, लिखते रहें.

रांची के बारे क्या कहेंगे?

– झारखंड पहली बार आना हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं लगा कि देहरादून से दूर हूं. अब तक जितना देखा उतने में हरियाली और मौसम में ठंडापन देहरादून से जोड़े रखा है. रांची से यादें बस इतनी हैं कि मेरी नानी यहां 1947 के दौर में तीन वर्षों तक रहीं. 78 वर्ष की उम्र में रांची में ही अपनी अंतिम सांस ली. यह याद नहीं कि उनकी कब्र कहां है.

रस्किन बांड को जानें

जन्म : 19 मई 1934, जामनगर कसौली, हिमाचल प्रदेश

शिक्षा-दीक्षा : जॉन बिशप कॉटन शिमला, हेम्पटनकोर्ट मसूरी

पहली पुस्तक : द रूम ऑन द रूफ वर्ष 1956 में प्रकाशित हुई

पुरस्कार

1957 में इंग्लैंड में जॉन लेवन राइस मेमोरियल पुरस्कार

1992 में भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार

1999 में पद्मश्री से सम्मानित किये गये

2003 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने डाक्ट्रेट की मानद उपाधि से विभूषित किया

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