रांची : इंसान को हमेशा कुछ न कुछ करना चाहिए. सोचना चाहिए. जो वह सोचे, उसे लिखना चाहिए, क्योंकि जो कुछ नहीं करता, जो कुछ नहीं सोचता, वह मर जाता है. लेखक को पुरस्कार के बारे में नहीं सोचना चाहिए. उसे कुछ बनने के बारे में नहीं सोचना चाहिए. उसे करना चाहिए. रचना करनी चाहिए. ये बातें वरिष्ठ कवि, साहित्यकार और पत्रकार उदय प्रकाश ने शनिवार को यहां ऑड्रे हाउस में आयोजित झारखंड लिटररी मीट 2018 (Jharkhand Literary Meet 2018) के दूसरे सीजन के उद्घाटन सत्र में कहीं.
प्रभात खबर और टाटा स्टील के सहयोग से आयोजित Jharkhand Literary Meet 2018 में प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी के साथ संवाद में उदय प्रकाश ने नये रचनाकारों से कहा कि वे अपनी लेखनी रुकने न दें. उन्हें अपनी लेखनी के बारे में कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि वह कैसा लिख रहे हैं. बस लिखते रहना चाहिए. जो वह सोचें, उसे लिखना चाहिए. ‘लोकप्रियता या साहित्यिक सच : लेखक के असली उद्देश्य क्या हैं’ विषय पर पूछे गये एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बाजार के बारे में हिंदी के रचनाकारों ने गलत अवधारणा बना दी है. वह बाजार को बुरा नहीं मानते.
श्री प्रकाश ने कहा कि बाजारवाद बुरा है, बाजार नहीं. बाजार बंधनों से मुक्त करता है. बाजार सफलता का सोपान बनता है. बाजार न होता, तो उनकी रचनाएं सात समंदर पार तक नहीं पहुंच पातीं. कई अन्य भाषाओं में हिंदी के रचनाकारों को लोग नहीं पढ़ पाते. उन्होंने एक उदाहरण देकर समझाया कि बाजार किस तरह से लोगों के लिए अच्छा है. वरिष्ठ साहित्यकार ने बताया कि एक गांव में एक सामंत था, जो मोची से काम करवाता था. उसे प्रताड़ित भी करता था. मोची तंग आ चुका था. एक दिन उसे मालूम हुआ कि बाजार में काम मिल सकता है. वह पूरे परिवार के साथ गठरी बांधकर बाजार आ गया. यहां उसे छोटा काम मिला, लेकिन सामंत से मुक्ति मिल गयी.
श्री प्रकाश ने कहा कि सूचना एवं प्रौद्योगिकी से रचनाकारों को बहुत फायदा हुआ है. तकनीक ने आज संवाद को आसान बना दिया है. ऐसे-ऐसे Apps आ गये हैं, जो आपको उस भाषा में दूसरे को अपनी बात समझाने का मौका देता है, जिस भाषा को आप समझते तक नहीं. आशुतोष चतुर्वेदी के एक सवाल के जवाब में उदय प्रकाश ने माना कि अब किसान और पर्यावरण साहित्य का विषय नहीं बन रहे. उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है. हालांकि, कुछ रचनाकार इस विषय पर लिख रहे हैं, लेकिन इनके बारे में उतना नहीं लिखा जा रहा, जितना लिखा जाना चाहिए.
उदय प्रकाश से एक सवाल पूछा गया कि भारतीय भाषा के साहित्यकारों को नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिलता? इस पर श्री प्रकाश ने कहा कि भारतीय साहित्य नोबेल की मोहताज नहीं. रचनाकारों को पुरस्कार के लिए नहीं लिखना चाहिए. उसे पाठकों के लिए लिखना चाहिए. हिंदी या भारतीय भाषा के संकुचन पर वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा कि हिंदी साहित्य बहुत समृद्ध है. यह सागर के समान है. देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग हिंदी बोली जाती है. इन सबसे मिलकर हिंदी समृद्ध हुई है. साहित्य को बहते रहना चाहिए. हर धारा की नदी को हिंदी में मिलने दें. इससे हिंदी और समृद्ध होगी.